धन्वनतरि को जाना जाता है धनतेरस के नाम से

शिवपुरी. पांच दिवसीय दीपों का पर्व दीपावली की भव्य शुरूआत आज धनतेरस से होगी। इसके बाद नरक चर्तुदर्शी और फिर दीपावली का त्यौहार मनाया जाएगा। त्यौहारों के इस पावन पर्व की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए ज्योतिषाचार्य पं.विकासदीप शर्मा बताते है कि  दीपावली पर्व को यदि शुभ मुर्हुत में पूजा-अर्चना के साथ मनाया जाए तो यह शुभ फलदायी होता है और इसकी शुरूआत धनतेरस के दिन से होती है इसलिए जन सामान्य को दीप पर्व मनाने के लिए धनतेरस से पूर्ण विधि-विधान के साथ पूजा अर्चना करनी चाहिए ताकि मॉं लक्ष्मी अपना आर्शीवाद प्रदान करें और सुख-समृद्धि व धन-दान से संपन्न कराऐं।
इस अवसर पर धनतेरस के बारे में पं.विकासदीप  ने पूजा के लाभ बताए जिसमें धनतेरस पर पूजा करने से व्यक्ति में संतोष, संतुष्टी,स्वास्थय, सुख व धन की प्राप्ति होती है जिन व्यक्तियों के स्वास्थय में कमी तथा सेहत में खराबी की संभावनाएं बनी रहती है उन्हें विशेष रुप से इस शुभ दिन में पूजा आराधना करनी चाहिए। धन्वन्तरी जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथो में अमृत से भरा कलश था। 

भगवान धन्वन्तरी चूंकि कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की पर परा है। कहीं कहीं लोकमान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इस दिन धन,वस्तु खरीदने से उसमें 13 गुणा वृद्धि होती है। इस अवसर पर धनिया के बीज खरीद कर भी लोग घर में रखते हैं। दीपावली के बाद इन बीजों को लोग अपने बाग.बगीचों में या खेतों में बोते हैं। धनतेरस के दिन चांदी खरीदने की भी प्रथा है। इसके पीछे यह कारण माना जाता है कि यह चन्द्रमा का प्रतीक है जो शीतलता प्रदान करता है और मन में संतोष रूपी धन का वास होता है। संतोष को सबसे बड़ा धन कहा गया है। जिसके पास संतोष है वह स्वस्थ है सुखी है और वही सबसे धनवान है। भगवान धन्वन्तरी जो चिकित्सा के देवता भी हैं उनसे स्वास्थ्य और सेहत की कामना के लिए संतोष रूपी धन से बड़ा कोई धन नहीं है। लोग इस दिन ही दीपावली की रात लक्ष्मी गणेश की पूजा हेतु मूर्ति भी खरीदते हैं। धनतेरस की शाम यम के नाम पर दक्षिण दिशा में दीया जलाकर रखता है उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती है। इस मान्यता के अनुसार धनतेरस की शाम लोग आँगन मे यम देवता के नाम पर दीप जलाकर रखते हैं। इस दिन लोग यम देवता के नाम पर व्रत भी रखे।

यॅूं करें नरक चतुर्दशी पर पूजा-अर्चना
पं.विकासदीप शर्मा बताते है कि नरक चतुर्दशी 22.10.2014 बुधवार को है उस दिन सर्वप्रथम नहाने से पहले पानी में अपामार्ग की जड़ जिसे चिचड़ी बोलते है जो हर जगह आसानी से पाया जाता है उसके फल और पत्तो को आप आदरसहित लाकर नहाने के पानी में डाल कर नहाने से नरक के द्वार नहीं देखने पड़ेगे ऐसा शास्त्रों का कथन है। इस दिन यम देव की पूजा हेतु दीपक जलाए जाते हैं। अगले दिन दीपावली की पूजा की जाती है वैसे तो कार्तिक महीने में दीपक जलाने का बहुत ही बड़ा महत्व है और शास्त्रों के अनुसार भगवन श्री राम ने लंका के अत्याचारी राजा रावन का वध करके अयोध्या लौटे थे। उनके लौटने कि खुशी मे आज भी लोग यह पर्व मनाते है। कृष्ण भक्तिधारा के लोगों का मत है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी राजा नरकासुर का वध किया था। इस नृशंस राक्षस के वध से जनता में अपार हर्ष फैल गया और प्रसन्नता से भरे लोगों ने घी के दीए जलाए। एक पौराणिक कथा के अनुसार विंष्णु ने नरसिंह रुप धारणकर हिरण्यकश्यप का वध किया था तथा इसी दिन समुद्रमंथन के पश्चात लक्ष्मी व धन्वंतरि प्रकट हुए। इसकी कारन आज के दिन श्री लक्ष्मी और श्री गणेशा और कुबेर जी की आराधना की जाती हैए इस दिन देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होने के बाद धन की कमी नहीं होती। भगवती महालक्ष्मी चल एवं अचल संपत्ति देने वाली हैं। दीपावली की रात लक्ष्मीजी के विधिवत पूजन से हमारे सभी दुख और कष्ट दूर होते हैं।