नपाध्यक्ष चुनाव में हर बार उजागर हुई मतदाता की बेबसी

शिवपुरी। नगरपालिका अध्यक्ष पद के पिछले 15 साल के इतिहास पर यदि दृष्टिपात किया जाए तो हर बार जनता अपने फैसले पर पछताती हुई नजर आई है। सहज व्यक्तित्व के रूप में सन् 99 में मतदाता ने भाजपा के माखनलाल राठौर का चुनाव किया तो पांच साल में ही उसे नजर आ गया कि राजनीति में सहजता से अधिक दबंगी महत्वपूर्ण होती है।

 इस निष्कर्ष पर पहुंचकर मतदाता ने निर्दलीय जगमोहन सिंह सेंगर पर 2004 में दाव लगा दिया। लेकिन मतदाता को फिर निराश होना पड़ा और उनके कार्यकाल के रिजल्ट को मतदाता ने विधानसभा चुनाव में रेखांकित किया। जब श्री सेंगर विधायक पद के चुनाव में बुरी तरह से मात खा बैठे। 2009 के चुनाव में मतदाता ने प्रत्याशियों की छवि से अधिक दल पर ध्यान केन्द्रित किया।

 इसका एक कारण था कि कांग्रेस और भाजपा दोनों ने ही नवोदित प्रत्याशियों को मैदान में उतारा, लेकिन पिछली परिषद के कार्यकाल से जनता संतुष्ट हुई हो ऐसा नजर तो नहीं आता। सवाल यह है कि हर बार पछताने के बाद क्या इस बार भी मतदाता को पछताना पड़ेगा? क्या इस बार फिर उसकी बेबसी उजागर होगी? या फिर एक नई लकीर खींची जाएगी?

निसंदेह इस वक्त भाजपा के लिए पूरी तरह अनुकूल मामला है। देश में मोदी लहर और प्रदेश में शिवराज का प्रभाव भाजपा के पक्ष में सकारात्मक कारण है, लेकिन इसके बाद भी यदि प्रत्याशी चयन में भूल हुई तो भाजपा के लिए मामला इतना आसान नहीं रहेगा। इसका अर्थ यह भी है कि यदि कांग्रेस ने मजबूत क्षमतावान और योग्य प्रत्याशी को चुनाव मैदान में नहीं उतारा तो उसके लिए कोई मौका नहीं है। नगरपालिका क्षेत्र में विकास के जितने आयाम स्थापित किए जाने चाहिए थे उसका नितांत अभाव देखा गया।

सिंध परियोजना अटकी पड़ी है और दिन प्रतिदिन शहर की तस्वीर बदरंग ही हुई है। मतदाता का रूझान साफ है कि इस बार वह दलों से अधिक प्रत्याशियों की छवि पर ध्यान केन्द्रित करेगा। मतदाता योग्य प्रत्याशी चुनने का मन बना चुका है और उ मीदवारों की भीड़ में जो प्रत्याशी उसे अधिक क्षमतावान और योग्य नजर आएगा, उसके सिर पर ही जीत का ताज सजेगा। सवाल यह है कि मतदाता की पसंद आखिर है क्या? किन गुणों को वह नपाध्यक्ष में देखना चाहता है? आईए जरा उनकी भी चर्चा  कर लेते हैं।

निश्चित रूप से मतदाता की पहली पसंद उ मीदवार का सहज व्यक्तित्व है। सिर्फ इसी गुण के बलबूते भाजपा के माखनलाल राठौर ने किला फतेह करने में सफलता हासिल की। लेकिन इतना ही पर्याप्त नहीं है। मतदाता चाहता है कि उ मीदवार सहज तो हो, लेकिन उसमें दृढ़ता और दबंगता भी हो। जब तक उसके जनप्रतिनिधि में प्रशासनिक क्षमता नहीं होगी कैसे वह शासन चलाने में समर्थ होगा। इस गुण के सहारे जगमोहन सिंह सेंगर चुनाव जीते। इन गुणों में अन्य गुणों का स िमश्रण आवश्यक है।

 उ मीदवार की छवि साफ सुधरी होनी चाहिए। उस पर कोई आपराधिक प्रकरण पंजीबद्ध नहीं होना चाहिए। उ मीदवार भ्रष्ट है अथवा नहीं इसका पूरा पता तो आजमाने के बाद ही लगता है। लेकिन उसकी पाक साफ छवि के बारे में एक आंकलन तो लग ही जाता है।

मतदाता की सामाजिक छवि इस बार एक बड़ा फेक्टर साबित होने जा रही है। इन सब गुणों पर विचार कर जो दल उ मीदवार का चयन करेगा और नेताओं के पट्ठों को उ मीदवार बनाने के स्थान पर वह योग्य प्रत्याशी को मैदान में उतारेगा तो उसे पछताना नहीं पड़ेगा। लेकिन यदि हमेशा की तरह दलों ने अनदेखी की और गैर जि मेदारी से प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में उतारा तो जनता के पास निर्दलीय प्रत्याशी चुनने का भी विकल्प है।

कोलारस, करैरा, पिछोर,खनियांधाना सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित
ाोपाल के रविन्द्र भवन में आयोजित आरक्षण प्रक्रिया में कोलारस, करैरा, पिछोर, खनियांधाना नपं सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित हुई। जबकि बदरवास नपं में अनुसूचित जाति महिला वर्ग से अध्यक्ष चुना जाएगा। बैराड़ में पिछड़ा वर्ग महिला और नरवर में सामान्य महिला अध्यक्ष बनेगी।

करैरा में राजनैतिक गतिविधियां तेज, कई दावेदारों के नाम आये सामने
शिवपुरी। करैरा नगर पंचायत का अध्यक्ष पद सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित होने के बाद यहां राजनैतिक गतिविधियां तेज हो गई हैं। कई दावेदारों के नाम एकाएक उभरकर सामने आये हैं। नगर पंचायत अध्यक्ष रजनी साहू के पति कोमल साहू ने कहा है कि भाजपा हाईकमान से टिकिट की मांग करेंगे। भाजपा के अन्य दावेदारों में वीरेन्द्र साहू, बीके गुप्ता, अरविन्द वेडर, महेन्द्र रावत के नाम प्रमुखता से लिये जा रहे हैं। जबकि कांग्रेस में ब्लॉक अध्यक्ष रवि गोयल, महिला नेत्री द यंती मिश्रा, वीनस गोयल संभावित दावेदारों में हैं। द यंति मिश्रा के पुत्र पुष्पेन्द्र मिश्रा निर्दलीय रूप से चुनाव मैदान में उतरने का मन बना रहे हैं।