हिम्मत हो तो माधौ महाराज बनकर दिखाओ

शिवपुरी। शिवपुरी के पितृ-पुरूष कहे जाने वाले स्व: माधौ महाराज के आचरणो से जनप्रतिनिधि सीखे तभी ही शिवपुरी सिंगाापुर बन सकती है। स्व: माधो महाराज ने जब शिवपुरी नगर को डवलप किया होगा तब उनकी सोच सिंगाापुर से भी आगे की रही होगी। इसका उदाहरण शिवपुरी में आजादी से पहले रेल थी और आजादी के पचास साल बाद रेल आई।

शिवपुरी की सजावट और बनावट की जब-जब भी चर्चा होती है तो माधौ महाराज के योगदान को हमेशा याद रखा जाता है। शहर में तालाबों का निर्माणो की सोच सौ साल आगे की रही होगी। सरक्यूलर रोड़ों का जाल, छत्री जैसे रमणीय स्थलों का विकास उनके कार्यकाल की देन हैं।

उनकी प्रशासनिक क्षमता का लोहा उनके विरोधी भी मानते हैं। सिंधिया राजवंश में माधौ महाराज प्रथम का व्यक्तित्व सभी आलोचनाओं से परे रहा है लेकिन दुर्भाग्य है कि शायद हमने उन्हें भुला दिया है। उपद्रवी तत्वों द्वारा माधव चौक पर माधौ महाराज की प्रतिमा तोड़ी गई और अफसोस का एक शब्द भी मुखरित नहीं हुआ।

डेढ़ साल बाद भी प्रतिमा स्थापित करने की पहल नहीं हुई। क्या हमारा दायित्व नहीं है कि राजनीति से ऊपर उठकर शिवपुरी के विकास में योगदान करने वाले माधौ महाराज की प्रतिमा को पुन: प्रतिष्ठित करने के लिए हम पहल करें। क्यों? इसकी जिम्मेदारी हम ज्योतिरादित्य सिंधिया और यशोधरा राजे सिंधिया पर छोड़कर अपनी जिम्मेदारी से किनारा करना चाहते हैं।

राजा को संसार में भगवान का दर्जा इसलिए दिया जाता है, क्योंकि वह प्रजा का हित संरक्षक होता है। प्रजा के सुख-दुख का ध्यान रखना राजा का दायित्व है। किंग अपनी प्रशासनिक क्षमता के कारण भी जाना जाता है और माधौ महाराज प्रथम में यह समस्त खूबियां थीं।

राजनीति से जुड़ाव के कारण कोई राजमाता विजयाराजे सिंधिया से लेकर उनके सुपुत्र माधवराव सिंधिया, नाती ज्योतिरादित्य सिंधिया और पुत्री यशोधरा राजे सिंधिया की आलोचना कर सकता है, लेकिन माधौ महाराज प्रथम की आलोचना करने का साहस तो किसी के पास नहीं है। माधौ महाराज की मातृ भक्ति के उदाहरण से भी शिवपुरीवासी भलीभांति परिचित हैंं।

जिन्होंने अपनी मां जीजाबाई की स्मृति में छत्री का निर्माण कराया था और आज भी मां जीजाबाई की प्रतिमा की उसी तरह देखभाल होती है। इतने वर्षों के बाद भी अपनी मां को जीवंत रखना माधौ महाराज की मातृभक्ति का उत्कृष्ट उदाहरण है। उनके द्वारा निर्मित कराई गई छत्री गुणवत्ता में ताजमहल के स्तर की है।

अंतर है तो सिर्फ इतना कि शाहजहां ने अपनी पत्नी मुमताज महल की यादगार में ताजमहल बनवाया था। जबकि माधौ महाराज ने एक कदम आगे बढ़कर अपनी मां की याद में छत्री का निर्माण करवाया। माधौ महाराज सांप्रदायिक सद्भाव के जीवंत प्रतीक माने जाते हैं।

आज भले ही वोटों की राजनीति के चलते सा प्रदायिक सद्भाव की मुंह दिखाई बातें की जाती हों, लेकिन वास्तविक रूप से साम्प्रदायिक सद्भाव की भावना को धरातल पर माधौ महाराज प्रथम ने ही मूर्तरूप दिया था। छत्री में मंदिर हैं, मस्जिद है, गुरूद्वारा है और चर्च भी है। यही कारण है कि सिंधिया राजपरिवार के प्रतिनिधि को आज भी इसका लाभ मिलता है और सभी धर्मों के अनुयायी उन्हें जिताने में सहयोगी बनते हैं।

माधौ महाराज के जमाने में ही शिवपुरी से ग्वालियर तक नैरोगेज रेल लाइन डाली गई। उनके जमाने की सीवेज लाइन आज भी काम कर रही है। उनके द्वारा निर्मित कराए गए चांदपाठा तालाब से आज भी शहर में पेयजल की सप्लाई हो रही है। बताइए कोई ऐसा दूसरा उदाहरण जिसने शिवपुरी के विकास में उस स्तर का या उस स्तर से कुछ कम काम भी किया हो।

सवाल यह है कि क्या हमें माधौ महाराज प्रथम को भुला देना चाहिए या उनकी स्मृति सहेजकर रखना चाहिए ताकि किसी को तो भी शिवपुरी के विकास की उनसे प्रेरणा मिल सके। लेकिन हमने क्या किया? राजनैतिक विद्वेषवश सिंधिया राजवंश से जुड़े जनप्रतिनिधियों की आलोचना की जा सकती है, लेकिन किसी को भी क्या अधिकार था कि शिवपुरी विकास के पुरोधा माधौ महाराज की प्रतिमा को तहस-नहस कर अपनी नाजायज भड़ास निकाली जाए।

लेकिन उनके दुष्कृत्य को निंसदेह रूप से शिवपुरी के समस्त नागरिकों की भावनाओं का प्रतिबि ब नहीं माना जा सकता। लेकिन इसके लिए आवश्यक है कि सिंधिया राज परिवार से अलग शिवपुरीवासी पुन: प्रतिमा स्थापित करने की पहल करें और उन लोगों की गलतियों का परिमार्जन करें। जिन्होन शिवपुरी को लज्जित करने का कार्य किया है।