पर्यूषण पर्व के छठे दिन जैन श्राविकाओं ने बताई गुरू और दान की महिमा

शिवपुरी। मौत सिर्फ उसे भयभीत कर सकती है जिसके जीवन में धर्म का आचरण नहीं होता। धार्मिक व्यक्ति जहां आत्मा से परिचित होता है और उसे आत्मा की अजरता-अमरता का बोध होता है। वही धर्म का आचरण करने से वह निश्चित रहता है कि उसका अगला भव भी अच्छा होगा।
उक्त उद्गार पोषद भवन में पर्यूषण पर्व के छठे दिन भीलवाड़ा राजस्थान से आई मंजू बहन ने जैन धर्मावलंबियों को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। इस अवसर पर अजब बहन और नौरत्न बहन ने जहां दान की महिमा बताई वहीं यह भी समझाया कि बिना गुरू के जीवन में उद्धार संभव नहीं है।

धर्मोपदेश में मंजू बहन ने अपने संबोधन में कहा कि मनन करने के कारण ही मनुष्य का नामकरण हुआ है। मनन करने से आत्मा का बोध होता है। उन्होंने कहा कि संसार की हलचलों और आपाधापी के कारण हमें आत्मा की आवाज सुनाई नहीं देती है, लेकिन जब संसार से हमारा ध्यान हटता है तो हमें स्पष्ट रूप से आत्मा के अस्तित्व का अहसास होता है। आत्मबोध धार्मिक व्यक्ति का प्रमुख लक्षण है और जिसे आत्मबोध हो जाता है। उसे मृत्यु का भय भी नहीं रहता और वह अभय को प्राप्त होता है। साध्वी जी ने इस संदर्भ में भगवान महावीर के काल में सुदर्शन श्रावक की कथा सुनाई।

जो कि राजगिरी नगरी में उस रास्ते से गुजरा जहां प्रतिदिन अर्जुन माली 6 पुरूष और 1 महिला सहित 7 लोगों का वध करता था और उसने अभी तक 1141 लोगों की हत्या कर दी थीं। लेकिन भगवान महावीर के दर्शन करने के लिए मौत के भय को दूर रखकर सुदर्शन श्रावक उसी रास्ते से गुजरे और उन्होंने संलेखना संथारा पाला और उनकी दृढ़ता के कारण अर्जुन माली का सारा बल चूर-चूर हो गया। धर्मसभा में अजब बहन ने दान की महिमा बताते हुए कहा कि दान में वस्तु का महत्व नहीं है। दान में महत्व भावना का है। 

इस संबंध में अजब बहन ने नन्हें बालक संगम की कथा सुनाई जिसने भूख से पीडि़त होने के बाद भी अपने पास मौजूद खीर का दान मुनिराज को कर मौत का वरण किया। धर्मसभा में साध्वी नौरत्न बहन ने अंतगढ़ सूत्र का वाचन करने के अलावा गुरू की महिमा का गुणगान किया। उन्होंने कहा कि रावण अथाह संपत्ति का मालिक था। वह 1 हजार विद्याओं का ज्ञाता था। उसके अनेक पुत्र नाती-नातिन, भाई-बहन आदि थे, लेकिन गुरू न होने के कारण उसका पतन हुआ।

गुरू पन्नालाल जी की जयंती मनाई गई
पर्यूषण पर्व में भीलवाड़ा की श्राविका बहनों के सानिध्य में स्वाध्यायी संघ की स्थापना करने वाले गुरू पन्नालाल जी की जयंती मनाई गई। उनके गुणों का बखान करते हुए मंजू बहन ने बताया कि जिन क्षेत्रों को साधू-साध्वियों का लाभ नहीं मिल पाया था। वहां धर्म की पर्यूषण पर्व में प्रभावना के लिए स्वाध्यायी भाई-बहनों को भेजने का गुरू पन्नालाल जी ने निर्णय लिया। जिसका उस समय तो मुखर विरोध हुआ था, लेकिन आज उनके प्रयासों से स्वाध्यायी संघ उन शहरों, गांवों और कस्बों में पर्यूषण पर्व के दौरान धर्म की प्रभावना कर रहा है। जहां साधू साध्वियां नहीं है।