नगरपालिका चुनाव में दलों की नहीं उम्मीदवारों की छवि रहेगी निर्णायक!

शिवपुरी। प्रदेश में संपन्न हुए तीन विधानसभा उपचुनावों में भले ही भारतीय जनता पार्टी ने दो सीटों पर कब्जा कर बढ़त हांसिल की हो, लेकिन नगरपालिका चुनाव में इस बार दलों से बढ़कर उम्मीदवारों की छवि निर्णायक रहने की अधिक उम्मीद है।
पार्षद पद पर तो हमेशा दल अप्रासांगिक रहे हैं और अच्छे उम्मीदवार चाहे वह किसी भी दल से खड़े हों या निर्दलीय रूप से चुनाव मैदान में हों, विजयी होते रहे हैं। लेकिन संभावना यह है कि इस बार अध्यक्ष पद पर भी उम्मीदवारों की छवि महत्वपूर्ण साबित होगी और भाजपा के लिए मोदी और शिवराज का जादू चल पाएगा, इसमें संदेह बरकरार है। 

नगरपालिका अध्यक्ष पद पर 2004 के चुनाव को यदि छोड़ दें तो नगरपालिका अध्यक्ष पद पर भाजपा का ही कब्जा रहा है। सन् 94 में अप्रत्यक्ष पद्धति से हुए चुनाव में भाजपा प्रत्याशी स्व. श्रीमती राधा गर्ग ने कांग्रेस प्रत्याशी श्रीमती तृप्ती गौतम को पराजित किया और उनका कार्यकाल काफी हद तक संतोषप्रद रहा था। श्रीमती गर्ग के देवर स्व. विनोद गर्ग भाजपा के युवा प्रभावशाली नेता थे, लेकिन राधा गर्ग ने स्वयं अपने विवेक से निर्णय लेकर नगरपालिका चलाई। इसका लाभ भाजपा को 1999 के नपाध्यक्ष पद के चुनाव में हुआ। जब भाजपा प्रत्याशी माखनलाल राठौर ने कांग्रेस के मजबूत प्रत्याशी लक्ष्मीनारायण शिवहरे को पराजित कर दिया। उस समय नपाध्यक्ष पद पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षित था। इसके बाद हुए चुनाव में अध्यक्ष पद सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित हुआ। 

भाजपा ने पूर्व विधायक देवेन्द्र जैन को उम्मीदवार बनाया। कांग्रेस ने गणेशीलाल जैन पर दाव लगाया। उस समय प्रदेश में भाजपा की लहर थी और मुख्यमंत्री पद पर साध्वी उमा भारती काबिज थीं। लेकिन पूर्व विधायक जैन का चयन स्थानीय विधायक यशोधरा राजे सिंधिया की सहमति के बिना किया गया था। उस चुनाव में मतदाताओं ने कांग्रेस और भाजपा दोनों के उम्मीदवारों को नकार दिया और निर्दलीय प्रत्याशी जगमोहन सिंह सेंंगर 10 हजार से अधिक मतों से चुनाव जीते। उस चुनाव में ठीक आज के समान परिस्थिति थी। जब मतदाताओं ने दलों के स्थान पर उम्मीदवार की छवि को निर्णायक रूप दिया था। श्री सेंगर अध्यक्ष पद का चुनाव लडऩे के पहले नगरपालिका उपाध्यक्ष थे और नगरपालिका उपाध्यक्ष तथा पार्षद पद की छवि का लाभ उन्हें मिला। यही कारण रहा कि निर्दलीय उम्मीदवार होने के बाद भी वह आसानी से चुनाव जीत गए। लेकिन अध्यक्ष बनने के बाद वह अपनी छवि के साथ न्याय नहीं कर पाए। इस कारण अगले चुनाव में मतदाताओं ने फिर पार्टी को महत्व दिया। 

शिवराज लहर में भाजपा उम्मीदवार श्रीमती रिशिका अष्ठाना ने कांग्रेस प्रत्याशी श्रीमती आशा गुप्ता को लगभग 5 हजार मतों से हरा दिया। लेकिन पिछले पांच साल में श्रीमती रिशिका अष्ठाना का कार्यकाल दो कारणों से सुर्खियों में रहा। एक तो अध्यक्ष के रूप में चर्चा रही कि वह निर्णय लेने में स्वतंत्र नहीं रहीं तथा उनके कार्यकाल में नपा प्रशासन में भ्रष्टाचार भी बढ़ा। जनसमस्याओं का निराकरण भी उस स्तर पर नहीं हुआ। इसलिए इस बार संभावना यह है कि मतदाता फिर उम्मीदवारों की छवि पर आश्रित होगा और दलों के टिकिट अधिक महत्वपूर्ण साबित नहीं होंगे। जहां तक अध्यक्ष पद का सवाल है तो विगत चुनाव में सामान्य वर्ग की महिला के लिए आरक्षण हुआ था। इस बार सामान्य वर्ग, पिछड़ा वर्ग पुरूष और पिछड़ा वर्ग महिला की पर्चियां डाली जाएंगी। देखना यह है कि इन तीनों में से अध्यक्ष पद किसकी झोली में गिरता है।

दलीय उम्मीदवार भी निर्दलीय चुनाव लडऩे के इच्छुक
नगरपालिका अध्यक्ष पद के चुनाव में कांग्रेस और भाजपा का टिकट उम्मीदवारों के लिए इस बार अधिक आकर्षण का केन्द्र नहीं बन पा रहे हैं। बहुत से दलीय उम्मीदवारों ने इस संवाददाता से चर्चा करते हुए कहा कि यदि उन्हें अपने दल से टिकट नहीं मिला तो भी कोई नुकसान नहीं है। वह निर्दलीय रूप से चुनाव लड़ेगे। उनका मानना है कि नगरीय चुनाव में इस बार मोदी और शिवराज का जादू नहीं चलेगा तथा जिस उम्मीदवार को जनता चाहेगी वह चुनाव जीतेगा। चाहे उसके पास किसी दल का टिकट हो अथवा नहीं। इसलिए संभावना है कि इस बार निर्दलीय उम्मीदवार बहुत अधिक संख्या में अध्यक्ष पद के लिए चुनाव मैदान में उतरेंगे।