भगवान महावीर की मातृ-पितृ भक्ति अनुकरणीय: मंजू बहन

शिवपुरी। मां त्रिशला को कष्ट न हो इसलिए भगवान महावीर ने गर्भ में हलन-चलन बंद कर दिया था। इससे उनके माता-पिता शोकाकुल हो उठे। मां को लगा कि उनके गर्भ मे शिशु किसी विपत्ति का शिकार हो गया है। 

माता-पिता के दुख को देखकर भगवान महावीर ने अपने शरीर में हलचल पैदा की और उसी समय संकल्प लिया कि जब तक मेरे माता-पिता जीवित रहेंगे मैं दीक्षा नहीं लूंगा। उक्त उद्गार पोषद भवन में भीलबाड़ा से आईं मंजू बहन ने भगवान महावीर के जन्मोत्सव की कथा सुनाते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि भगवान की मातृ और पितृभक्ति अनुकरणीय है।

धर्मसभा को बहन अजब और बहन नौरत्न जी ने भी संबोधित किया। आराधना भवन में भगवान महावीर के जन्म की कथा चेन्नई से आए युवा श्रावकों ने सुनाई। दोनों स्थानों पर भगवान महावीर के जन्म की खुशियां मनाई गईं और एक-दूसरे को बधाईयां देते हुए मिठाईयां खिलाई गईं।

मंजू बहन ने अपने संबोधन में बताया कि कर्मों के फल से तीर्थंकर भी नहीं बच सकते। उन्हें भी कर्म काटने पड़ते हैं। भगवान महावीर ने अपने पुरुषार्थ से बड़े धैर्य के साथ कर्मों के फल को भोगा। उनके कान में कीले ठोके गए। इसके बाद भी वह विचलित नहीं हुए। देवराज इंद्र ने उनके समक्ष सहायता का प्रस्ताव रखा, लेकिन भगवान ने कहा कि मैंने जो किया है वह मुझे स्वयं भोगना होगा। बिना भोगे कोई भी मुझे कर्म बंधन से मुक्ति दिलाने में संभव नहीं हैं।

श्राविका बहन ने कहा कि इसीलिए हमें कोई भी ऐसा काम नहीं करना चाहिए। जिससे किसी की आत्मा दुखी हो और उसे लेशमात्र भी कष्ट हो। भगवान महावीर वीर और महावीर थे इसलिए उन्होंने हंसते-हंसते कर्मों को काटने के लिए कष्ट भोग लिये, लेकिन हम में इतनी सामर्थ नहीं है। मंजू बहन ने बताया कि भगवान महावीर शुरू से बैरागी थे। राज परिवार में उन्होंने जन्म लिया था। माता-पिता और भाई के कारण राजमहल में जमे थे, लेकिन इसके बाद भी वह निर्लिप्त रहे। भगवान महावीर का जन्मोत्सव होते ही पोषद भवन और आराधना भवन में उत्साह का वातावरण व्याप्त हो गया और भगवान महावीर की जय-जयकार के नारे गंूजने लगे। जैन धर्मावलंबियों ने एक-दूसरे को मिठाईयां खिलाईं और जन्मोत्सव की खुशियां बांटी।