शिवपुरी में कुछ खास नहीं कर सके कलेक्टर जैन, नवागत कलेक्टर से बंधी आस

शिवपुरी। मैराथन बैठक कर योजनाओं क्रियान्वयन का खाका खींचने वाले कलेक्टर आर के जैन अपने दो साल एक माह और 20 दिनों में कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाए।
जैसे कि उनसे आशा थी हालांकि वह अपने कार्यों को तल्लीनता से करते रहे लेकिन जनता में उनकी छाप वह नहीं बन सकी जो एक कलेक्टर के रूप में बननी चाहिए थी। चाहे प्रशासनिक टीम में ढिलाई हो या माननीय न्यायालय के अवमानन संबंधी कार्य इन सभी मामलों से कलेक्टर आर के जैन को दु:ख जरूर पहुंचाया होगा लेकिन यदि इन कार्यो को ठीक ढंग से करते तो आज वह जनता के सिरमौंर बनते नजर आते।

अब नवागत कलेक्टर राजीवचन्द्र दुबे से लोगों की आस बंधी है लेकिन क्या वह अपने अपने कार्यों और कसावट से कुछ ऐसा कर पाऐंगें यह काबिले गौर होगी। फिलवक्त लगभग सवा दो साल के कार्यकाल में कलेक्टर आरके जैन की सबसे बड़ी उपलब्धि यही रही कि वह तमाम झंझावतों के बावजूद विवादास्पद नहीं हुए। उन्हीं के समय में शहर में अतिक्रमण विरोधी अभियान शुरू हुआ था और वर्षों से नाले किनारे जमे स्टालों को हटाया गया था। उन्हीं के कार्यकाल में शहर में उत्सव हत्याकाण्ड हुआ था और जिसमें पुलिस प्रशासन जनता की नजर में एकाएक खलनायक बन गया था, लेकिन उसके बावजूद भी कलेक्टर जैन के उजले कपड़ों पर एक भी दाग नहीं लगा था, बल्कि उनका साहसी चरित्र उभरकर सामने आया था।

इसके बावजूद भी उनके कार्यकाल को शत प्रतिशत अंक इसलिए नहीं दिये जा सकते क्योंकि देखा यह गया कि राजनैतिक दबाव के कारण उन्होंने घुटने टेके और इसी कमजोरी के कारण उनकी पूर्ण संभावनाओं का प्रतिफलन जनता के बीच सामने नहीं आ पाया और शायद इसी वजह से उनकी ईमानदारी, संवेदनशीलता और कार्य के प्रति समर्पण का लाभ जितना मिलना चाहिए था उतना नहीं मिल पाया। कहा जा सकता है कि कलेक्टर जैन का कार्यकाल औसत रहा और सिंघम जैसे अधिकारियों को देखने की इच्छा रखने वाले जनमानस को किंचित निराशा का सामना करना पड़ा।

ऐसा नहीं कि कलेक्टर जैन कुछ करने की हसरत लिये शिवपुरी नहीं आये। कलेक्टर के रूप में उनकी सबसे बड़ी पूंजी उनकी सहजता, निरहंकारिता, ईमानदारी और संवेदनशीलता थी। इनमें यदि दबंगी का पुट भी मिल जाता तो शायद सोने में सुहागा होता। श्रेष्ठ अधिकारी संवेदनशीलता और साहस के समन्वय से बनते हैं। श्री जैन शिवपुरी आये तो उन्होंने देखा कि यहां की सबसे बड़ी समस्या अतिक्रमण है जिससे न केवल यातायात समस्या पैदा हो रही है, बल्कि शहर की सुंदरता भी कुरूपता में बदलती जा रही है। उन्हें लगा कि यदि अतिक्रमण विरोधी अभियान से शुरूआत हो तो इससे अच्छा क्या होगा। इसी विश्वास के साथ कलेक्टर जैन ने अतिक्रमण विरोधी अभियान शुरू किया, लेकिन भूल यह हुई कि अभियान शुरू करने से पूर्व जनप्रतिनिधियों और समाज के गणमान्य नागरिकों को विश्वास में लेकर एक नीति नहीं बनाई गई।

हो सकता है कि ऐसा प्रशासन की दबंगी को दिखाने के लिए किया गया हो। इस दबंगी में दृढता होती तब भी काफी ठीक होता। जब तक गरीबों के अतिक्रमण हटे, प्रशासन ने हिटलरशाही के अंदाज में काम किया, नाजायज के साथ-साथ जायज अतिक्रमण भी तोड़े गये विरोध नहीं हुआ, लेकिन जब प्रभावशालियों के सिर पर खतरा मंडऱाने लगा तो विरोध शुरू हो गया। हिटैची मशीन विधायक भारती के निवास स्थान पर पहुंची तो उन्होंने आक्रामक अंदाज में मोर्चा संभाल लिया। कहा कि उनका निर्माण जायज  है। नगरपालिका के अतिक्रमणों को दिखाया इस मौके पर प्रशासन को चाहिए था कि सही गलत का फैसला करता, लेकिन इसके स्थान पर घुटने टेक दिये गये। बेचारे नाले वाले स्टॉल अवश्य साफ कर दिये गये, क्योंकि नक्कार खाने में सिर्फ ऊंची आवाज ही सुनी जाती है।

विधायक भारती सही थे या गलत इसके बारे में निश्चयात्मक रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता, लेकिन संदेश यही गया कि प्रशासन ने ऊंची पहुंच वालों के आगे समर्पण कर दिया है। यही से कलेक्टर जैन का एक्स फेक्टर तिरोहित होना शुरू हो गया। निसंदेह रूप से यहां की वरिष्ठ भाजपा नेत्री और प्रदेश सरकार की मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया से उनकी अच्छी पटरी बैठती थी और उनके व्यक्तित्व का कमाल है कि इसके बाद भी अन्य सभी प्रभावशाली राजनैतिक चाहे ज्योतिरादित्य सिंधिया हो या नरेन्द्र सिंह तोमर अथवा नरोत्तम मिश्रा उनकी गुडलिस्ट में कलेक्टर जैन सदैव रहे। उन पर कभी भी विरोधी राजनीतिज्ञों ने पक्षपात का आरोप नहीं मढ़ा। उत्सव हत्याकाण्ड में जब पूरा शहर जल रहा था और जनता के भय से पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों ने एक तरह से नगर से पलायन कर दिया था। उस विकट स्थिति में जब पुलिस सहायता केन्द्र, कोतवाली आदि फूंके जा रहे थे तब न तो एसपी आरपी सिंह, एड. एसपी और एसडीओपी एवं टीआई शहर में थे।

लेकिन कलेक्टर जैन ने साहसपूर्वक गुस्से से उबलती जनता के बीच निहत्थे पहुंचकर स्थिति को नियंत्रित करने में सफलता हासिल की और इसे उनके कार्यकाल की सबसे बड़ी उल्लेखनीय उपलब्धि कहा जा सकता है। जनता से कलेक्टर जैन का संवाद काफी सहज रहा, लेकिन अपने कनिष्ठ अधिकारियों पर वह उतनी ताकत से दबदबा कायम नहीं कर पाये जिस कारण अफसरशाही जनता के बीच उस हद तक लोकप्रिय नहीं हुई। अपने कनिष्ठ अधिकारियों पर टेरर कायम न रखना उनके व्यक्तित्व का निसंदेह एक नकारात्मक पक्ष रहा। उनकी इस बात के लिए भी आलोचना होती रही कि वह बैठकों में अधिक विश्वास रखते हैं, लेकिन उनका कहना है कि बैठक एक आवश्यक बुराई है क्योंकि इसके जरिये ही सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं को जनता के बीच पहुंचा पाते हैं। इन सब अगर-मगर के बावजूद जब-जब भी शिवपुरी के जिलाधीशों की चर्चा चलेगी तब कलेक्टर जैन उस समय केन्द्र बिंदु में अपने व्यक्तित्व के सकारात्मक गुणों के कारण अवश्य रहेंगे।

भूले नहीं भूल पाऐंगें कलेक्टर शिवपुरी को
भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी आरके जैन का स्थानांतरण शिवपुरी से खरगौन कलेक्टर के पद पर हो गया है। वह कहते हैं कि मैं शिवपुरी को कभी भूल नहीं पाऊंगा। यहां के लोग बहुत अच्छे हैं और हर अच्छे काम में सहयोग करते हैं। वह याद करते हंै कि उत्सव हत्याकाण्ड में शहर की स्थिति को वह यहां के लोगों के सहयोग से ही कंट्रोल कर पाये।