पर्यूषण पर्व के 7 वे दिन: बच्चों को गर्भ से ही दें धर्म के संस्कार: नौरत्न बहन

शिवपुरी। बच्चे और युवा पीढ़ी यदि आज संस्कारहीन होकर धर्म से विमुख हो रही है तो इसके लिए हम पालकगण जि मेदार हैं। जिन्होंने बच्चों को समय रहते धर्म के संस्कार नहीं दिए। बच्चों को धर्म के संस्कार गर्भ से ही दिए जाने चाहिए।

उक्त उद्गार भीलवाड़ा से आई स्वाध्यायी श्रीसंघ की श्राविका नौरत्न बहन ने स्थानीय पोषद भवन में जैन धर्मावलंबियों को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। वहीं मंजू बहन ने जहां सांसारिक जीवन को सुखमय बनाने के उपाय बताए। वहीं यह भी रेखांकित किया कि मोझ प्राप्त करने का मार्ग बेहद सरल और आसान है। अंतगढ़ सूत्र का वाचन बहन अजब ने किया।

पोषद भवन और आराधना भवन में पर्यूषण पर्व मनाने का उत्साह चरम पर पहुंच गया है। 8 दिन तक चलने वाले पर्यूषण पर्व के 7वे दिन जैन भाईयों और बहनों ने पोषद, सामायिक, उपवास,नवकारसी आदि तपों की आराधना की। वहीं युवा रीतेश सांखला, विपिन सांखला और प्रदीप काष्ठया के उपवास का आज 8वां दिन है। पोषद भवन में अपने प्रवचन में श्राविका बहन नौरत्न ने बताया कि इतिहास साक्षी है महाभारत काल में अर्जुन ने सुभद्रा को चक्रव्यूह भेदने की कला सुनाई थी।

इसे जानकर अभिमन्यु ने कौरवों द्वारा निर्मित चक्रव्यूह का भेदन कर दिया था, लेकिन जब अर्जुन ने उस चक्रव्यूह से बाहर निकलने की तरकीब बताई तब तक सुभद्रा को नींद आ गई थी। इस कारण अभिमन्यु चक्रव्यूह से बाहर निकलने की कला नहीं सीख पाए। श्राविका बहन ने कहा कि इससे पता चलता है कि गर्भ में भी बच्चे को शिक्षा दी जा सकती है। इसलिए गर्भवती महिलाओं को उस दौरान धार्मिक आचरण करना चाहिए। जिससे उनके गर्भ में पल रहे शिशु को धार्मिक संस्कारों की शिक्षा मिल सके।

साध्वी मंजू बहन ने अपने संबोधन में कहा कि जीवन को देखने की हमारी दृष्टि रचनात्मक नहीं है। हम प्रत्येक व्यक्ति में दोष ढूंढ़ते हैं और उसे बदलने की कोशिश में जुट जाते हैं जबकि खुद का आत्मावलोकन नहीं करते। उन्होंने कहा कि जीवन को सुखमय बनाना है तो दूसरों की बदलने की बजाय अपने आप को बदलने की कला सीखो।

मंजू बहन ने बताया कि जीवन का चरम लक्ष्य मुक्ति और मोझ की प्राप्ति है तथा इसे पाने का रास्ता भी बेहद आसान है, लेकिन शर्त है कि हमें अपनी दृष्टि संसार से हटाकर परमात्मा की ओर मोडऩी होगी। उन्होंने कहा कि कस्तूरी कुण्डल बसे, लेकिन मृग ढूंढ़े वनमाही। संसार की सुविधाओं और भोगविलासों में हम अपना सुख खोजते हैं और हमारे अंदर परमात्मा को हम भूल जाते हैं। उन्होंने कहा कि आत्मा का स्वभाव धर्म है और जब हम अपने धर्म में स्थित होंगे तो मोझ मार्ग सामने खड़ा नजर आएगा।