कलियुग में पा​र्थिव शिवलिंग ही श्रेष्ठ है

शिवपुरी। निर्गुण निराकार ब्रम्हा, विष्णु एवं शिव ही लिंग के मूल कारण है तथा स्वयं लिंग रूप है। शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध आदि से रहति अगुण अलिंग तत्व को ही शिव कहा गया है तथा शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध आदि में संयुक्त प्रधान प्रकृति को ही उत्तम लिंग कहा गया है।

पंच भूतात्मक अर्थाथ पृथ्वी, जल, तेज, आकाश, वायु से युक्त है, स्थूल है, सूक्ष्म है, जगत का विग्रह है तथा यह लिंग तत्व निर्गुण परमात्मा शिव से स्वयं उत्पन हुआ है। इस सृष्टि की रचना पालन तथा संहार करने वाले वे एक ही मात्र महेश्वर है। वे ही महेश्वर क्रम पूर्वक तीनों रूपों में होकर सृष्टि करते समय रजोगुण से युक्त रहते हैं, पालन की स्थिति में सत्व गुण में रहते हैं तथा प्रलय काल में तमोगुण आविष्ट रहते हैं। वे ही भगवान शिव प्राणियों के सृष्टिकर्ता, पालक, तथा संहर्ता है।

वेदों महापुराणों में पार्थिव शिलिंग की महिमा कही गई है। सब लिंगों में पार्थिव लिंग श्रेष्ठ है जिसके पूजन से बहुत से लोग सिद्ध हो गये। ब्रह्मा, विष्णु और कितने ही ऋषि मुनियों का पार्थिव लिंग के पूजन से उनके मनोरथ सिद्ध हो गये हैं। देवता, दैत्य, मनुष्य, गर्न, सर्प एवं राक्षस शिवलिंग की पूजा करके परम सिद्धि को प्राप्त हो चुके हैं। सतयुग में रत्न का, त्रेता में स्वर्ण का, द्वापर में पारे का और कलयुग में पार्थिव शिवलिंग सर्वश्रेष्ठ है। पार्थिव मूर्ति के अनंत पूजन से तप से भी अधिक फल प्राप्त होता है। सव वर्णों में ब्राह्मण श्रेष्ठ है, सव पुरियों में काशी पुरी सर्वश्रेष्ठ है, जैसे सब व्रतों में शिवरात्रि का व्रत सर्वश्रेष्ठ है और जैसे शिव शक्तियों में शिवीर शक्ति सर्वरेष्ठ मानी जाती है, वैसे ही सव लिंगों में पार्थिव लिंग का आराधन परम पवित्र पूर्ण रूप और धन तथा आयु की वृद्धि करने वाला, तुष्ठि-पिुष्टि लक्ष्मी का देने वाला तथा कार्य का साधन करने वाला है। जो पार्थिव लिंग बनाकर जीवन पर्यन्त शिवजी का नित्यप्रति पूजन करता है वह परलोक का भागी होता है तथा असं य वर्षों तक वहां रहकर शिवलोक से लौट भारत खण्ड का राजा होता है। निष्काम भावना से जो नित्य पार्थिव लिंग का पूजन करता है उसे सायुज्य मुक्ैित प्रापत होती है। 

जो ब्राह्मण होकर भी पार्थिव लिंग की पूजा नहीं करता वह अत्यंत दारूण शुल नामक घोर नरक को प्रापत होता है। रत्न, सुवर्ण, स्फटिक तथा पार्थिव पुष्प राग से उत्पन्न लिंग हो, उसे भली प्रकार सजाकर पूजा करें। वेद सूत्रों की विधि से स्नान करके फिर ब्रह्मयज्ञ कर पीछे तर्पण करें और सब नित्य कर्मो को करके शिव स्मरण करके स्म तथा रूद्राक्ष को पहले ही धारण कर लेवे फिर भक्ति रेष्ठ पार्थव लिंग की वेदोक्त विधि से भली प्रकार पूजा करें। किसी नदी के तट पर जंगल में शिवालय या पवित्र देश में पूजन करना चाहिए। पवित्र देश में उत्पन्न हुई मिट्टी को प्रयत्न से लाकर सावधान हो शिवलिंग की पूजा करनी चाहिये। मृतिका को जल से शद्ध करके धीरे-धीरे उसके लिंग वनावे और नम: शिवाय इस मंत्र से पूजन सामग्री का शोधन करें, फिर भुरसि इस मंत्र द्वारा क्षेत्र सिद्धि करें। आयोस्मान द्वारा जल का संसकार करें। नमस्तेरूद्र इस मंत्र से स्फटिक बंध करें। नम: शिवाय इस मंत्र से क्षेत्र की शद्धि करें। नम: मंत्र से पंचामृतक प्रोक्षण करें। नमोलग्रीवाय इस मंत्र से लिंग की प्रतिष्ठा करें। एत्तरूद्राक्ष मंत्र से भक्ति सहित स्मणीय आसन देवे। 

नमोमहान्तम इस मंत्रसे आवाहन करें, यातेरूद्र इस मंत्र से आवाहन करें, यातेरूद्र इस मंत्र से उपदेश करें। यामिषुम इस मंत्री द्वारा स्नेह सहित अधिभास करें। आसौजी इस मंत्र द्वारा देवोन्यास करके, आयोसौ व समपति इस मंत्र द्वारा उपस पर्ण करें। नमोस्नतुनीलग्रीवाय इस मंत्र से मनु द्वारा पाद्य स्नान और रूद्रगायत्री द्वारा अध्र्य देकर त्रित्वकम मंत्र द्वारा आचमन करावें। दधिक्राण इस मंत्र द्वारादधि स्नान कराकर, घृत घाव इस मं9 द्वारा दूध स्नान करावें। इस तरह वेद की विधि से बुद्धिमान लोग शंकरजी का पूजन करते हैं, उनको शिवजी उत्तम फल प्रदान करते हैं। शिव के नामो ंसे ही पार्थिव लिंग की पूजा करें। जैसे हर महेश्वर, शंभु, शूल, पाणि, पिनाकधरी, शिव, पशुपति, महादेव, गिरिजापति, आदि इस क्रम से मृतिका लाकर उसमें सुगन्धित द्रव्य मिलावे, फिर सोने का शोधन करके प्रतिष्ठा और आवाहन करके, स्नान पूजन और क्षमा याचना करके विसर्जन करें। फिर भक्तिपूर्वक ओम् नम: शिवाय मंत्र का जाप करता हुआ शिवजी का ध्यान नित्यप्रति करें।