कांग्रेस की जिलाध्यक्षी नहीं करना चाहते रामसिंह, विकल्प की तलाश शुरू

शिवपुरी। जिला कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए ढाई साल पहले रामसिंह यादव ने जमीन आसमान एक कर दिया था और इस कारण लगभग जिला कांग्रेस अध्यक्ष बन चुके बैजनाथ सिंह यादव को हाथ धोना पड़ा था, लेकिन अब रामसिंह यादव को जिला कांग्रेस अध्यक्ष पद रास नहीं आ रहा। वह स्थानीय सांसद और पूर्व मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया से अनेक बार पद से मुक्त होने की इच्छा व्यक्त कर चुके हैं।

लेकिन उनकी सुनवाई नहीं हो रही। सूत्र बताते हैं कि पार्टी आला कमान अब इस बात पर विचार कर रहा है कि क्या पूरी तरह से रामसिंह यादव को पदमुक्त कर नए जिला कांग्रेस अध्यक्ष की नियुक्ति की जाए या फिर उन्हें बनाए रखते हुए कार्यवाहक जिलाध्यक्ष की घोषणा की जाए।

खतौरा निवासी रामसिंह यादव शिवपुरी जिले के उन गिनेचुने कांग्रेसी नेताओं में से एक हैं। जिन्हें सिंधिया राज परिवार का बरदहस्त हासिल है। इस कारण जिला स्तर की राजनीति में रामसिंह यादव ने अनेक पदों पर काबिज होने का मौका पाया है। जिला कांग्रेस अध्यक्ष वह एक बार नहीं, बल्कि दो-दो बार बने हैं और जिपं अध्यक्ष बनने का भी उन्हें सौभाग्य मिला है। उनके मन में सिर्फ  एक ही कसक थी कि विधायक पद का टिकट मिलने के बाद भी वह चुनाव नहीं जीत पाए।

पहले वह करैरा से सन् 98 में चुनाव हारे और फिर 2008 के विधानसभा चुनाव में कोलारस से उन्हें मात खानी पड़ी। विधायक न बन पाने के कारण उन्होंने जिला कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए दोबारा जोर लगाया और श्री सिंधिया को इमोशनल कर वह जिला कांग्रेस अध्यक्ष बन बैठे। विपक्ष में रहते हुए संगठन चलाने के लिए कितनी दिक्कतें आती हैं, कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं, कितने आर्थिक संसाधन झोंकने पड़ते हैं। यह उन्हें अध्यक्ष बनने के बाद एहसास हुआ।

लेकिन पार्टी में रूतबा बनाए रखने के लिए जिला अध्यक्षी एक बहुत बड़ी ढाल है यह भी वह जानते हैं। परंतु 2014 के विधानसभा चुनाव में कोलारस से वह विधायक पद पर निर्वाचित हुए और संयोग से ही सही उपलब्धियों की दृष्टि से उनका अध्यक्षीय कार्यकाल काफी उल्लेखनीय रहा। प्रदेश में चल रही शिवराज लहर के बावजूद जिले की पांच विधानसभा सीटों में से कांग्रेस तीन सीटों पर विजयी हुई।

वहीं लोकसभा चुनाव में भी मोदी फेक्टर के बावजूद कांग्रेस प्रत्याशी ज्योतिरादित्य सिंधिया एक लाख से अधिक मतों से जीते और रामसिंह यादव के कोलारस क्षेत्र में तो श्री सिंधिया की जीत का अंतर 25 हजार मतों से अधिक रहा। जिला कांगे्रस अध्यक्षी से उनकी प्रतिष्ठा में निश्चित रूप से वृद्धि हुई, लेकिन विधायक बनने के बाद अब उनकी अध्यक्षी में रूचि नहीं रही। क्षमता साबित करने के बावजूद अब दायित्व निभाने का क्या औचित्य था? यह राजनीति की चतुर खिलाड़ी रामसिंह यादव अच्छी तरह समझते हैं। श्री यादव ने सिंधिया के पिछले दौरे में स्पष्ट रूप से उनसे अपनी इच्छा का इजहार किया।

सूत्र बताते हैं कि श्री सिंधिया ने उनसे पूछा कि किसे जिलाध्यक्ष बनाना ठीक रहेगा और पुष्ट सूत्रों के अनुसार श्री यादव ने तर्क सहित अपनी पसंद सिंधिया जी को बताई। जहां तक जिलाध्यक्ष पद का सवाल है फिलहाल जिले की राजनीति में दो नाम चर्चा में हैं। एक तो बैजनाथ सिंह यादव जो कि पिछली बार जिलाध्यक्ष बनते-बनते रह गए थे। जिनकी संगठनात्मक क्षमता अद्भुत है और सभी कांग्रेसियों से उनका अच्छा समंवय है। श्री सिंधिया के प्रति उनकी निष्ठा भी असंदिग्ध है और कभी कभी अपने बयान से उन्होंने पार्टी को संकट में नहीं डाला। बैजनाथ सिंह आर्थिक रूप से संपन्न हैं और सबसे खास बात यह है कि न केवल वह यादव बिरादरी से हैं और कोलारस इलाके के भी हैं।

लोकसभा चुनाव के बाद सांसद प्रतिनिधि हरवीर सिंह रघुवंशी भी सिंधिया के काफी नजदीक आए हैं। जिलाध्यक्ष भले ही रामसिंह यादव हैं, लेकिन उनका अधिकतर कार्य हरवीर सिंह ही देखते हैं। आसार ऐसे हैं कि बैजनाथ सिंह और हरवीर सिंह के बीच ही रामसिंह यादव के उत्तराधिकारी का फैसला होगा।