श्रावण मास में मंदिर एवं घरों में पार्थिव शिर्वाचन अनुष्ठान करके भक्ति में डूबे हैं लोग

शिवपुरी। श्रावण मास के पावन पर्व पर एक माह तक चलने वाली शिव उपासना और उसके अनुष्ठान से प्राणियों को होने वाले शुभ-लाभ के संबंध में जानकारी देते हुए धाय महादेव खोड़ के सेवक आचार्य रामरतन शास्त्री ने बताया कि शिव एक उपाधि है जिसकी उपासना ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों देव करते है यह निराकर ब्रह्म का शिवलिंग स्वरूप साकार है जिसकी उपासना करने से जगत के पालनकर्ता भगवान विष्णु, जगत के जन्मकर्ता भगवान ब्रह्मदेव एवं जगहर्ता सदाशिव भगवान शंकर प्रसन्न होते है। शिव उपासना के लिए साधनों के साथ भावविभोर होने की जरूरत है।

अकिंचन(अतिदरिद्र), अपाहिज, नेत्रहीन भी मानस पूजा के माध्यम से शिव उपासना कर सकते है जो कि उनके भाव के अनुसार फलदायी होती है। मंदिर एवं घरों में पार्थिव शिर्वाचन के माध्यम से लोग शिव उपासना करके अपनी मुरादों को पूर्ण करने की प्रार्थना में लीन है। पृथ्वीलोक पर राजा बलि की दानवीरता के कारण स्वयं त्रिदेव चार-चार माह का भ्रमण करते थे लेकिन त्रिशक्तियों महामाया लक्ष्मी, सरस्वती एवं पार्वती के प्रयासों से यह त्रिदेव राजा बलि के बंधन से मुक्त हुए और उसी मुक्त बंधन को अब मानव रक्षाबंधन के रूप में मनाते है। 

श्रावण मास के पावन पर्व पर जहां मंदिरों के साथ-साथ घरों में भी पार्थिव शिर्वाचन के माध्यम से त्रिदेव की उपासना चल रही है। अपने साथी सुनील शास्त्री बूढ़ौन, राजकुमार खोड़ के साथ शिवपुरी पधारे रामरतन शास्त्री जी शिवपुरी में रहकर यहां एक निज निवास पर एक माह का पार्थिव शिर्वाचन कर रहे है। उन्होंने शिव उपासना के संबंध में भारतमत को जानकारी देते हुए बताया कि शिव एक उपाधि है जो निराकार ब्रह्म के रूप में शिवलिंग स्वरूप के साकार रूप से की जाती है। इसकी उपासना करने से तीनों देव ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश प्रसन्न होते है। इन देवों में महेश सदाशिव है जबकि ब्रह्मा और विष्णु परिस्थितियों अनुसार शिव स्वरूप में माने जाते है। 

श्वेत कमल, बेल्वपत्र, धतूरे का फूल एवं अन्य सुगंधित द्रव्यों के माध्यम से यह शिव उपासना की जाती है और जयशिव ओमकारा आरती के माध्यम से तीनों देवों की प्रार्थना होती है। शिवलिंग के संबंध में उन्होंने बताया कि इसकी अद्र्वपरिक्रमा का प्रावधान है जो कि शास्त्रो में उल्लेखित है उसके सदंर्भ में उन्होंने कहा कि बृषं चण्डं बृष चैव सौम सूत्र पुनवृषं अपसंव्यं यातिनान्तु सव्यन्तु ब्रह्म चारिणाम, जिसका अर्थ है कि अद्र्व परिक्रमा की शुरूआत शिवलिंग की सौ य धारा से गृहस्थ व्यक्ति कहीं से भी कर सकता है।

लेकिन ब्रह्मचर्य जीवन यापन करने वाले को यह परिक्रमा नंदीश्वर महाराज की बांयीं ओर से करनी चाहिए। पार्थिव शिर्वाचन, शिव आराधना करने का एक भावविभोर सनातनी प्रावधान है जिसके अनुसार सृष्टि के रचियता के प्रति हम यह भाव प्रकट करते हुए पूजन करते है कि उसने हमारी रचना की है और हम मिट्टी के माध्यम से उसकी रचना करके प्राण प्रतिष्ठा का स्वरूप देकर प्रतिदिन विसर्जन करते है जिससे त्रिदेवों का शुभाशीष मिलता है।