ना सड़क, ना बिजली-पानी, यही है हमारी शिवपुरी प्यारी...

शिवपुरी। स्टेट समय में शिवपुरी शहर को मिनी शिमला के नाम से जाना जाता था। जहां देखने लायक प्राकृतिक झरने, गढ़ी, नेशनल पार्क सहित अनेकों स्थल हैं। लेकिन राजनैतिक उपेक्षाओं के कारण यह रमणीक स्थल न तो प्रदेश और न ही देश के पटल पर अपनी पहचान बना सका हैं। जबकि इस शहर में समस्या ही समस्या उपज चुकी है। बेलगाम प्रशासन और अक्षम जनप्रतिनिधियों ने शहर की काया पलट दी और सुंदर शहर को कचरे के ढ़ेर में तब्दील कर दिया।

शिवपुरी शहर के लिए पिछले वर्षों में कई योजनाएं मंजूर हुईं। सीवेज प्रोजेक्ट, सिंध प्रोजेक्ट, 300 बिस्तर वाला नया जिला अस्पताल, इंजीनियरिंग कॉलेज, पॉलीटेक्निक कॉलेज, फॉरलेन जैसी उपलब्धियां राजनैतिज्ञ अपने खाते में दर्ज कराने का कोई मौका नहीं छोड़ते, लेकिन सच्चाई यह है कि इनमें से कोई भी योजना पूर्ण नहीं हो पाई। सीवर प्रोजेक्ट की बात करें तो इसकी परिणिति यह हुई कि सीवर प्रोजेक्ट के तहत की जा रही खुदाई के बाद नियम विरूद्ध तरीके से गढ्ड़ों को बंद कर दिया गया और अब बारिश में शहरवासियों को मिट्टी धसकने से दुर्घटना का शिकार होना पड़ रहा है। वहीं जिन जगहों पर खुदाई की गई। वहां पड़ी मिट्टी बारिश से कीचड़ में तब्दील हो गई है। इस समस्या से अधिक भयानक समस्या जल समस्या है। जिसे हल करने के लिए सिंध नदी से पानी शिवपुरी लाने के लिए जलावर्धन योजना शुरू की गई थी।

लेकिन इस योजना के पूर्ण होने से  पहले ही यह राजनीति की भेंट चढ़ गई साथ ही नेशनल पार्क सीमा में खुदाई का कार्य मु य वन संरक्षक शरद गौड ने यह कहते हुए रोक लगा दी कि पार्क सीमा में खुदाई होने से वहां लगे पेड़ों को नुकसान होगा। जिस कारण यह बहुप्रतिक्षित योजना अटक गई और शहरवासियों का मड़ीखेड़ा का पानी  शिवपुरी आने का सपना अधूरा रह गया। ऐसी ही स्थिति शहर की बिजली व्यवस्था की है। जबकि प्रदेश के मु यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश को बिजली समस्या से उभारने के लिए अटल ज्योति अभियान का शुभारंभ कर 24 घंटे बिजली देने का वादा किया, लेकिन शिवपुरी जिले में यह योजना लॉप हो गई और भीषण गर्मी में भी 8 से 10 घंटे बिजली कटौती का शेड्यूल निरंतर जारी है। 

समस्या यहीं खत्म नहीं होती। शहर में सूअर समस्या भी एक बड़ी समस्या है। इस समस्या से निजात दिलाने के लिए स्थानीय विधायक और प्रदेश की उद्योग मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया ने पहल की, लेकिन लचर प्रशासन की बदौलत यह समस्या जस की तस है। जबकि इस मामले में हाईकोर्ट ने भी पहल की और एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए तीन माह के अंदर सूअरों के विनिष्टिकरण का निर्देश दिया। लेकिन हाईकोर्ट के आदेश को भी अफसरशाही ने हाईकोर्ट के निर्देश को ही ताक पर रखकर कोर्ट की भी अवमानना कर दी। ऐसी स्थिति में यह शहर किसके भरोसे है। यह कहना मुश्किल है।

न्यायालय की अवमानना के बाद क्यों बख्शे जा रहे दोषी...?
शहर के विकास में बाधक और भ्रष्ट प्रशासन व न्यायालय की अवमानना करने वाले दोषी अफसरों को क्यों बक्शा जा रहा है? यह समझ से परे है। जबकि सूअरों के मामले में न्यायालय ने 7 जून का समय तय किया था साथ ही निर्देश दिया था कि तय समयसीमा में सूअर नहीं हटे तो उन्हें शूट आउट किया जाए। अगर ऐसा नहीं हुआ तो इस मामले में कलेक्टर और सीएमओ दोषी होकर उन पर न्यायालय की अवमानना की कार्रवाई की जाएगी। लेकिन वह समय बीत जाने के बाद भी समस्या जस की तस बनी है और आज तक न्यायालय की अवमानना के लिए दोषियों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। इसी तरह का निर्देश हाईकोर्ट ने जलावर्धन योजना में हो रही देरी को देखते हुए रूका हुआ कार्य शुरू करने का निर्देश देते हुए मु य वन संरक्षक द्वारा नेशनल पार्क सीमा में लगाई गई खुदाई पर रोक को हटाने का आदेश दिया था, लेकिन न्यायालय के फैसले को मु य वन संरक्षक शरद गौड ने ताक पर रखकर हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की योजना बनानी शुरू कर दी है। 

नपाध्यक्ष का नारा हुआ फैल
चार वर्ष पूर्व शहरवासियों का विश्वास प्राप्त कर नगरपालिका के चुनाव में भाजपा को श्रीमती रिशिका अनुराग अष्ठाना ने जीत हासिल की थी और अध्यक्ष पद पर काबिज हुईं और शहर के विकास के लिए उनके द्वारा बड़े-बड़े वादे भी किए गए। साथ ही शहर को क्लीन और ग्रीन बनाने के लिए क्लीन शिवपुरी ग्रीन शिवपुरी का नारा दिया। लेकिन अब उनका अध्यक्षीय कार्यकाल समाप्ति की ओर है और जो समस्याएं पिछले अध्यक्षों के कार्यकाल में थीं वह समस्याएं आज भी जस की तस हैं और ग्रीन शिवपुरी क्लीन शिवपुरी का नारा शहर की दुर्दशा के आगे बेबस नजर आ रहा है यह नारा पूरी तरह से फैल नजर आया।