शिवपुरी की धन्यवाद सभा में बड़े दु:खी मन से नई कांग्रेस बनाने के संकेत दे गए सिंधिया!

शिवपुरी। मोदी की सुनामी थपेड़ों से बचकर अपराजेय योद्धा के रूप में एक बार फिर सिंधिया परिवार के उत्तराधिकारी की जीत हुई है इस जीत ने जहां प्रदेश ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया की फिर से पहचान 16वीं लोकसभा के निर्वाचन के बाद कायम की है।

लेकिन अपने गुना-शिवपुरी संसदीय क्षेत्र में आने वाली आठ विधानसभाओं शिवपुरी, कोलारस, पिछोर, गुना, बमौरी, मुंगावली, अशोकनगर एवं चंदेरी में से गढ़ माने जाने वाली सीट शिवपुरी एवं गुना से सिंधिया की करारी हार ने उनके मन को दु:खी किया है और दु:खी मन ने उन्हें इस बात के लिए प्रेरणा दी है कि आने वाले समय में केवल सरकारी योजनाओं के बजट या अतिरिक्त विकास कार्यों के लिए फण्ड का आवंटन कराना ही उनके भविष्य की राजनैतिक जीवन के लिए पर्याप्त नहीं होगा।

16 लोकसभा चुनावों में से जहां सिंधिया परिवार 14वीं बार गुना-शिवपुरी संसदीय सीट से विजयी हुआ है और इस विजय में कहीं ना कहीं सिंधिया परिवार के राजनैतिक कार्यप्रणली को लेकर प्रश्रचिह्न जरूर लगे है। शायद इन्हीं को भंापकर सिंधिया आने वाले समय में अपनी नई पलटन को खड़ा करने का मन बना चुके है जिसके संकेत उन्होंने धन्यवाद सभा में सार्वजनिक तौर पर जनता के बीच दिए। अपने उद्बोधन में किसी भी नेता का उन्होंने मंच से नाम नहीं लिया।

धन्यवाद सभा के संबोधन में जिला कांग्रेस अध्यक्ष व विधायक कोलारस रामसिंह यादव ने भारतीय जनता पार्टी की इस ऐतिहासिक जीत के लिए मीडिया मैनेजमेंट को जि मेवार माना और उनके अलावा धन्यवाद स ाा में अधिकांश वक्ताओं जिनमें शहर कांग्रेस अध्यक्ष राकेश आमोल, ग्रामीण अध्यक्ष भरत रावत, पूर्व विधायक गणेश गौतम, हरिबल्लभ शुक्ला, अब्दुल खलील ने शिवपुरी विधानसभा की जनता को कोसने में कोई परहेज नहीं किया। जहां एक ओर उन्होंने ज्योतिरादित्य सिंधिया के विकास से जुड़े प्रयासों की सराहना की तो वहीं दूसरी ओर जनता के नकारने पर उसे भी कोसना नहीं भूले।

 लेकिन यह फर्जी कद्दावर वक्ता और सिंधिया के सिपाही इस बात का आत्म मंथन नहीं कर पाए कि सिंधिया की सेना में इनको राजनैतिक ताकत मिलने के बाद भी इनकी आवाज जनता के बीच बुलंद क्यों नहीं है। ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे वैभवशाली व्यक्तित्व के साथ काम करने वाले ये लोग तीन-तीन दशको के बाद भी अपनी औकात जनता में क्यों नहीं बना पाए ? और ठीकरा जनता के सिर अपने नेता के सामने मंच पर फोड़ते नजर आए।

गुना संसदीय सीट से चौथी बार निर्वाचित होने के बाद धन्यवाद सभा करने पहुंचे ज्योतिरदित्य सिंधिया ने जनता के सामने इस बात को खुले तौर पर स्वीकार किया कि उनके कामों में कहीं ना कहीं कमी रही है, शायद इसीलिए गुना और शिवपुरी की जनता ने उन्हें अपना विजयी समर्थन नहीं दिया, लेकिन इसके बाबजूद भी सिंधिया ने जनता को आश्वस्त किया कि इन विपरीत राजनैतिक परिस्थितियों में भी वह जनसेवा के मार्ग से विचलित नहीं होंगें। सिंधिया के आगमन को लेकर जहां कोलारस व पिछोर के कार्यकर्ताओं में भारी उत्साह था वहीं शिवपुरी विधानसभा के नेता डर के मारे भीगी बिल्ली की तरह पूंछ दबाए फिर रहे थे।

लेकिन सिंधिया ने इन लोगों से कोई अपेक्षा पूर्ण वार्तालाप ना करके इनकी उपेक्षा के सीधे संकेत दिए और अब यह जरूरी भी ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए शिवपुरी में होता दिखाई देता है कि उन्हें नए लोगों को अपने साथ जोडऩा होगा, यह घिसे पिटे कांग्रेस के मोहरे जो केवल सिंधिया के कंधों पर लदकर सिंधिया के वैभव से जुड़कर अपनी राजनैतिक रोटिंयंा सेंकने के लिए तैयार खड़े रहते है और कुछ लोग पूॅंजी के दम पर सिंधिया की राजनैतिक विरासत को कारोबार में बदलना चाहते है इन्हें सिंधिया को समझने की जरूरत है। अधिकांश वक्ता मंच से इस बात का उल्लेख नहीं कर पाए।

 कि हार के कारणों में उनकी कोई जि मेदारी बनती है या नहीं, केवल अब्दुल खलील ने इस बात का जिक्र किया कि जिला कांग्रेस  एवं शहर कांग्रेस के कार्यकर्ता ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रयासों को आमजन तक पहुंचाने में नाकामयाब हुए है वहीं ग्रामीण कांग्रेस की बात की जाए तो सुरवाया व खोड़ सेक्टर में भी ग्रामीण कांग्रेस पराजित हुई है। युवा शक्ति जिसकी दम पर देश के भावी प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी ने भाजपा के सपने को साकार कर दिया, उस युवा शक्ति को लेकर ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे युवा राजनेता को विचार करना जरूरी है। आम आदमी सिंधिया के साथ जुड़ा हुआ अपने को महसूस करता है शायद इसीलिए इन विपरीत परिस्थितियों में सिंधिया की जीत हुई है।

लेकिन जिन लोगों के चेहरे जनता देखना पसंद नहीं करती वो सिंधिया के कंधे पर लदे दिखाई देते है तो यह वोटों का अंतर आ जाता है। यदि मैनेजमेंट के हुनर को सिंधिया ने इस चुनाव में नहीं भुनाया होता तो निश्चित तौर पर राजनैतिक दृष्टि से अपाहिज हुए इन योद्धाओं की वजह से या तो सिंधिया की जीत 50 हजार से नीचे होती या वाकई राजनीति को जनसेवा के रूप में करने वाला सिंधिया परिवार पराजित भी हो सकता था।

माधवचौक चौराहे पर सिंधिया के आगमन के बाद कांग्रेसियों ने उनका आत्मीय स्वागत किया। जितने लोग स्वागत करने के लिए मंच पर दिखाई दे रहे थे उन सभी नेताओं की सं या के आधार पर जनता पाण्डाल में दिखाई नहीं दी। यह सब भंापकर ही सिंधिया ने नए राजनैतिक पलटन को खड़ा करने के जो संकेत मंच से दिए है। यदि उन पर सिंधिया खरे नहीं उतरे तो इस चुनाव ने यह साबित कर दिया है कि राजनैतिक मैनेजमेंट के अलावा यदि सिंधिया ने जनसेवा की नई फौज खड़ी नहीं की तो इन तीस मारखाओं के कारण उन्हें एक दिन पराजय का मुंह जरूर देखना पड़ सकता है।