मोदी की लहर पर सवार भाजपा के हाथ लगी निराशा, स्थानीय विरोध बन सकते हैं कारण

शिवपुरी। गुना और शिवपुरी विधानसभा क्षेत्रों में जिस तरह से भाजपा को विजय हासिल हुई उससे इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि गुना संसदीय क्षेत्र में भी मोदी लहर का असर पूरे शबाब पर था। लेकिन इसके बाद भी संसदीय क्षेत्र की 8 विधानसभा सीटों में से 6 पर भाजपा को पराजय मिली तो इसके लिए पार्टी के स्थानीय क्षत्रप नेताओं का विरोध मु य कारण है।
विधानसभा चुनाव में भी भाजपा लहर के बावजूद भाजपा को कोलारस, पिछोर, मुंगावली, चंदेरी और ब हौरी सीट पर हार का सामना करना पड़ा था। लोकसभा चुनाव में भी यही सिलसिला जारी रहा, बल्कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा को अशोकनगर सीट पर भी पीछे छोड़ दिया।

जहां विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी गोपीलाल जाटव विजयी हुए थे। पिछोर में भाजपा जहां विधानसभा चुनाव में महज 7 हजार मतों के अंतर से पीछे रही थी। वहीं इस बार लोकसभा चुनाव में भाजपा की हार का आंकड़ा 22 हजार से अधिक मतों पर पहुंच गया। शिवपुरी और गुना के परिणाम यथावत् रहे, लेकिन इसके बाद भी विधानसभा चुनाव में भाजपा जहां शिवपुरी से 11 हजार से अधिक मतों से विजयी रही थी। वहीं उसकी जीत का आंकड़ा सिकुड़कर साढ़े चार हजार मतों का रहा। गुना विधानसभा क्षेत्र में भी भाजपा 45 हजार मतों से विधानसभा चुनाव में विजयी रही थी। वहीं इस बार कांग्रेस प्रत्याशी ज्योतिरादित्य सिंधिया ने लोकसभा चुनाव में हार का अंतर 33 हजार मतों का पाटकर महज 12 हजार मतों से पराजय प्राप्त की।

गुना लोकसभा क्षेत्र के चुनाव परिणाम हार के बावजूद भाजपा के लिए उत्साह बढ़ाने वाले हैं, क्योंकि भाजपा ने किसी न किसी हद तक महल की मजबूती को विचलित करने का कार्य अवश्य किया है। जिला मु यालय शिवपुरी और गुना सीट पर भाजपा की विजय के अपने मायने हैं, लेकिन सवाल यह है कि जो लहर जिला मु यालय से उठी उसका असर गुना लोकसभा की अन्य विधानसभा सीटों पर क्यों नहीं पड़ा।

गुना और शिवपुरी में सिंधिया की पराजय के बाद भी संकेत साफ है कि विधानसभा चुनाव की तुलना में कांग्रेस का प्रदर्शन कहीं अच्छा रहा है। इससे स्पष्ट है कि सिंधिया फैक्टर शहरी इलाके में धूमिल होने के बावजूद भी कुछ न कुछ हद तक अपना प्रभाव बनाए हुए है। भाजपा के लिए यह आत्मावलोकन का ठीक समय है। गुना और शिवपुरी में पार्टी के पास महल से इतर कोई स्थानीय नेतृत्व नहीं है, लेकिन इसके बावजूद भी दोनों विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा का प्रदर्शन लोकसभा चुनाव में बहुत शानदार रहा, लेकिन कोलारस, चंदेरी, ब हौरी, अशोकनगर और मुंगावली में मजबूत स्थानीय नेतृत्व के बावजूद भाजपा लोकसभा चुनाव में बहुत बुरी तरह से पिछड़ी। इससे साफ है कि वहां भाजपा के स्थानीय नेतृत्व से जनता को गहन नाराजगी है।

मुंगावली में राव देशराज सिंह, ब होरी में केएल अग्रवाल और कोलारस में देवेन्द्र जैन का मुखर विरोध है। खास बात यह है कि उपरोक्त तीनों नेता महल के खिलाफ जमकर दहाड़ते हैं और महल के खिलाफ मोर्चा लेने का कोई मौका नहीं छोड़ते। ज्योतिरादित्य सिंधिया को पराजित करने के लिए इसी तिकड़ी ने अंतिम क्षण में पार्टी आला कमान पर दबाव डालकर हरिसिंह कुशवाह आईपीएस का टिकट कटवाकर जयभान सिंह पवैया को दिलवाया था। लेकिन जनता के बीच इन नेताओं की कोई पकड़ नहीं हैं। यह विधानसभा चुनाव और इसके बाद लोकसभा चुनाव में भी स्पष्ट हो गया। कोलारस में विधानस ाा चुनाव में देवेन्द्र जैन 25 हजार मतों से हारे थे, लेकिन लोकसभा चुनाव में भाजपा यहां से 29 हजार मतों से हारी।

मुंगावली में विधानसभा चुनाव में राव देशराज सिंह की लगभग 21 हजार मतों से पराजय हुई थी, परंतु लोकसभा चुनाव में उनके भरपूर प्रयास के बावजूद भाजपा यहां से 30 हजार मतों के भारी अंतर से पराजित थी। ब होरी में भी यही सिलसिला रहा। विधानसभा चुनाव में केएल अग्रवाल को 18 हजार 600 मतों से कांग्रेस प्रत्याशी महेन्द्र सिंह सिसोदिया से पराजित होना पड़ा था। इस बार वह इस अंतर को सिर्फ 4 हजार तक ही पाट पाए। इससे साफ है कि सिंधिया को चुनौती देने वाले भाजपा नेताओं को जनता के बीच भी अपनी पकड़ बनानी होगी और अपने जनाधार को वह जनापेक्षाओं को पूरा कर ही बढ़ा सकते हैं अन्यथा महल को नेस्तनाबूत करने का उनका सपना, सपना ही रहेगा, बल्कि वह उपहास के पात्र बनते हैं और बनते रहेंगे।

मोदी लहर में भी सुधरा कांग्रेस का प्रदर्शन

लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए परिणाम ज्यादा निराश करने वाले नहीं रहे, बल्कि विधानसभा चुनाव की तुलना में कांग्रेस का प्रदर्शन सुधरा है। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने जहां पांच सीटों पिछोर, कोलारस, ब होरी, मुंगावली, चंदेरी पर कब्जा किया था। वहीं लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने न केवल इन सभी सीटों पर कब्जा बरकरार रखा, बल्कि अशोकनगर सीट में भी बढ़त हासिल की। जिन 2 विधानसभा क्षेत्रों शिवपुरी और गुना में सिंधिया पराजित हुए। वहां भी कांग्रेस का प्रदर्शन सुधरा है और कांग्रेस ने अपनी हार के अंतर को काफी हद तक पाटा है। पिछोर में कांग्रेसस जहां विधानसभा चुनाव में महज 7000 मतों से जीती थी। वहीं सिंधिया ने जीत के अंतर को तीन गुने से अधिक कर 22 हजार से अधिक मतों से विजय प्राप्त की।

लोधी मतदाताओं ने भी नहीं दिया साथ

गुना लोकसभा क्षेत्र के पराजित भाजपा प्रत्याशी जयभान सिंह पवैया साफगोई से स्वीकार करते हैं कि पिछोर विधानसभा क्षेत्र में उन्हें लोधी मतदाताओं के जिस समर्थन की उ मीद थी। वह उन्हें नहीं मिली। जबकि विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी प्रीतम लोधी ने यहां से कांग्रेस प्रत्याशी केपी सिंह को जातिगत समीकरण के बलबूते कड़ी टक्कर दी थी। श्री पवैया कहते हैं कि शायद ऊपरी स्तर पर मैनेजमेंट के चलते ऐसा हुआ हो।