माधव राष्ट्रीय उद्यान आर्शीवाद या अभिशाप

शिवपुरी। शिवपुरी की नैसर्गिक सुंदरता और पर्यावरण को देखते हुए भले ही यहां माधव राष्ट्रीय उद्यान की स्थापना की गई हो, लेकिन यह उद्यान शिवपुरी और शिवपुरीवासियों के लिए अभिशाप बन चुका है। इस राष्ट्रीय उद्यान का न तो कोई उपयोग हो पा रहा है और न ही इसका लाभ किसी भी तरह से मिल पा रहा है, बल्कि इसके कारण शिवपुरी के विकास में एक बड़ा अडंगा लगा हुआ है।
राष्ट्रीय उद्यान के कारण शिवपुरी का औद्योगिक विकास ठप्प है।ऐसे में यहां माधव राष्ट्रीय उद्यान शिवपुरी में विकास की जगह अभिशाप बनकर उभरा है जिसके कारण अंचल मं बेरोजगारी बढ़ी और खदानें बंद हुई। आज भी शिवपुरी विकास से कोसों दूर नजर आ रहा है।

 खदानें बंद हो चुकी हैं और बेरोजगारी अपराधों का जनक होने की हद तक बढ़ चुकी है। यही राष्ट्रीय उद्यान है जिसके कारण शिवपुरीवासी वर्षों से सिंध के पानी के लिए तरसे हुए हैं। हर बड़ी योजना के क्रियान्वयन में राष्ट्रीय उद्यान अवरोधक के रूप में कार्य कर रहा है। स्वीकृत फोरलेन का निर्माण कार्य भी नेशनल पार्क की स्वीकृति के कारण प्रारंभ नहीं हो सका है। यहां तक कि हथियारों के लाईसेंस के लिए भी राष्ट्रीय उद्यान प्रबंधन की एनओसी लेनी होती है इस कारण यह भ्रष्टाचार का गढ़ भी बना हुआ है। दूसरी ओर राष्ट्रीय उद्यान देश-विदेश में अपनी छवि भी स्थापित नहीं कर पाया, क्योंकि यहां देखने और दिखाने को कुछ नहीं है।

माधव राष्ट्रीय उद्यान पर्यटकों को आकर्षित करने में भी असफल साबित हो रहा है। यहां पर्यटन को बढ़ाने के लिए सरकार ने अनेक प्रकार के कदम उठा लिए हैं, लेकिन उनका कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा। पर्यटन ग्राम भी सिर्फ शिवपुरी के नव धनाढ्य वर्ग की ऐशगाह बन चुका है। 21 वी शताब्दी में भी शिवपुरी आज जो पिछड़ा हुआ है उसका एक मात्र कारण राष्ट्रीय उद्यान है। आजादी के बाद से शिवपुरी के खाते में सिर्फ एक मात्र उपलब्धि गुना इटावा रेल लाईन है। नि:संदेह इसका श्रेय स्व. माधव राव सिंधिया को है। इस उपलब्धि को यदि छोड़ दिया जाए तो विकास के नाम पर शिवपुरी आज भी 19 वी शताब्दी में अपना जीवन बिता रही है।

निरंतर यहां के हालात विकट होते जा रहे हैं और शिवपुरीवासियों पर पलायन का संकट छाया हुआ है। आज से 25 साल पहले जहां शिवपुरी में पानी की कोई समस्या नहीं रहती थी। कुंओं में पांच-पांच फुट पर पानी था वहीं आज स्थिति यह है कि एक हजार फुट खुदाई के बाद भी जमीन में पानी के दर्शन नहीं होते। यहां की पानी की समस्या यदि हल नहीं हुई तो शिवपुरी का पर्यावरण मानव जीवन के लिए प्रतिकूल हो जाएगा। इसी समस्या के निराकरण हेतु सिंध पेयजल परियोजना बनाई गई। लेकिन राष्ट्रीय उद्यान प्रबंधन की अडंगेबाजी के कारण 7 साल में भी यह योजना पूर्ण होने की स्थिति में नहीं है। राष्ट्रीय उद्यान होने का बेजां लाभ नेशनल पार्क प्रबंधन ने उठाया।

उसकी अडंगेबाजी के कारण सिंध पेयजल परियोजना लटकी हुई है। शिवपुरी में 30-35 साल पहले खदानों का जाल बिछा हुआ था और खदान व्यवसाय शिवपुरी की समृद्धि का कारण था। इस व्यवसाय से लाख-पचास हजार लोग प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए थे। खदानों के कारण ही शिवपुरी के बाजार में रौनक रहती थी और व्यापारियों के चेहरे खिले हुए रहते थे, लेकिन वन संरक्षण अधिनियम की आड़ में खदानें बंद हुईं और इसके साथ ही शिवपुरी के दुर्भाग्य का सिलसिला शुरू हो गया। ऐसा भी नहीं कि खदानें पूरी तरह से बंद हो गई हैं, बल्कि इसकी आड़ में अवैध उत्खनन शुरू हुआ है और खदान माफिया तथा भ्रष्ट अधिकारियों की पौबारह हो गई है।

नुकसान हुआ है तो सिर्फ जनता और सरकार की आय का। राष्ट्रीय उद्यान की आड़ में राजनेता शिवपुरी में औद्योगिकीकरण कोभी नकारते रहे हैं। उनका तर्क रहता है कि शिवपुरी की नैसर्गिक सुंदरता बनाए रखने के लिए औद्योगिकीकरण से दूर रहना होगा और इसके स्थान पर पर्यटन उद्योग को व्यवसाय के रूप में बढ़ाया जाएगा। यह भी हो जाता तो शिवपुरी के भाग्य खुल जाते, लेकिन तमाम प्रयासों के बाद भी शिवपुरी में पर्यटन उद्योग नहीं बन सका। बनता भी क्यों?

जब इस राष्ट्रीय उद्यान में कुछ सैकड़ा हिरणों के अलावा कुछ नहीं है। न तो यहां पेंथर हैं और न ही टाईगर। है तो सिर्फ माधव राष्ट्रीय उद्यान की झील में सैकड़ों की सं या में मौजूद मगरमच्छ जो आए दिन यहां के लोगों के लिए संकट खड़ा करते रहते हैं। समय की मांग है कि शिवपुरी में माधव राष्ट्रीय उद्यान को खत्म किया जाए। जिससे यहां के विकास को नए आयाम मिल सकें।

करैरा में सोन चिरैया अ यारण्य बना संकट

करैरा के सोन चिरैया अ यारण्य में लगभग बीस सालों से एक भी सोन चिरैया नहीं है। यहां तक कि इस अ यारण्य में सोन चिरैया की सूचना देने वाले को सरकार ने ईनाम देने की घोषणा भी की थी, लेकिन जब सोन चिरैया है ही नहीं तो ईनाम किसे मिलता और किसे दिया जाता? लेकिन इसके बाद भी सरकार इस अ यारण्य की अधिसूचना समाप्त करने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रहा। जबकि अ यारण्य  होने से यहां के नागरिकों पर जीवन का संकट छाया हुआ है। अ यारण्य क्षेत्र के किसान न तो अपनी जमीन को बेच पा रहे हैं और न ही उनके बच्चों के शादी विवाह हो पा रहे हैं।

नरवर की भी नहीं बन पाई पर्यटन के क्षेत्र में पहचान

राजा नल की नगरी के रूप में प्रसिद्ध नरवर की भी पर्यटन के क्षेत्र में पहचान नहीं बन पाई। स्व. माधव राव सिंधिया ने नरवर में पर्यटन को बढ़ावा देने के काफी प्रयास किए। फिल्म अभिनेत्री पल्लवी जोशी पर्यटकों के दल के साथ यहां आईं, लेकिन परिणाम वहीं ढांक के तीन पात रहा। नरवर का किला और इसकी सांस्कृतिक विरासत पर्यटकों को मोह नहीं पाई।