क्या बदल पाएगा शिवपुरी का इतिहास...?

राजू (ग्वाल) यादव/शिवपुरी- वर्षों से गुना-शिवपुरी पर एक क्षत्र राज करने वाला सिंधिया परिवार क्या इस बार भी अपना इतिहास दोहरा पाएगा या कहीं शिवपुरी का ही इतिहास ना बदल जाए...। यह बातें इसलिए उठ रही हैं क्योंकि इस बार भाजपा की ओर से दमदार और सशक्त दावेदार के रूप में जयभान सिंह पवैया को मैदान में उतारा है।

यह वही जयभान है जिन्होंने सन् 1998 के चुनाव में ज्योतिरादित्य के पिता कै.माधवराव सिंधिया को कड़ी चुनौती दी थी। उस समय के बाद एक लंबे अर्से के बाद वह कै. माधवराव सिंधिया के सुपुत्र से मुकाबला करने आए है।

बताना मुनासिब होगा कि क्षेत्र में हमेशा से ज्योतिरादित्य सिंधिया का प्रभाव रहा है क्योंकि वह सिंधिया परिवार से है जहां के राजघराने से कै.विजयाराजे सिंधिया और कै.माधवराव सिंधिया भी एक क्षत्र राज कर चुके है। लोकतांत्रिक प्रणाली में यूं तो राज करना किसी राजा का काम नहीं माना जाता लेकिन अपने प्रभाव का अधिकतर प्रभाव क्षेत्र में जरूर देखने को मिल जाता है। बात चाहे यशोधरा राजे सिंधिया की हो या ज्योतिरादित्य सिंधिया की, अब दोनों ही बुआ-भतीजे ग्वालियर छोड़ गुना-शिवपुरी पर अपना कब्जा जमाए बैठे है।

यहां की जनता भी बड़ी दिलचस्प है जिस पर किसी जाति विशेष का प्रभाव नहीं पड़ता। बात चाहे भाजपा के जयभान सिंह पवैया की हो या अन्य किसी प्रत्याशी की, हरेक ने चाहा है कि वह सिंधिया परिवार के क्षत्र को तोड़कर जनता को उनका हक दिलाऐं लेकिन यह अरमान अब तक जितनों ने भी पाला उन्होंने स्वयं ही बाहर जाने का स्वाद चखा है। एक बार फिर से लोकसभा चुनाव में क्या यह करिश्मा बरकरार रहेगा, अब यह चर्चा सुनाई देने लगी है।

भाजपा की मानें तो यहां जयभान सिंह पवैया को इसीलिए चुनाव मैदान में उतारा है ताकि ज्योतिरादित्य के मुकाबले वह सशक्त प्रत्याशी हैं और उनके चुनाव मैदान में होने से ना केवल मोदी फैक्टर का लाभ मिलेगा वरन् शिवराज सरकार की जनहित में चलाई जा रही अनेकों योजनाओं के बल पर वह चुनाव में करिश्मा कर फतह पा लें तो काइै नई बात ना होगी। अंचल में यह बात इन दिनों सिर चढ़कर बोल रही है।

बात यदि सामंतवाद को लेकर की जाए तो यहां सामंतवाद को लेकर दो फाड़ हो सकते है क्योंकि भाजपा के जयभान सिंह जिन पर सामंतवाद पर आरोप लगा रहे है उसमें भाजपा-कांग्रेस दोनों का मेल है। यशोधरा राजे सिंधिया भी उसी परिवार से है जहां से ज्योतिरादित्य सिंधिया इसलिए यहां किसी व्यक्ति विशेष को लेकर ही सामंतवाद की टिप्पणी की जा रही है आखिर हो भी क्यों ना, क्योंकि क्षेत्र को सामंतवाद से मुक्ति दिलाने का संकल्प जो भाजपा प्रत्याशी जयभान सिंह पवैया ले रखें है।

मोदी के आने से बदल सकते हैं समीकरण!

कहा जा रहा है बहुत हो गया महंगाई और भ्रष्टाचार, अब की बार हो बस मोदी सरकार...। इस नारे को देखते हुए ऐसा प्रतीत होता है कि यदि गुना-शिवपुरी संसदीय क्षेत्र पर नरेन्द्र प्रचार कर एक आमसभा को संबोधित कर गए तो निश्चित रूप से यहां के समीकरण बदल सकते है। कहना अतिश्योक्ति ना होगा कि मोदी के आने से यहां भी लहर बदल जाएगी। श्री सिंधिया केवल अपने ही विवेक पर चुनाव लड़ रहे है वैसे तो उन्हें किसी स्टार प्रचारक या कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता की आवश्यकता महसूस नहीं होती, लेकिन यदि भाजपा के जयभान सिंह ने यहां मोदी, शिवराज और उमा जैसे बड़े-बड़े दिग्गजों की सभाऐं करा दी तो संभव है कुछ भी हो सकता है।

दलबदलू भारी पड़ सकते हैं

विधानसभा चुनावों के बाद जिस प्रकार से कांग्रेस के वीरेन्द्र रघुवंशी से चिल्ला-चिल्लाकर अपने ही नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया पर साथ ना देने का आरोप लगाया तब से ही लग रहा था कि वह कांग्रेस को छोड़ देंगें और आखिरकार उन्होंने कांग्रेस से नाता तोड़कर भाजपा को चुना। ऐसे में कोई बड़ी बात नहीं कि श्री सिंधिया को पहले अपनों से ही टक्कर झेलनी पड़ेगी क्योंकि यही दलबदलू श्री सिंधिया को भी भारी पड़ सकते है। बताया जाता है कि विधानसभा चुनाव में जहां वीरेन्द्र ने ग्रामीण क्षेत्रों से भाजपा की यशोधरा राजे सिंधिया को कड़ी टक्कर दी तो कहीं इस बार लोकसभा चुनावों में यह ग्रामीण मतदाता भाजपा को वोट करते हैं तो एक बड़ा वर्ग कांग्रेस के हाथ से फिसल जाएगा। इसके लिए स्वयं भाजपा भी कमरकसकर तैयार है।