शिवपुरी। खुले आसमान के नीचे तीन माह से इलाज के लिए तरस रहे और एक-एक दाने के लिए मोहताज लकवाग्रस्त मुल्का बाथम आखिरकार जिंदगी की लड़ाई हार गया और इस बेरहम दुनिया को छोड़कर चला गया।
जीते जी न तो उसके परिजनों ने और न ही दुनियावालों तथा संवेदनशील सरकार ने उसकी सुध नहीं ली, लेकिन आंख बंद होते ही न जाने कहां से उसका बेटा-बेटी और संवेदनशीलता से शून्य दो भाई प्रकट हो गए। आंखों से झरझर आंसू टपकने लगे और उसके शव को ससम्मान घर ले गए। जिंदा रहते हुए जो सम्मान उसे नहीं मिला। मरने के बाद मिला भी तो उसका अर्थ क्या रहा? आज मुल्का का अंतिम संस्कार कर दिया गया।
मुल्का बाथम गरीब इंसान के संघर्ष की वह जीती जागती कहानी है।
जो यह बताती है कि यह दुनिया सिर्फ पैसे वालों की है और मानवोचित स मान सिर्फ संपन्नों को ही मिलता है। समाज के अंतिम छोर पर रह रहे व्यक्तियों से तो उनके अपने ही नाता तोड़ देते हैं। मुल्का की दो पत्नियां थीं और उनसे तीन पुत्र एवं एक पुत्री। दो भाई भी हैं और तीनों भाई पास-पास ही रहते हैं। उसकी दोनों पत्नियां इस दुनिया में नहीं हैं और तीन पुत्रों में से एक जेल में है। दूसरे का पता नहीं है और तीसरा गुना में अपने बीबी बच्चों के साथ रहता है। पुत्री भी गुना में है। चाय के होटल में काम करता था। जो कुछ भी मिलता था। अपने भाई के हाथ में रख देता था। एवज में उसे दो वक्त की रोटी मिलती थी।
तीन माह पहले फॅालिस मार गया था तो भाईयों ने भी उससे रिश्ता तोड़ लिया था। सिर्फ रिश्ता ही नहीं तोड़ा, बल्कि उसे घर से बेदखल कर सड़क पर फेंक दिया। सर्दी का प्रकोप बढ़ा तो मोहल्ले वालों ने दया करके उसे पास ही स्थित एक कमरे में रख दिया। इसके पूर्व अस्पताल में भर्ती कराया, लेकिन वहां से भी उसे भगा दिया गया। देखभाल के लिए कोई था नहीं। मलमूत्र विसर्जन से जब गंदगी फैलने लगी तो फिर उसे सड़क पर फेंक दिया गया।
पिछले एक माह से वह वीरेन्द्र कुमार जैन के मकान के पिछवाड़े खुले आसमान और कड़कड़ाती सर्दी में एक क बल के सहारे पड़ा हुआ था। उसकी बेदनापूर्ण चीत्कारें सारे मोहल्ले में गूंजा करती थीं, लेकिन किसे परवाह थी? कभी रोटी मिल जाती थी तो कभी नहीं भी। पूरे समय वह कंबल में अपने आप को लपेटे रखता था। उसका शरीर कंकाल मात्र रह गया था, लेकिन न तो उसकी देखभाल और न उसके इलाज की किसी को परवाह थी।
कल जब मुल्का की कारूणिक कहानी तरूण सत्ता के संज्ञान में आई तो इसे इलाज के अभाव में लकवे का शिकार मुल्का के मौत की ओर बढ़ते कदम शीर्षक से प्रकाशित किया गया। उसकी ओर मदद के लिए कुछ जाने-अनजाने हाथ आगे बढ़ते इसके पहले ही उसने कल शाम दुनिया को अलविदा कह दिया और साथ ही समाज के स य एवं सुसंस्कृत होने पर लग गया प्रश्न चिन्ह।
Social Plugin