किसान की जमीन पर सरकारी कब्जा, हुए भवन निर्माण

शिवपुरी-आए दिन जहां देखने सुनने को मिला है कि कोई भी व्यक्ति निज स्वार्थों के चलते तो कुछ भू माफिया की तर्ज पर शासकीय भूमि पर अनायस अतिक्रमण जमाकर अपना मालिकाना हक जताना चाहता है ऐसे कई मामले आए दिन जिला मु यालय पर देखने को मिलते है जिनमें कईओं के शासकीय भूमि हथियाने पर न्यायालय में प्रकरण चल रहे हैं तो कई मामलों में प्रशासन ने शासकीय भूमि को अतिक्रमणकारियों से मुक्त कराया है।

इन सारे मामलों में हर जगह शासकीय भूमि पर ही अतिक्रमण का होना देखा जा सकता है लेकिन अगर शासन ही अतिक्रमण करने लगे तो उसे कौन मुक्त कराएगा, ऐसा ही एक मामला शिवपुरी जनपद से करीबन 15 किमी दूर स्थित ग्राम मुढ़ैरी में निवासरत कृषक मोहन शर्मा के साथ हुआ है। जहां इसकी निजी भूमि पर सरकार द्वारा कब्जा कर लिया गया है। जहां इसकी बिना अनुमति के इसकी भूमि में बीएसएनएल का टॉवर निर्मित कर दिया गया तो प्रधानमंत्री ग्राम सड़क भी इसकी भूमि से निकाल दी गई और तो और आंगनबाड़ी भवन व डीपीआईपी का गोदाम और वर्तमान में निर्मित हो रहे नए पशु चिकित्सा भवन इतने सभी निर्माण शासन द्वारा इस कृषक की भूमि पर कर दिए गए। जिसका अता-पता भी इस कृषक को यह नहीं था कि जहां यह सारा शासकीय निर्माण कार्य चल रहा है वह भूमि उसी की है जिसका ना तो प्रशासन द्वारा उसे कोई सूचना दी गई है और ना ही किसी भी निर्माण पर उसको मुआवजे की राशि प्रदान की गई। जब कृषक मोहन शर्मा ने अपनी पैतृक संपत्ति में मिली कृषि भूमि का सीमांकन कराना चाहा तब जाकर इसे पता चला कि जिस जमीन पर यह दो वर्षों से शासकीय निर्माण होते देखता जा रहा है वह किसी और की ना होकर वह स्वयं की ही भूमि है जिस पर  उसका पैतृक अधिकार बनता है।

0.41 हैक्टेयर भूमि में से बची 0.21 हैक्टेयर
कृषक मोहन शर्मा की ग्राम मुढ़ैरी पर स्थित पैतृक संपत्ति जो तहसील के राजस्व में भूमि सर्वे क्रमांक 396 पर दर्ज है जिसका रकबा 0.41 हैक्टेयर(लगभग दो बीघा) था जिस पर शासन के पांच विभागों ने अनाधिकृत तौर से 0.20 हैक्टेयर भूमि पर भवन निर्माण व प्रधानमंत्री सड़क और दूरभाष का टॉवर निर्मित कर दिया गया। जिसके लिए ना तो भू-स्वामी को किसी भी प्रकार की कोई सूचना दी गई और ना ही कोई मुआवजा के तौर पर कोई राशि दी गई। जब मोहन शर्मा ने अपनी पैतृक भूमि का तहसील कार्यालय से सीमांकन प्रकरण क्रमांक 71/12-13/अ 12 कराया जब मालूम चला कि उसकी निजी भूमि पर शासकीय निर्माण हो चुके है और महज 0.21 हैक्टेयर की भूमि पर ही उसका मालिकाना हक बचा है। यह जानकर उसके होश उड़ गए और उसने तुरत फुरत अपनी पूरी जमीन को बचाने की कवायद शुरू कर दी और तहसीलदार के समक्ष जा पहुंचा। जहां वह अपनी आधी भूमि पर हो चुके शासकीय कब्जे को मुक्त कराने की गुहार आए दिन लगाता फिर रहा है और कह रहा है कि अगर कहीं उसके स्वामित्व की भूमि पर से कब्जा नहीं हटता है तो उसे मुआवजा प्रदान करा दिया जाए।

भू अर्जन किए बगैर कैसे कराए निर्माण
यहां अचंभित बात तो यह रही कि जब भी कोई शासकीय निर्माण कहीं ग्राम में किया जाता है तो संबंधित विभाग को जिला कलेक्टर को भूमि आवंटन से संबंधित एक प्रस्ताव दिया जाता है जिस पर कलेक्टर उस ग्राम के तहसीलदार को भूमि अधिग्रहण के लिए पत्र लिखते है जहां से तहसीलदार का यह कर्तव्य बनता है कि वह पहले जहां शासकीय निर्माण होना है उस गांव का निरीक्षण कर शासकीय ाूमि को देखते है और अगर वहां अगर किसी निज स्वामित्व की भूमि आती है तो वह उससे संबंधित कलेक्टर को सूचित करते है जिस पर जिलाधीश के आदेश पर भू-अर्जन की प्रक्रिया के तहत निज भूमि मालिक को सूचना दी जाती है और भू-स्वामी की स्वीकृति हो जाने के बाद जिस पर उसका शासकीय मुआवजा भी निर्धारित किया जाता है तब कहीं जाकर संबंधित विभाग उस पर निर्माण कार्य प्रारंभ कर सकता है लेकिन यहां तो बगैर भू अर्जन के ही कृषक मोहन की भूमि को शासकीय विभागों ने हथिया लिया और उस पर से अपने शासकीय ावन स्थापित कर दिए जो कि नियम विरूद्ध माना जा रहा है। अब देखना होगा कि अगर कहीं कृषक मोहन शर्मा को तहसील न्यायालय से कोई न्याय नहीं मिला तो वह अपनी गुहार जिला न्यायालय में लगाएगा।

पांच विभागों ने कर दिए अवैध निर्माण
कृषक मोहन शर्मा को पैतृक अधिकार में मिली भूमि 0.41 हैैक्टेयर में से 0.21 हैक्टेयर ाूमि पर प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत सड़क बना दी गई, वहीं महिला बाल विकास विभाग द्वारा आंगनबाड़ी केन्द्र स्थापित कर दिया गया तो दूरसंचार ने अपना टॉवर निर्मित कर दिया और तो और गरीबी हटाओ इंदिरा गांधी उन्मूलन(डीपीआईपी)समिति द्वारा गोदाम बना दिया गया। यह सिलसिला यहीं नहीं रूका अभी हाल ही वर्तमान में यहां पशु चिकित्सा विभाग का पशु अस्पताल का निर्माण कार्य जारी बना हुआ है। अगर कहीं यह संबंधित विभागों से यहां निर्मित किए गए भूमि स्वीकृति पत्र मांगा जाए तो मिलने की संभावना ही नहीं उठती क्योंकि यह शासकीय भूमि ना होते हुए निजी स्वामित्व की भूमि है जिसको इन विभागों द्वारा मुआवजा तो दूर की बात रही सूचना तक की आवश्यकता इनके द्वारा नहीं समझी गई।

इनका कहना है-
मुढ़ैरी के कृषक मोहन शर्मा का मामला तहसील कार्यालय में आया है चॅंूकि यह मामला बीते वर्ष का है जब इन्होंने सीमांकन कराया था अब वर्तमान में यहां शासकीय निर्माण हो चुके है उस स्थिति में मुआवजे के लिए इन्हें न्यायालय की शरण लेनी होगी। रही बात स्वीकृति तो शासकीय निर्माण की भूमि संबंधी स्वीकृति हम कलेक्टर के निर्देश पर देते है अब इसमें क्या हुआ है यह मामला तो मैं देखकर ही बता सकूंगा।
आर.के.पाण्डे
तहसीलदार, शिवपुरी