कांग्रेस ज्वाइनिंग के बाद क्या है गणेश के गणित

शिवपुरी। यूं तो शिवपुरी विधानसभा में होने वाले चुनाव यह दर्शा रहे है कि इस बार भाजपा-कांग्रेस के बीच प्रमुख मुकाबला है इस सब के बीच वर्षों तक कै.माधवराव सिंधिया का साथ थामने वाले गणेश गौतम भी अब भाजपा छोड़ कांग्रेस में आ गए है तो यह संभावना और प्रबल हो गई है कि क्या वाकई में अब कांग्रेस को गणेश का फायदा मिलेगा।

बताया जाता है कि गणेश गौतम के साथ एक वर्ग विशेष के मतदाता खासा लगाव रखते है जिनका झुकाव सदैव गणेश के साथ रहा है भले ही उन्होंने कोई भी पार्टी बदली हो। इस बार भाजपा से जहां यशोधरा राजे सिंधिया ​अपने चुनावी अभियान का बिगुल फूंक चुकी है तो वहीं वीरेन्द्र रघुवंशी भी अपनी फिल्डिंग जमाने में व्यस्त है पार्टीलाइन कहती है कि गणेश को इस बार वीरेन्द्र का साथ देना चाहिए।

गत दिवस गणेश के कांग्रेस में लौटने पर कांग्रेसियो मे उत्साह तो था लेकिन मन की भावनाओं को बाहर किसी नहीं आने दिया। ऐसे में यह बात कही जा रही है कि अब यशोधरा और वीरेन्द्र के बीच गणेश भी मुख्य भूमिका में होंगें और इसका परिणाम आने वाले चुनावों में भी दिखेगा। जबकि बताया जाता है गणेश गौतम जिस प्रकार से पार्टी के लिए समर्पित थे तो शायद आज यह स्थिति ना बन पाए। लेकिन अब देखना होगा कि इस विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस को गणेश से क्या फायदा और नुकसान होता है? यह तो आने वाला समय ही बताएगा।

यशोधरा को बताया पराया

गत दिवस स्थानीय कांग्रेस कार्यालय पर कांग्रेस पार्टी में लौटे गणेश गौतम का खबरनबीसों से कहना था कि अब यशोधरा राजे सिंधिया, सिंधिया परिवार की कहां है, उन्होंने कहा कि हमारे परिवारो में बेटियां पराया धन होती है और उनका विवाह होने के बाद वे दूसरे परिवारों की हो जाती है। इसलिए यशोधरा भी सिंधिया परिवार की नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि माधवराव सिंधिया के समय से सिंधिया परिवार के वह बंधुआं है।

पूर्व में भी कर चुके घर वापिसी

गणेश गौतम की वापिसी को कांग्रेसी खेमा भी पूरी तरह से महज इसलिए नहीं पचा पा रहा, क्योंकि वर्ष 2008 के चुनाव में आधी रात को ज्योतिरादित्य सिंधिया और राजमाता के समक्ष बॉम्बे कोठी पर उनकी घर वापिसी हुई थी। किन्तु अगले ही दिन उन्होंने पत्रकारवार्ता में उस घर वापिसी का खण्डन कर दिया था। कांग्रेसी खेमा तो फिलहाल उनकी वापिसी के साथ इस चुनाव में उनकी निष्ठाओं पर भी संशय खड़े कर रहा है।

...और कै.सिंधिया के बंधुआ नहीं निभा पाए थे अपना धर्म

यदि सही मायने में स्वयं को सिंधिया परिवार का बंधुआ गणेश गौतम कहते हैं तो फिर उस वक्त गणेश कहां गए थे जब स्वयं इन्होंने ही पार्टी के सांवलदास गुप्ता के विधानसभा चुनाव में ना केवल बाहरी रूप से दम देते-देते भोंपू बजवाया और अंतत: बाद में अपने ही प्रयासों से उन्हें हरवा दिया। ऐसे में एक बुजुर्ग व्यक्ति को चुनाव हरवाने वाला कभी सिंधिया परिवार का बंधुआ नहीं हो सकता है। निं:संदेह गणेश की इन बातों में कहीं ना कहीं मोलभाव है यही कारण है कि एक समय कै.माधवराव सिंधिया की आकस्मिक मौत के बाद फिर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कमान संभाली तो क्यों गणेश ने ज्योतिरादित्य का साथ छोड़ा।

ऐसे में चर्चाओं पर गौर करें तो यहां गणेश गौतम सर्वाधिक रूप से पद की लालसा रखते है यही कारण है कि जब भाजपा में इन्हें कोई तवज्जो नहीं मिली तो यह पुन: कांग्रेस में शामिल होने को आतुर हुए।

गणेश के आने से कांग्रेसियों में हो सकती है बगावत!

यहां एक बात तो सामने आने लगी है कि यदि बार-बार गणेश गौतम यूं ही पार्टीयां बदलकर पार्टी को नुकसान पहुंचाते रहे और फिर नुकसान पहुंचाने के बाद पुन: पार्टी में आ जाए तो वह कांग्रेसी ऐसे मे कहां जाऐंगे जो सन् 1977 से कांग्रेस पार्टी के लिए समर्पित भाव से कार्य कर रहे है। बताया जाता है कि अब गणेश गौतम के फिर से भाजपा के बाद पाला बदलने के बाद बने हालातों से कई कांग्रेसी नाराजा है और संभावना व्यक्त की जा रही है कि कहीं आने वाले समय में कई कांग्रेसजन गणेश के कांग्रेस में आने से कांग्रेस पार्टी ही ना छोड़ दें? हालांकि इस बात को कह पाना मुश्किल है लेकिन संभावना से इंकार भी नहीं किया जा सकता है जिन कांगे्रसियों ने आज गणेश को गले से लगाया है तो कल को वही कांग्रेसी आने वाले परिणामों से व्यथित होकर कहीं गणेश और पार्टी से दूरी ना बना लें।

कहीं कोई रणनीति तो नहीं

सिंधिया की सरपरस्ती में राजनीति का ककहरा पढ़ने वाले गणेश गौतम के बारे में कहा जाता है कि भले ही उन्होंने पार्टियां बदलीं परंतु सिंधिया से गद्दारी नहीं की। अपनी बफादारी के चलते कई बार कांग्रेस में उन्होंने अपनी प्राथमिक सदस्यता तक दांव पर लगा दी थी। जो गणेश आज यशोधरा को पराई बता रहे हैं, सब जानते हैं कि इससे पहले गणेश इन्हीं यशोधरा राजे सिंधिया को गुपचुप मदद पहुंचाया करते थे। कांग्रेस में रहते हुए भी गणेश गौतम ने भाजपा की मदद की क्योंकि उनकी प्रत्याशी सिंधिया थी। ऐसे में सवाल यह भी उठ रहा है कि कहीं अचानक कांग्रेस में आ जाने के पीछे कोई रणनीति तो नहीं है। चूंकि इस बार शिवपुरी में यशोधरा राजे सिंधिया का विरोध पहले से कुछ ज्यादा ही है, इसलिए किसी भी गुप्त समझौते से इंकार नहीं किया जा सकता।