चुनाव साईलैंट मौड पर, उत्सव हत्याकाण्ड की कॉलरट्यून तेज

चुनाव विशेष/ललित मुदगल। चुनावी शोरगुल थम गया है। अब शिवपुरी विधान सभा का चुनाव साइलैंट मोड पर आ गया है, और आम मतदाता अपना अपना गणित अपने-अपने पसंदीदा प्रत्याशी के समर्थन में बता रहै हैं।

यहाँ मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच ही है। दोनो ही दलो के प्रत्याशियों ने अपनी पूरी ताकत चुनाव प्रचार में लगा दी है। इस विधानसभा चुनाव में विकास, स्थानीयता के साथ-साथ शिवपुरी की छाती पर लगा दाग, उत्सव हत्याकाण्ड का मुददा प्रमुखता से जनचर्चा में है।

भाजपा की प्रत्याशी यशोधरा राजे ने शिवपुरी को अपना परीवार मानकर सेवा के नाम पर व भाजपा के पिछले भाजपा सरकार के दस साल के कार्यकाल के विकास को गिना कर जनता से अपना आर्शीवाद मांगा है। कांग्रेस के प्रत्याशी  वीरेन्द्र रंघुवशी स्थायनीयता के नाम पर व ज्योतिरादित्य सिंधिया के द्वारा कराये गये विकास कार्यो को दिखा व सिंधिया को सीएम बनाने के लिए कांग्रेस के पक्ष में जनता से वोट करने की अपील कर रहै।

मतदान के कुछ घंटे ही शेष है, यह चर्चा विशेष है कि शिवपुरी का भाग्य उसे किस दिशा में ले जायेगा, यह अभी भविष्य की गर्त में है। चुनाव हमेशा मुद्दो पर ही लड़ा जाता रहा है, यहां भी मुद्दो पर ही लड़ा जा रहा है। यहां विकास का मुद्दा सर्वप्रथम है भाजपा प्रत्याशी अपने लंबित पडी परियोजना को पूरा कराने का संकल्प ले रही है, तो दूसरी ओर कांग्रेस के प्रत्याशी का कहना है कि शिवपुरी के विकास में महत्वपुर्ण परियोजना जो अधूरी हैं वे भाजपा के कारण व उनके नेताओ के कारण ही है।

ये परियोजनाए कांग्रेस के स्थानीय सांसद के प्रयासों के द्वारा ही है। जिसमें महत्वपुर्ण परियोजना जलार्वधन है। इस कारण भाजपा को सबक सिखाने के लिए व विकास के मसीहा ज्योतिरादित्य सिंधिया को मप्र का सीएम बनाने के लिए कांग्रेस को वोट दो।
 
दूसरा मुद्दा यहां स्थानीयता का है। राजे विरोधियों का कहना है ढूढते रह जाओगे, मिलने की तो दूर लोकेशन भी नही ले पाओगे। राजे के समर्थको का कहना है कि ढूंढने की क्या जरूरत है शिवपुरी उनका परिवार है आवाज दो वे मिल जायेगी। पर वे ये नही बता पा रहे है कि आवाज कहां देनी पड़ेगी। इस मुद्दे पर वीरेन्द्र समर्थको का कहना है कि उनके घर घंटी है ना ही चौकीदार सीधे चले आओ। अगर घर नही है तो मोबाइल नम्बर 94251-37188 पर कॉल करो, एसएमएस की तरह चले आयगें।
  
तीसरा मुद्दा यहा तो सबसे ज्यादा उत्सव हत्याकाण्ड का तेज है यह मुद्दा शिवपुरी के चेहरे पर लगा दाग है। जनचर्चा में इस काण्ड की चर्चा सबसे ज्यादा है। जनमानस में इस मुद्दे को लेकर कई तरह की प्रतिक्रियाएं आ रही है। अगर वो फोन नही आता तो उत्सव को बचाया जा सकता था। पुलिस प्रशासन की नाकामी के कारण ही यह हत्याकाण्ड़ हुआ है। जब जनता ने विरोध किया तो जनमानस पर ही मुकदमें लाद  दिये गये। जनता के आक्रोश पर किसने पानी डाला?

उत्सव को शहर ने अपना ही पुत्र समझ कर इस आक्रोश में भाग लिया, उत्सव के परिजनों के साथ पूरा शहर पॉच दिनो तक गम में डूबा रहा। एक मासूम को बेरहमी से मार दिया गया, उसके हत्यारों को करोड़पतियों का संरक्षण मिला, पुलिस कठपुतली की तरह हुकुम बजाती रही, उत्सव की जान बचाने का प्रयास उसने कतई नहीं किया।

ये केवल किसी एक पिता की संतान की हत्या का मामला नहीं था, वक्त के साथ उत्सव पूरी शहर का बेटा हो गया था और जो आक्रोश शिवपुरी में दिखाई दिया वो बिल्कुल वैसा ही था जैसा कि रक्तसंबंधी की नृशंस हत्या पर होना चाहिए था। यह लोकतंत्र का वह चैहरा था जो व्यवस्था की खामियों के बाद सामने आया था। पूरा का पूरा शहर खुद पर से नियंत्रण खो बैठा था, जो कुछ हुआ उससे कहीं ज्यादा हो सकता था। वो तो भला हो परिस्थितियों का कि पुलिस बल मौजूद नहीं था, यदि होता और आंदोलन को कुचलने का प्रयास किया जाता तो ​खुली बगावत सड़कों पर दिखाई दे सकती थी।

इसे अपराध नहीं, जनाक्रोश कहते हैं। ऐसे आक्रोश और विरोध के चलते कई बार नेताओं ने पुलिस के बेरिकेट्स तोड़े हैं, गाड़ियों को भी आग लगाई है। इतिहास गवाह है कि ऐसे आंदोलनों में मामले तो दर्ज होते हैं परंतु गिरफ्तारियां नहीं होतीं। उत्सव हत्याकांड के बाद उपजे आक्रोश और आक्रोश के बाद पुलिस कार्रवाईयां निश्चित रूप से दुर्भाग्यपूर्ण हैं। पुलिस की इस कार्रवाई के खिलाफ किसी ने आवाज नहीं उठाई। ना इन्होंने, ना उन्होंने। दोनों ने शिवपुरी को लावारिस छोड़ दिया, अपने हाल पर। बस यही दर्द लोगों में रह रहकर उठ रहा है। वक्त चुनाव का है इसलिए पुराने घाव हरे हो रहे हैं।

कुल मिलाकर चुनाव का शोर शराबा थम चुका है मतदाता हर मुद़दे को समझ कर मतदान करने का मन बना रहा है। या यूं कह लें चुनाव अब साइैलेंट मोड़ पर आ चुका है और उत्सव हत्याकाण्ड की कॉलरट्यून तेज हो गई है।