...और अंचल प्रतिनिधित्व में उभर रही कांग्रेस की आंतरिक कलह

शिवपुरी। आगामी विधानसभा चुनावों को देखते हुए यह प्रतीत होता है कि एक ओर जहां भाजपा में टिकिट के दावेदारों की लंबी फेहरिस्त है तो वहीं दूसरी ओर कांग्रेस भी इससे पीछे नहीं। हालांकि भाजपा में केवल नाम चर्चाओं में है जबकि कांग्रेस में तो यहां मन के उबाल बाहर आ रहे है। बात करें शिवपुरी, कोलारस, पोहरी, करैरा की तो सर्वाधिक रूप से यहीं से वे कांग्रेसी अपने आप को सशक्त दावेदार मान रहे जो वर्षों से कांंग्रेस में सेवा कर अब अपने फल को प्रतिफल के रूप में देख रहे है।

बात हो चाहे वीरेन्द्र रघुवंशी,  कोलारस से रामसिंह यादव, पोहरी से हरिबल्लभ शुक्ला और करैरा से शकुन्तला खटीक की इन सभी के अलावा कई अन्य चेहरे भी इन क्षेत्रों में मौजूद है जो अपना वर्चस्व क्षेत्र में बताते है जिनमें शिवपुरी से जहां वैश्य समाज और ब्राह्मण समाज से टिकिट की मांग उठी है तो वहीं कोलारस से रामसिंह के विरोध में भी अन्य दावेदारों में बैजनाथ सिंह यादव और रविन्द्र शिवहरे के साथ-साथ पूर्व मंडी अध्यक्ष भरत सिंह चौहान है।

पोहरी क्षेत्र में हरिबल्लभ का घुर विरोध कर रहे कांग्रेसियों में एन पी शर्मा, राजेन्द्र पिपलौदा, सुरेश रांठखेड़ा सहित अन्य कांग्रेसी शामिल है जो स्थानीयता के मुद्दे को लेकर टिकिट की मांग कर रहे है बात रही करैरा की तो यहां भी कांग्रेस में पिछली बार दावेदारी कर चुनाव लड़ चुकी शकुन्तला खटीक का कहना है कि वह पूरे क्षेत्र में बीते लंबे समय से कार्यरत है और जन-जन के बीच उन्होंने अपनी अच्छी पैठ बनाई है जिसका फायदा उन्हें मिलेगा, पिछले चुनावों की गलतियों से सबक लेकर अब सभी से दोस्ती कर ली गई है, इस ओर कांग्रेस से ही योगेश करारे, जसवंत जाटव के बाद अब मिश्रीलाल करारे भी मैदान में आकर अपने टिकिट की आकांक्षा रखते है। इन सभी कांग्रेसियों ने भी अपना क्षेत्र में बर्चस्व बना रखा है ऐसा इनका मानना है। कुल मिलाकर देखा जाए तो यहां पिछोर को छोड़कर शेष सभी विधानसभाओं में कांग्रेसियों की अंतकर्लह या यूं कहे कि मन की बात सामने आने लगी है।अब इस ओर फैसला तो पार्टी को करना है लेकिन सभी  अपने दावों के सहारे नेतृत्व की स्वीकार्यता को मानकर चल रहे है।

बात करें शिवपुरी, कोलारस, पोहरी और करैरा विधानसभा सीटों पर सिंधिया खेमे में आंतरिक घमासान चरम पर पहुंच गया है। इस केंप में कोई भी एक ऐसा उम्मीदवार नहीं है। जिस पर लगभग आम सहमति की स्थिति हो, बल्कि जिन्हें टिकट मिलने के संकेत सिंधिया की ओर से दिए गए हैं उनके प्रति तो विरोध का दावानल सारी सीमाएं लांघ गया है। यहां तक कि असंतोष की अग्रि से जिला कांग्रेस अध्यक्ष रामसिंह यादव भी नहीं बचे हैं। पूर्व विधायक वीरेन्द्र रघुवंशी के विरूद्ध उनके नजदीकी माने जाने वाले नेताओं ने भी तलवारें तान ली हैं। सारे लिहाज खत्म हो गए हैं। पूर्व विधायक हरिवल्लभ शुक्ला का विरोध तो इतना घना है कि स्थिति यहां तक पहुंच गई है कि यदि उन्हें टिकट मिला तो सिंधिया के खिलाफ भी विरोधी बगावत कर दें तो काई आश्चर्य नहीं है।

ऐसा भी नहीं कि रामङ्क्षसह, वीरेन्द्र और हरिवल्लभ का टिकट काट दिया जाए तो असंतोष समाप्त हो सकता है। इनके विरोध में भी किसी उम्मीदवार के पक्ष में आम सहमति नहीं उभर रही। शायद इसी कारण जिला कांग्रेस अध्यक्ष रामसिंह यादव यह कहने में संकोच नहीं करते कि यदि उनके विरोधी किसी एक नाम पर सहमत हो जाएं तो वह भी इसके लिए तैयार हैं। शिवपुरी और पोहरी की कथा भी इससे भिन्न नहीं है। विरोधियों में भी इतना विरोधाभाष है कि उसमें भी कोई रास्ता बनता हुआ नजर नहीं आ रहा। विरोधियों से काफी समय पूर्व से पूर्व विधायक हरिवल्लभ शुक्ला उलझ रहे हैं। शिवपुरी में भी पूर्व विधायक रघुवंशी को कभी वैश्य और कभी ब्राह्मण उम्मीदवार की पैरवी कर झटका दिया गया। ऐसी ही स्थिति करैरा में शकुंतला खटीक की है, लेकिन सबसे ताजा मामला जिला कांग्रेस अध्यक्ष रामसिंह यादव का है।

कांग्रेस जिलाअध्यक्ष ने कहा कौन उम्मीदवार सामने तो आए...

जिला कांग्रेस अध्यक्ष रामसिंह यादव अपनी संभावित उम्मीवारी के खिलाफ पार्टी में चल रही गतिविधियों से काफी खिन्न और निराश हैं। वह यहां तक कहते हैं कि मैं क्यों राजनीति में चला आया। इसने मेरा सुख-चैन सब छीन लिया है। जीवन के चौथेपन में हरिद्वार में होना चाहिए और मैं कहां भटक रहा हूं? फिर वह कहते हैं कि काहे के लिए मेरा विरोध कर रहे हैं। सर्वे में नाम आए टिकट ले जाओ मुझे क्या दिक्कत है। 

इसके बाद भी मैं त्याग करने को तैयार हूं। महाराज से स्वयं जाकर कह दूंगा मुझे टिकट नहीं चाहिए, लेकिन पहले यह तो बताओ कि किसे चुनाव लड़ाना चाहते हैं? कोई एक नाम तो तय करो। मेरे लिए अपनी जीत उतनी महत्वपूर्ण नहीं है जितनी महत्वपूर्ण कांग्रेस की जीत है। कोलारस में कांग्रेस जीतना चाहिए भले ही उम्मीदवार कोई भी क्यों न हो और जीत तब होगी जब सब एक साथ एकजुट होकर चुनाव लडेंग़े।