हृदय बताता है धैर्य और समर्पण की बात: मुनि कुंथुसागर

शिवपुरी-बुद्धि जिस रास्ते पर चलती है उस रास्ते में कष्ट का अनुभव भी करती है लेकिन उस रास्ते से हटने का नाम नहीं लेती, हृदय की बात इससे विपरीत है पहली बात तो यह है कि हृदय गलत रास्ते पर चलने ही नहीं देता यदि गलती से चल भी गये हों तो ज्ञान होते ही वापिस लौटा लेता है।
बुद्धि के गोरखधंधे कुछ ऐसे ही होते हैं जहां कार्य सरल हो वहां कार्य को कठिन बनाना, जहां शांति हो वहां अशांति फैलाना और जहां समाधान हो वहां समस्या पैदा करना और जहां प्रेम का अमृत हो वहां द्वेष का जहर घोलना जबकि हृदय के सात्विक धंधे इससे विपरीत हैं हृदय जटिल को सरल बनाता है, अशांति को शांति में बदलता है, जहां समस्या हो वहां समाधान खोजता है और जहां पर द्वेष का जहर हो वहां पर प्रेम का अमृत बहाता है । उक्त उदगार मुनि श्री 108 कुंथु सागर जी महाराज ने स्थानिय चंद्रप्रभु जिनालय में अपने बिषेष मंगल प्रवचनों के दौरान दिये।

उन्होनें आगे कहा कि बुद्धि हमेशा तर्क और प्रतिक्रिया दोनों की ओर ले जाने को मजबूर करती है, जबकि हृदय समर्पण और धैर्य को धारण करने की बात करता है । हमारे जीवन में एवं हमारे परिवार में आजतक सुख शांति की प्राप्ती नहीं हुई तो इसका मुख्य कारण है तर्क और प्रतिक्रिया पूर्ण जीवन जीना । यदि हमें हमारे जीवन में एवं परिवार में सुख शांति लानी है तो तर्क और प्रतिक्रिया को छोड़कर समर्पण और धैर्य के साथ काम लेना ही होगा। 

जो व्यक्ति नम्र होता है वह सभी के साथ हिलमिलकर चलता है और जो व्यक्ति मानी होता है वह कभी किसी से मिल ही नहीं सकता क्योंकि मानी व्यक्ति पानी के समान होता है जिसमें घी, तेल कभी मिल नहीं सकता। और जबकि नम्र व्यक्ति उस दूध की भांति होता है जो विजातीय पानी को भी अपने में मिलाकर अपना जैसा बना लेता है। हम दूसरे को बदलने और समर्पित होने की बात करते हैं लेकिन कभी हम अपने आप को बदलने और तर्क को छोडऩे के लिए तैयार नहीं होते इसलिए स्वयं में परिवर्तन लाने के लिए धैर्य धारण करना ही पड़ता है। 

तात्कालिक प्रतिक्रिया काम बिगाड़ती है और रिश्तों में भी दरार पैदा करती है हमें किसी भी क्रिया की तत्काल प्रतिक्रिया न करते हुए वक्त का इंतजार करना चाहिए। कभी-कभी ऐसा होता है कि तत्काल की गयी प्रतिक्रिया का जब दुष्परिणाम सामने आता है तो हमें पछतावा ही हाथ लगता है। तत्काल प्रतिक्रिया व्यक्त करते समय एकबात और गड़बड़ा जाती है कि हमारे मुख से अपशब्द भी निकल जाते हैं जो कि सज्जनता के विरूद्ध होते हैं याद रखो जिसकी जीभ में मिठास है उसका हर दिल में निवास है और जिसकी जीभ में जहर हो उसका बैरी सारा शहर है। 

आज हमारे परिवारजनों के साथ हम धन्यवाद के शब्द उपयोग नहीं कर पाते बल्कि वाद-विवाद का जहर और घोल देते हैं आज न तो अनाज का और न धन का अकाल है बल्कि आज सबसे बड़ा अकाल यदि किसी चीज का है तो हमारे पास प्रेम पूर्वक धन्यवाद के शब्दों का है, हम इस बात को समझें और धैर्य धारण करते हुए प्रतिक्रिया से बचते हुए अपने परिवार को सामंजस्य की डोर से बांधते हुए सुखमय जीवन बनाने का प्रयास करें।