ऐसी सरकार और प्रतिनिधि चुनें जो देश की रक्षा कर सकें: सुधा मलैया

शिवपुरी। यह कैसी सरकार है हमारे पांच जांबाज सैनिकों की पाकिस्तानी सेना द्वारा हत्या कर दी गई। इसके पूर्व दो  सैनिकों के सिर काटकर पाक फौज ले गई। चाहे जब चीनी सेना एलओसी का अतिक्रमण कर हमारी सीमा में घुस आती है, लेकिन सत्ता में बैठी सरकार और उनके प्रतिनिधियों के खून में उबाल नहीं आता। ऐसी सरकार और प्रतिनिधि चुने जो देश की रक्षा कर सके।
उक्त उद्गार या कहें समझाइश भाजपा की वरिष्ठ नेत्री और राष्ट्रीय सचिव सुधा मलैया ने श्रीमंत माधवराव सिंधिया स्नातकोत्तर महाविद्यालय में इतिहास की छात्राओं को संबोधित करते हुए दी। श्रीमती मलैया ने एक ओर जहां केन्द्र की कांग्रेस सरकार को निशाने पर लिया वहीं पोखरण विस्फोट के बहाने तत्कालीन अटलबिहारी सरकार की भी प्रशंसा करते हुए कहा कि उसने हम भारतीय का सिर गर्व से ऊंचा उठा दिया था। राष्ट्रवाद और युवा विषय पर आयोजित इस संगोष्ठी में मंचासीन अतिथियों में भाजपा जिलाध्यक्ष रणवीर सिंह रावत, महाविद्यालय की जनभागीदारी समिति के अध्यक्ष अजय खेमरिया, जनअभियान परिषद के सलाहकार भाजपा नेता राघवेन्द्र गौतम और मंगलम के उपाध्यक्ष अशोक कोचेटा भी थे। कार्यक्रम का संचालन महाविद्यालय में इतिहास की विभागाध्यक्ष श्रीमती संध्या भार्गव ने किया।

वरिष्ठ भाजपा नेत्री श्रीमती सुधा मलैया ने प्रारंभ में आम बोलचाल की भाषा में छात्राओं से संवाद स्थापित करते हुए कहा कि अब वह जमाना लद गया जब बेटा और बेटी के बीच समाज में भेद रखा जाता था। उन्होंने कहा कि नारी होना शर्म की नहीं, बल्कि स मान की बात है। भारतीय होना भी हमारे लिए गौरव का विषय है। उन्होंने भ्रांतियां दूर करते हुए कहा कि प्रथम जैन तीर्थंकर भगवान ऋषभ देव के पुत्र चक्रवर्ती सम्राट भरत के नाम पर इस देश का नाम भारत पड़ा है। उन्होंने कहा कि यह देश अन्य देशों से इस मायने में अलग है कि जिस सहिष्णुता की भावना इस देश की संस्कृति में है वह कहीं नहीं है। यहां की मान्यता है कि चाहे ईश्वर को पुकारो या अल्लाह या जीसस क्राईस्ट लेकिन सोच यह है कि एक परम सत्ता है जिसका नाम भले ही कुछ भी हो। भारतीय संस्कृति में ही पुन: जन्म की मान्यता है और जैन दर्शन की बात करें तो कर्म से आत्मा परमात्मा बन सकती है। भाषण के पूर्वाद्र्ध और अंत में श्रीमती मलैया ने भारतीय संस्कृति के विभिन्न आयामों को बखूबी रेखांकित करते हुए कुछ स्पष्टीकरण भी दिए। उनके अनुसार जन्म के आधार पर और ब्राह्मण कुल में जन्म लेने से कोई स मान का पात्र नहीं हो जाता। बल्कि हमें वरिष्ठजनों का स मान करना चाहिए। पाश्चात्य संस्कृति से भारतीय संस्कृति का अलगाव स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि संयुक्त परिवार की पर परा सिर्फ भारत में है इसी कारण यहां के लोगों में आपसी प्रेम, सा ंजस्य और भातृत्व भावना के दर्शन होते हैं। जबकि पश्चिम में लोग निहायत अकेले होते हैं। अपने भाषण में श्रीमती मलैया ने छात्राओं को संदेश दिया कि वह अन्याय के आगे घुटने न टेकें, न किसी के साथ अन्याय करें और न अन्याय सहन करें। ससुराल में सभी लोगों का स मान करें, लेकिन अपनी अस्मिता और स मान पर आंच भी न आने दें। बड़ी सफाई से और अप्रत्यक्ष रूप से श्रीमती मलैया ने छात्राओं को चुनाव में भाजपा की मानसिकता की ओर अग्रसर किया। हालांकि वह कहना नहीं भूलीं कि इस कार्यक्रम में वह किसी का प्रचार करने और भाजपा के लिए वोट मांगने नहीं आईं, लेकिन केन्द्र की कांग्रेस सरकार पर निशाना तथा तत्कालीन अटलबिहारी सरकार के प्रशस्ति गान के मायने क्या हैं? यह कोई भी समझ सकता है।

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महाविद्यालय में दिए गए उद्बोधन से एक ओर जहां वरिष्ठ भाजपा नेत्री सुधा मलैया का बौद्धिक पक्ष पूरी प्रखरता से उजागर हुआ वहीं आत्मिक स्तर पर उनकी विपन्नता के भी दीदार हुए। दो मौकों पर उन्होंने इतिहास की छात्राओं के समक्ष यह जाहिर किया कि उनकी विभागाध्यक्ष श्रीमती संध्या भार्गव का ज्ञान अधकचरा है और यह अज्ञान से अधिक खतरनाक है। पहला मौका तब था जब उन्होंने संध्या भार्गव से पूछा कि इस देश का नाम भारत क्यों पड़ा और फिर उनके ज्ञान का सार्वजनिक मखौल उड़ाया। दूसरा मौका तब आया जब उन्होंने गणतंत्र और प्रजातंत्र का अंतर पूछते हुए श्रीमती संध्या भार्गव को छात्राओं को गलत ठहराने में संकोच नहीं किया। सवाल यह है कि ऐसा करना क्या उनके जैसी प्रतिष्ठित हस्ति के लिए उचित था और क्या उन्होंने छात्राओं के समक्ष शिक्षिका को लज्जित कर भारतीय संस्कृति की कोई उज्जवल मिसाल पेश की। इससे अच्छी मिसाल तो श्रीमती भार्गव ने पेश की जब उन्होंने अत्यंत विनम्रता से कहा कि श्रीमती मलैया ने मेरे ज्ञान को बढ़ाया है और वह इसके लिए धन्यवाद की पात्र हैं। प्रश्र यह है कि दोनों उदाहरणों में बौना कौन है?