राजनैतिक विरासत के लिए जंग, देवर-भाभी हैं आमने-सामने

शिवपुरी। मप्र के प्रतिष्ठित राजनैतिज्ञ और पूर्व खाद्य मंत्री स्व. गौतम शर्मा परिवार के बीच अब उनके राजनैतिक उत्तराधिकार को लेकर जंग छिड़ गई है। उनकी बिरासत को पहले उनके बड़े पुत्र स्व. हिमांशु शर्मा ने संभाला था और वह पोहरी से विधायक भी रहे।
बाद में इस उत्तराधिकार को उनके छोटे पुत्र हिमांशु शर्मा ने संभाला, लेकिन चुनाव में वह बुरी तरह पराजित हुए। अब इस परिवार के बीच घमासान इतना तीव्र हो गय है कि गौतम शर्मा और हिमांशु शर्मा के राजनैतिक उत्तराधिकार को लेकर स्व. हिमांशु शर्मा की धर्मपत्नि श्रीमती निर्मला शर्मा और उनके अनुज देवब्रत शर्मा आमने-सामने आ गए हैं।

दोनों ही पोहरी से टिकट की मांग कर रहे हैं। इससे इस परिवार के प्रति आस्था रखने वाले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पशोपेश में हैं कि वह किसका समर्थन करें और किसका विरोध। सूत्र बताते हैं कि इस परिवार के प्रति सहानुभूति रखने वालों में पूर्व मु यमंत्री दिग्विजय सिंह और देश के पूर्व कानून मंत्री हंसराज भारद्वाज प्रमुख हैं और इन्हीं के संपर्कों का फायदा गौतम शर्मा परिवार को मिलता रहा है। देवर-भाभी क्यों एक-दूसरे के सामने आएं हैं। इस विषय में जानकारी लेने पर उनके परिवार के निकटस्थ लोगों का कथन है कि संपत्ति संबंधी विवाद की जड़ राजनैतिक उत्तराधिकार हांसिल करने की मुहिम तक पहुंची है।

प्रदेश की राजनीति में स्व. गौतम शर्मा का अपना विशिष्ट स्थान रहा है। पूर्व मु यमंत्री स्व. द्वारका प्रसाद मिश्र के शासनकाल में गौतम शर्मा खाद्य मंत्री रहे हैं और उन्हें कट्टर कांग्रेसी बताया जाता है। गौतम शर्मा इलाके के सा ांतवादी राजनीति से हमेशा लोहा लेते रहे। करैरा से वह स्व. राजमाता विजयाराजे सिंधिया के विरूद्ध भी चुनाव लड़कर पराजित हुए। 

स्व. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से लेकर नरसिं हा राव और हंसराज भारद्वाज से उनकी काफी निकटता रही। पूर्व मु यमंत्री द्वारिका प्रसाद मिश्र के शासनकाल में उन्हें कैबिनेट में नंबर दो का दर्जा था। शिवपुरी जिले में स्व. गौतम शर्मा को काफी स मान की दृष्टि से देखा जाता था। इसी कारण सन् 85 के विधानसभा चुनाव में उस समय के विधायक हरिवल्लभ शुक्ला का टिकट काटकर उनके सुपुत्र हिमांशु शर्मा को कांग्रेस का टिकट दिया गया था और वह विजयी भी हुए थे। हिमांशु शर्मा का कार्यकाल इस मायने में उल्लेखनीय रहा कि उन्होंने यदि किसी का अच्छा नहीं किया तो बुरा भी नहीं किया।

पोहरी में उनके निकटस्थ लोगों में किशन सिंह तोमर, नारायण धाकड़, बद्री ओझा, कैलाश रावत, माताचरण शर्मा आदि की गिनती होती थी। लेकिन 90 के चुनाव में हिमांशु शर्मा पराजित हो गए तथा इसके दो साल बाद उनकी मृत्यु हो गई। सन् 93 के विधानसभा चुनाव में सूत्र बताते हैं कि कांग्रेस ने उनकी पत्नि श्रीमती निर्मला शर्मा को टिकट का ऑफर किया, लेकिन श्रीमती शर्मा की राजनीति में रूचि नहीं थी और पति की मौत के बाद वह दिल्ली शि ट हो गई थीं तब गौतम शर्मा ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर छोटे पुत्र देवब्रत शर्मा को पोहरी से टिकट दिलवाया। देवब्रत को टिकट तो मिल गया, लेकिन पोहरी की जनता ने उन्हें स्वीकार नहीं किया तथा कांग्रेस ने इसे वक्त रहते पहचानकर उनका टिकट काटकर बैजंती वर्मा को टिकट दे दिया।

सूत्र बताते हैं कि इसके लिए पहल स्व. माधव राव सिंधिया ने की थी। जिन्होंने कहा था कि यदि हिमांशु शर्मा की पत्नि चुनाव लड़ती हैं तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं हैं। देवब्रत शर्मा के राजनैतिक उत्तराधिकार पर यह पहला संकट था। हालांकि उनके पिता स्व. गौतम शर्मा ने उन्हें अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी बनाने में कोई झिझक नहीं दिखाई और देवब्रत के चुनाव का संचालन भी उन्होंने किया। लेकिन देवब्रत महज दो हजार वोट ही बटोर सके और अपनी जमानत से हाथ धो बैठे। 

वह भी उस स्थिति में जबकि कांग्रेस के कुछ राष्ट्रीय नेताओं ने पर्दे के पीछे से उन्हें सहयोग प्रदान किया था। इसके बाद वह हर बार टिकट के लिए जोर लगाते रहे, लेकिन उनकी दाल नहीं गली। इसी बीच अपने भाई हिमांशु शर्मा के परिवार से भी उनके मतभेद खुलकर सामने आ गए। दोनों के बीच संपत्ति संबंधी विवाद सड़कों पर आ गया। इसकी परिणति यह हुई कि स्व. हिमांशु शर्मा की धर्मपत्नि ने स्वयं राजनीति में आने की मनस्थिति बनाकर उन्हें चुनौती देने की ठान ली और वह दिल्ली से शिवपुरी आ गईं। सूत्र बताते हैं कि श्रीमती निर्मला शर्मा की पैरवी अब कांग्रेस के वे वरिष्ठ नेता कर रहे हैं जो उनके ससुर स्व. गौतम शर्मा के नजदीकी रहे हैं।

स्व. हिमांशु की टीम ने देवब्रत से किया किनारा

पोहरी विधानसभा क्षेत्र में स्व. हिमांशु शर्मा की जो टीम है उस टीम ने देवब्रत से किनारा कर लिया है। इस टीम से जुड़े कांग्रेस कार्यकर्ताओं का कथन है कि हिमांशु शर्मा की राजनैतिक बिरासत की हकदार सिर्फ उनकी धर्मपत्नि निर्मला शर्मा है। हिमांशु शर्मा के पुत्र सुधांशु शर्मा ने बताया कि संकट के क्षणों में उनके चाचा देवब्रत ने कभी उनका साथ नहीं दिया। ऐसे स्थान पर वह उनके पिता के नाम का सहारा लेकर कैसे राजनीति करने के हकदार हैं।