टिकिट वितरण के लिए कांग्रेस रख रही है फूंक-फूंककर कदम

शिवपुरी। इस बार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशियों के चयन की प्रक्रिया लीक से हटकर कर रही है। कई स्तरों पर जीतने योग्य प्रत्याशियों की छानबीन की जा रही है। पर्यवेक्षक प्रत्याशियों के अलावा जिला कांग्रेस अध्यक्ष और ब्लॉक कांग्रेस अध्यक्षों से भी चर्चा कर रहे हैं। यहां तक कि पोलिंग बूथ स्तर तक के कार्यकर्ता को उम्मीदवार चयन में भागीदार बनाया जा रहा है।
पहले भी ऐसा होता रहा है, लेकिन अंतर है तो सिर्फ इतना कि अब महज औपचारिकता निर्वहन हेतु कार्रवाई नहीं की जा रही है, बल्कि प्रत्याशी चयन के गंभीर प्रयास हो रहे हैं। साफ नजर आ रहा है कि कांग्रेस शिवपुरी जिले के विधानसभा चुनाव में भाजपा की मजबूती का तोड़ ढूंढ़ रही है। कांग्रेस को यह समझ नहीं आ रहा है कि इस क्षेत्र में ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे जनाधार संपन्न नेता के होते हुए भी पिछले दो विधानसभा चुनाव में केपी सिंह को यदि छोड़ दें तो कांगे्रस का खाता ही नहीं खुल रहा। आंकड़ों की दृष्टि से शिवपुरी विधानसभा उपचुनाव एक अपवाद के रूप में अवश्य जाना जाता है।

इलाके में पहले स्व. माधव राव सिंधिया और अब उनके सुपुत्र केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस के सर्व शक्तिमान नेता हैं। कांग्रेस की गुटबाजी में कम से कम उन्हें यहां कभी कोई चुनौती नहीं मिली है। यह बात अलग है कि पूरे प्रदेश की तरह यहां भी कांग्रेस में गुटबाजी व्याप्त है और दिग्विजय सिंह खेमे का नेतृत्व विधायक केपी सिंह और उनकी टीम करती है। लेकिन सिंधिया परिवार को कांग्रेस में कोई चुनौती नहीं है। मतभेदों के बावजूद भी उनका लोहा उनके विरोधी भी मानते हैं। टिकटों के वितरण में उनका एकाधिकार रहता है। स्व. माधव राव ङ्क्षसधिया के जमाने में तो कांग्रेस आला कमान के विश्वास पात्रों को सिर्फ इसलिए टिकट नहीं मिला, क्योंकि उनके लिए श्री सिंधिया सहमत नहीं थे। स्व. माधव राव सिंधिया ने तो अपनी दम पर अदने से कार्यकर्ताओं तक को विधायक बनाने का कौशल दिखाया था। टिकटों के वितरण में ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी हमेशा फ्रीहेण्ड मिला है। लेकिन पिछले दो विधानसभा चुनावों में शिवपुरी जिले में कांगे्रस की हालत बेहद शोचनीय रही।

2003 के विधानसभा चुनाव में जिले की पांच सीटों में से चार सीटों पर कांग्रेस को बुरी तरह मात खानी पड़ी। करैरा में तो कांग्रेस उम्मीदवार को जमानत से हाथ धोना पड़ा। 2008 के विधानसभा चुनाव की कहानी तो कांग्रेस के संदर्भ में और भी शर्मनाक रही। करैरा और पोहरी में कांग्रेस प्रत्याशियों को जमानत से हाथ धोना पड़ा और शिवपुरी तथा कोलारस में कांग्रेस दूसरे स्थान पर रही। दोनों चुनावों में सिर्फ पिछोर सीट कांग्रेस के कब्जे में आई। जिसमें कांग्रेस का कम बल्कि केपी सिंह स्वयं का योगदान कहीं अधिक है। विधानसभा चुनाव के अलावा नगरपालिका चुनाव में भी कांग्रेस को पिछले दो चुनावों में जीत हासिल नहीं हुई, बल्कि एक चुनाव में तो कांगे्रस प्रत्याशी जमानत से हाथ धो बैठा। जिपं चुनाव में भी कांग्रेस के हाथ खाली रहे। सूत्र बताते हैं कि इस कारण एआईसीसी इस बार विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी चयन के लिए चाबी अपने हाथ में रख रही है। इसी दृष्टि से पर्यवेक्षक नवप्रभात दो बार शिवपुरी आ चुके हैं और वह चुनाव की दृष्टि से एक-एक समीकरण पर बारीकी से नजर रखे हुए हैं।

पहली बार हुआ कि जिलाध्यक्ष और ब्लॉक अध्यक्षों ने अपने-अपने अधिकार का प्रयोग कर योग्य प्रत्याशियों का पैनल पर्यवेक्षक को सौंपा। अभी तक तो एक लाइन का प्रस्ताव पारित हो जाता था कि  प्रत्याशी चयन के लिए सिंधिया अधिकृत हैं। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने इस संवाददाता को बताया कि अभी तक तो प्रदेश में बड़े-बड़े नेता अपने चाटूकारों को टिकट देकर उपकृत कर देते थे। भले ही वह जीतें या हारें, लेकिन इस बार कांग्रेस सबक ले रही है और सिर्फ जीतने योग्य उम्मीदवार को टिकट मिलेगा। वह भले ही किसी ग्रुप का हो या न हो। लेकिन जनता में उसकी जड़ें मजबूत होनी चाहिए। शायद इसी रणनीति से भाजपा को हम प्रदेश में बाहर का रास्ता दिखा सकते हैं।

पिछोर के अलावा चारों सीटों पर टिकट के लिए जोरदार घमासान

कांग्रेस भले ही सत्ता से बाहर है और शिवपुरी जिले में भी उसकी महज एक सीट है, लेकिन इसके बाद भी कांगे्रस का टिकट आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है और शिवपुरी, कोलारस, पोहरी एवं करैरा में कांग्रेस टिकटार्थियों के बीच जोरदार घमासान बना हुआ है। सूत्र बताते हैं कि करैरा और पोहरी में तो कांग्रेस टिकिट के दावेदारों ने अपने टिकट की मांग के साथ दूसरे के टिकट का विरोध किया है। करैरा में कई दावेदारों ने संयुक्त रूप से शकुंतला खटीक और पोहरी में हरिवल्लभ शुक्ला के नाम का विरोध करते हुए कहा कि इनके अलावा कोई भी नाम उन्हें स्वीकार्य है। महिला दावेदारों में करैरा से शकुंतला खटीक और कोलारस से श्रीमती मिथिलेश यादव की दावेदारी मजबूती से उभरी। पूर्व विधायक वीरेन्द्र रघुवंशी के लिए उनके समर्थकों ने शिवपुरी के अलावा कोलारस से भी टिकट की मांग की है और सूत्र बताते हैं कि कोलारस क्षेत्र के ब्लॉक अध्यक्षों ने पैनल में वीरेन्द्र का नाम भी दिया है।

उम्मीदवारों के पैनल के नामों की अटकलें

ब्लॉक अध्यक्षों द्वारा दिए गए नामों के पैनल स्पष्ट तो नहीं हो सके, लेकिन अटकलें लगाई जा रही हैं कि शिवपुरी से वीरेन्द्र रघुवंशी, राकेश जैन, राकेश गुप्ता, पोहरी से हरिवल्लभ शुक्ला, सुरेश राठखेड़ा, राजेन्द्र पिपलौदा, कोलारस से रामसिंह यादव, श्रीमती मिथिलेश यादव, बैजनाथ सिंह यादव, वीरेन्द्र रघुवंशी और रविन्द्र शिवहरे एवं उनकी पत्नि श्रीमती निशा शिवहरे, करैरा से श्रीमती शकुंतला खटीक, योगेश करारे, जसवंत जाटव और केएल राय का नाम कहीं न कहीं से पैनल में हैं। इसके अलावा कई अन्य दावेदारों ने अपना नाम न छापने की शर्त पर बताया कि उनका नाम भी पैनल में शामिल है।