चरण वंदना वाले नेताओं को ना मिले टिकिट, बल्कि जन सेवा वाले नेता को मिले टिकिट

राजनीति इन दिनों@अशोक कोचेटा। यदि आगामी विधानसभा चुनाव में बीते 10 वर्षों से बाहर बैठी कांग्रेस को अपना झण्डा फहराना है तो इसके लिए स्वयं का आत्मावलोकन करने की आवश्यकता है क्योंकि यदि कांग्रेस पार्टी ने ऐसे छुटभैये नेताओं को टिकिट दे दिया जो ना केवल पार्टी में बल्कि जनता में भी अपन आपको सामने नहीं ला पाते, तो ऐसे उम्मीदवारों से कांग्रेस की साख ही खराब होगी जिसमें वे नेता शामिल है जो चरण वंदना को पहली पंक्ति में नजर आते है
जबकि वे कार्यकर्ता जो निष्ठावान रहकर जनसेवा और पार्टी हित में मिलकर काम करते है उन्हें ऐन समय पर पार्टी आईना दिखा देती है और अपनी ही गलतियां का खामियाजा कांग्रेस पार्टी को उठाना पड़ता है इसके लिए आवश्यक है कि जनसेवा करने वाले ऐसे कांग्रेसी नेता जो समर्पण भाव से जनसेवा और पार्टी हित में कार्य करें उन्हें ही टिकिट की श्रेणी में रखें तो निश्चित रूप से आगामी समय में कांग्रेस का झण्डा विधानसभा में फहर सकता है।

इसके लिए कांग्रेस की सत्ता में वापिसी के लिए मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित करने की भी आवश्यकता नहीं है, बल्कि इससे तो कांग्रेस के समक्ष खतरे उत्पन्न हो सकते हैं। जिसके प्रति पार्टी आला कमान सजग हैं और शायद इसी झिझक के कारण कांग्रेस सीएम पद का प्रत्याशी प्रोजेक्ट नहीं कर रही। नवंबर में होने जा रहे चुनाव में भाजपा के पास शिवराज सिंह चौहान के अलावा कोई अन्य अस्त्र नहीं है। अधिकांश भाजपा विधायकों के प्रति जनमानस में नाराजी देखी जा रही है। प्रदेश सरकार के अधिकांश मंत्रियों की छवि भी अच्छी नहीं है। चुनाव में विकास के स्थान पर कर्नाटक के समान भ्रष्टाचार का मुद्दा प्रभावी होने की संभावना है।

भाजपा जनप्रतिनिधियों के खिलाफ एंटी इनकंबंसी फेक्टर है। लेकिन इस स्थिति का कैसे फायदा उठाया जाए यह कांग्रेस को समझ नहीं आ रहा। कहां जा रहा है कि यदि मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी घोषित कर कांग्रेस चुनाव लड़े तो इसका फायदा मिल सकता है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को चुनौती देने के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया की उम्मीदवारी की बात की जाती है। कहा जाता है कि यदि श्री सिंधिया को प्रोजेक्ट किया गया तो भाजपा सरकार की हार सुनिश्चित है। यह तो तस्वीर का एक पहलू है, लेकिन दूसरा पहलू यह भी है कि कांग्रेस में जबरदस्त गुटबाजी है और यदि किसी को भी प्रोजेक्ट किया गया तो उसे शिकस्त देने के लिए सारे गुट एकजुट हो जाएंगे।

यह भी तथ्य है कि पार्टी  आला कमान के दरबार में ज्योतिरादित्य सिंधिया कमलनाथ और मीनाक्षी की श्री सिंधिया से अधिक मजबूत स्थिति है और उनके रहते हुए ज्योतिरादित्य का प्रोजेक्शन असंभव नहीं तो मुश्किल अवश्य है। अच्छा हो कि कांग्रेस की ओर से सीएम पद के सभी संभावित दावेदार एक प्रेस बयान जारी कर घोषणा करें कि वे सभी एकजुट हैं और मुख्यमंत्री पद का कोई प्रत्याशी घोषित नहीं है तथा पार्टी की जीत के बाद सीएम का फैसला होगा। इसके अलावा कांग्रेस में टिकिट वितरण के लिए कोटा सिस्टम खत्म करना होगा। नेताओं को अपने पट्ठों को अधिक से अधिक टिकिट दिलाने की जिद खत्म करनी होगी।

कांग्रेस के एक स्थानीय नेता ने बताया कि टिकिट की एकमात्र शर्त सिर्फ यही हो कि उम्मीदवार में जीतने की क्षमता हो। इसके बाद विधानसभा चुनाव सामूहिक नेतृत्व में लड़ा जाए। चुनाव के दौरान जो भी नेता उभरकर सामने आए वही नेतृत्व संभाले। कर्नाटक के सिद्धारमैया का उदाहरण सामने है। सन् 80 में प्रदेश में शिवभानु सिंह सोलंकी के समर्थक विधायक अधिक संख्या में जीते थे, लेकिन विधानसभा चुनाव में परफोर्मेंस के आधार पर मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह बने थे। ऐसा यदि पहले से स्पष्ट होगा तो अपने अधिक से अधिक समर्थकों को टिकिट दिलाने की जिद वरिष्ठ नेता नहीं पालेंगे। ऐसी स्थिति में ही कांग्रेस भाजपा के खिलाफ एंटी इनकंबंसी फेक्टर का फायदा उठा सकती है।