चुनाव से पूर्व कांग्रेस और भाजपा की बसपा पर नजर

शिवपुरी। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का यह बयान कांग्रेस और भाजपा नेताओं को इन दिनों बड़ा रास आ रहा है कि चुनाव जनता के वोटों से नहीं बल्कि प्रबंधन से जीते जाते हैं। इसी आधार पर कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दलों के कर्ताधर्ता चुनाव से पूर्व बहुजन समाज पार्टी पर नजर रखे हुए और अपने-अपने हिसाब से इस दल को मैनेज करने में जुटे हुए हैं। सूत्र बताते हैं कि मैनेजमेंट के इस खेल में धनबल का भी इस्तेमाल किया जा रहा है।

बहुजन समाज पार्टी जिले की पांच सीटों में से कम से कम दो सीटों पर बाजी इधर से उधर करने में सक्षम है। उसके प्रभाव वाली सीटों में करैरा जहां नंबर 1 पर है वहीं पोहरी, कोलारस और शिवपुरी में बसपा दोनों दल कांग्रेस और भाजपा के समीकरण बिगाडऩे में सक्षम है। इस समय सर्वाधिक जोर आजमाइश कोलारस विधानसभा सीट पर देखने को मिल रही है। जहां बसपा उम्मीदवार का फैसला कांग्रेस प्रत्याशी को तय करेगा।

पांच सीटों में से इस समय बसपा की कोलारस में सबसे अधिक पूछपरख देखी जा रही है। यहां इस दल से चंद्रभान सिंह यादव टिकिट के सबसे प्रबल दावेदार हैं। कांग्रेस की ओर से भी किसी यादव उम्मीदवार को टिकिट मिलने की संभावना है। यादव उम्मीदवारों में रामसिंह यादव, बैजनाथ सिंह यादव और श्रीमती मिथलेश यादव के नाम की चर्चा है। इनमें से रामसिंह पिछले चुनाव में महज 238 मतों से पराजित हुए थे और वर्तमान में जिला कांग्रेस के अध्यक्ष हैं। जबकि बैजनाथ सिंह यादव को हाल ही में प्रदेश कांग्रेस का महामंत्री बनाया गया है। मिथलेश यादव जिपं सदस्य रह चुकी हैं और रामसिंह यादव की सुपुत्री हैं। लेकिन यदि बसपा चंद्रभान सिंह यादव का नाम तय करती है तो कांगे्रस के तीनों उम्मीदवारों का टिकिट खटाई में पड़ सकता है।

यादव मतदाताओं पर सामान्य तौर पर कांग्रेस की पकड़ मानी जाती है। ऐसे में भाजपा की रणनीति यह है कि बसपा से चंद्रभान सिंह यादव को टिकिट मिले जिससे कांग्रेस यादव उम्मीदवार से हाथ खींच ले और यादव मतदाताओं का धु्रवीकरण कांग्रेस के पक्ष में न होते हुए बसपा के पक्ष में हो जाए। सूत्र बताते हैं कि भाजपा की ओर से चंद्रभान सिंह यादव की उम्मीदवारी तय कराने का प्रयास चल रहा है जबकि कांगे्रस के संभावित दावेदार चंद्रभान सिंह यादव की उम्मीदवारी रोकने में लगे हुए हैं। वे चाह रहे हैं कि अशोक शर्मा या लाखन सिंह बघेल को टिकिट मिले। कांग्रेस में भी गैर यादव उम्मीदवार चाह रहे हैं कि चंद्रभान सिंह बसपा से लड़े जिससे उनका टिकिट तय होने में कोई दिक्कत न आए। पिछले विधानसभा चुनाव में कोलारस से बसपा उम्मीदवार लाखन सिंह बघेल को 19000 मत मिले थे। यादव मतदाताओं का धु्रवीकरण इन मतों में जोड़ दिया जाए तो बसपा यहां से जीत की प्रबल दावेदार है। करैरा में तो बहुजन समाज पार्टी काफी मजबूत स्थिति में है।

पिछली बार यहां से बसपा उम्मीदवार प्रागीलाल जाटव को 23000 मत मिले थे और वह दूसरे नंबर पर रहे थे। उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार को काफी पीछे ढकेल दिया था। इस बार भी प्रागीलाल की उम्मीदवारी की काफी चर्चा है और उन्हें जीत का प्रबल दावेदार माना जा रहा है। यहां कांगे्रस और भाजपा दोनों दलों का प्रयास है कि प्रागीलाल के स्थान पर बसपा किसी को भी टिकिट दे दे। करैरा में मत भिन्नता होने के बाद कांगे्रस और भाजपा बसपा उम्मीदवार के मुद्दे पर एक राय रखते हैं। शायद इसी कारण करैरा में बसपा की ओर से मोहित रत्न की दावेदारी की चर्चा जोरों पर है। पोहरी में धाकड़ मतदाताओं का भाजपा के पक्ष में ध्रुवीकरण रोकने के लिए कांग्रेस चाह रही है कि बसपा इस सीट से धाकड़ उम्मीदवार को चुनाव मैदान में उतारे। बसपा की ओर से द्वारका धाकड़ सक्रिय भी हैं, लेकिन भाजपा द्वारका धाकड़ के टिकिट काटे जाने के प्रयास में सक्रिय है और चाह रही है कि बसपा यहां से लाखन सिंह बघेल को उम्मीदवार बनाए।

पिछले चुनाव में पोहरी से बहुजन समाज पार्टी काफी दमदारी से इसलिए चुनाव लड़ी थी, क्योंकि तब मजबूत प्रत्याशी हरिवल्लभ शुक्ला उसके टिकिट से मैदान में उतरे थे और उन्होंने 25 हजार मत प्राप्त कर दूसरा स्थान प्राप्त किया था। शिवपुरी में बसपा उतनी मजबूत नहीं है। यहां पार्टी के पास फिलहाल कोई उम्मीदवार भी नहीं है। पिछले चुनाव में शीतल प्रकाश जैन को बसपा ने उम्मीदवार बनाया था, लेकिन मजबूत प्रत्याशी होने के बाद भी वह सिर्फ पार्टी के परंपरागत मत ही बटोर सके और उन्हें 13000 मत मिले थे। यहां से भाजपा की रणनीति है कि बसपा किसी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकिट दे जिससे बसपा के परंपरागत मत और मुस्लिम मतदाता जो कि कांगे्रस के खाते में जाते हैं उनसे कांग्रेस वंचित हो जाए। जबकि कांग्रेस की सोच यह है कि बसपा यहां से कोई मजबूत प्रत्याशी चुनाव मैदान में न उतारे।

पिछले चुनाव में पिछोर सीट पर भी हुआ था संघर्ष

पिछले विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी टिकिट के लिए कांग्रेस और भाजपा दोनों दलों ने जोर लगाया था। कांग्रेस चाह रही थी कि यहां से कौशल किशोर शर्मा को टिकिट न मिले और उनके स्थान पर राकेश लोधी को टिकिट मिल जाए। जिससे लोधी मतदाताओं का धु्रवीकरण भाजपा की ओर न जाकर बसपा की ओर मुड़ जाए। जबकि भाजपा की सोच थी कि बसपा से कौशल किशोर शर्मा को टिकिट मिले। बसपा टिकिट का फैसला कराने में कांग्रेस और भाजपा ने पर्दे के पीछे से महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बाजी पहले कांग्रेस के पक्ष में गई। राकेश लोधी को टिकिट दे दिया गया। लेकिन बाद में भाजपा ने जोर आजमाइश की और टिकिट कौशल किशोर शर्मा को मिल गया। यह बात अलग है कि पिछोर में बसपा उम्मीदवार कौशल किशोर कांग्रेस को नुकसान नहीं पहुंचा पाए।