अनेकांतवाद का सिद्धांत जैन धर्म की अनूठी पहचान: संत नवपदम सागर

शिवपुरी। जैन दर्शन का अनेकांतवाद का सिद्धांत उसे अन्य धर्मों से श्रेष्ठ ठहराता है। जैन धर्म ही यह बताता है कि हर आत्मा में परमात्मा बनने की संभावना है। उक्त उद्गार प्रसिद्ध श्वेताम्बर जैन संत नवपदम सागर जी महाराज ने स्थानीय पाश्र्वनाथ जैन मंदिर में आयोजित धर्मसभा में व्यक्त किए।

संत नवपदम सागर जी महाराज आज ही पद बिहार करते हुए शिवपुरी आएं हैं और समाधि मंदिर से श्वेताम्बर जैन मंदिर तक उनकी जैन धर्मावलंबियों ने शोभायात्रा निकाली। धर्मसभा में जैन समाज के सचिव धर्मेन्द्र गूगलिया ने संत नव पदमसागर जी से एक दिन रूकने की विनती की और अनुरोध किया कि शिवपुरीवासियों को वह अपने चातुर्मास का लाभ दें।

धर्मसभा में संत पदम सागर जी ने बताया कि आज से 2200 वर्ष पूर्व देश में जैनों की संख्या 40 करोड़ थी, लेकिन आज जैन धर्मावलंबी सिमट गए हैं और जनगणना के ताजे आंकड़ों के अनुसार दिगम्बर, श्वेताम्बर, स्थानकवासी सहित भंाति-भांति के जैनों की संख्या देश में कुल 60 लाख है। उन्होंने इस बात का दुख किया कि जैनों में अपने धर्म के प्रति गौरव नहीं है और जैन दर्शन की उदात्त भावना को वह स्वीकार नहीं कर रहे। अन्य धर्मों का उदाहरण देते हुए कहा कि उनका लक्ष्य संसार के सभी मनुष्यों को अपने रंग में रंगना होता है। लेकिन जैनी स्वयं अपने धर्म का पालन नहीं कर पा रहे तो वे दूसरे को कैसे जैन बनने के लिए प्रेरित करेंगे। उन्होंने कहा कि जैन ईमानदार होते हैं, देश के प्रति उनमें समर्पण भावना होती है। जैन धर्मावलंबी सर्वाधिक टेक्स अदा करते हैं। लेकिन कमी है तो यह कि उनमें एकजुटता नहीं है।

विकास के लिए दो से अधिक संतानें आवश्यक

संत नवपदम सागर जी ने जैनों की घटती हुई संख्या के लिए परिवार नियोजन को भी जिम्मेदार ठहराया और कहा कि इससे जैनों का विकास भी रूक रहा है। उन्होंने कहा कि यदि एक परिवार में पांच भाई होंगे तो वे अपने व्यापार के लिए दूसरों पर आश्रित नहीं होंगे। व्यापार के विभिन्न केन्द्रों पर वे अपना ध्यान केन्द्रित कर पाएंगे। लेकिन एक या दो संतानें होने से जैनों का व्यापार भी सिमट रहा है।