दस्तावेजों के पंजीयन पर र्निबंधन कानून सम्मत नहीं: अभिभाषक पीयूष शर्मा

शिवपुरी। कृषिभूमि का उपयोग बदले बिना प्लॉटों के पंजीयन पर लगी रोक को अभिभाषक पीयूष शर्मा कानून सम्मत नहीं मानते हैं। विदित हो कि 30 मार्च से शिवपुरी में डायवर्सन के अभाव में प्लॉटों का पंजीयन करने से उपरजिस्ट्रार इनकार कर रहे हैं।

इस संवाददाता से चर्चा करते हुए अभिभाषक पीयूष शर्मा का कहना है कि मप्र नगरपालिका अधिनियम की धारा 339 में हालांकि अवैध कॉलोनाईजेशन की रोकथाम करने के उपबंध हैं, लेकिन फिर भी यह धारा दस्तावेजों के पंजीयन न करने का अधिकार उप रजिस्ट्रार को नहीं देती है। रजिस्ट्रेशन एक्ट 1908 एवं मप्र रजिस्टे्रशन नियम 1939 में भी रजिस्ट्रार को दस्तावेजों के पंजीयन न करने की स्वतंत्रता प्राप्त नहीं है। यहां तक कि रजिस्ट्रार भूमिस्वामी के स्वत्व, स्वामित्व एवं आधिपत्य की जांच नहीं करा सकेगा। 

भारतीय संविधान में भी भारत के समस्त नागरिकों को सम्पत्ति खरीदने एवं उसका विक्रय करने की स्वतंत्रता प्राप्त है, लेकिन दस्तावेजों के पंजीयन पर र्निबंधन से उसकी यह स्वतंत्रता प्रभावित हो रही है। अभिभाषक शर्मा का कहना है कि वह अवैध प्लॉटों के पंजीयन पर लगी रोक को हटवाने के लिए माननीय सर्वोच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर करेंगे, क्योंकि उनके अनुसार पंजीयन पर रोक से न केवल सरकारी खजाने को प्रतिवर्ष करोड़ों का चूना लगेगा, बल्कि आम जनता भी प्रभावित होगी। उनके अनुसार यदि अवैध कॉलोनाईजेशन बढ़ रहा है तो इसका सिर्फ एक ही अर्थ है कि जिन विभागों पर इसकी रोकथाम की जिम्मेदारी है वे अपना कर्तव्य ठीक ढंग से निर्वहन नहीं कर रहे हैं।

अभिभाषक पीयूष शर्मा कहते हैं कि रजिस्ट्रार अब दस्तावेजों का पंजीयन करने के पूर्व यह देख रहे हैं कि उनके पंजीयन करने से नगरपालिका अधिनियम की धारा 339 के किसी प्रावधान अथवा उपधारा का उल्लंघन तो नहीं हो रहा। इस तरह से वह पंजीयन करने से पूर्व अवैध कॉलोनाइजेशन के तथ्य का विचारण कर रहा है और उस आधार पर पंजीयन को स्वीकार अथवा इनकार कर रहा है। 

जबकि उसे ऐसा कोई कानूनी अधिकार नहीं है। नगरपालिका अधिनियम के किसी भी खण्ड में यह वर्णित नहीं है कि उनका उल्लंघन होने की दशा में निष्पादित हुए किसी भी विक्रय पत्र को शून्य निष्प्रभावी अथवा अवैध माना जाए। अवैध कॉलोनाइजेशन (कंस्ट्रक्शन) की दशा में ही नगरपालिका अधिनिय की धारा 339 (सी) एवं 339 (जी) के तहत सजा का प्रावधान दिया गया है न कि विक्रय पत्र के पंजीयन को प्रतिबंधित करने हेतु कोई प्रावधान किया गया है। अभिभाषक शर्मा का तर्क है कि अवैध कॉलोनी पाए जाने पर नगरपालिका अधिनियम की धारा 339 (ई) एवं 339 (एफ) के तहत संपूर्ण कॉलोनी की भूमि को सम्पहरण कर कॉलोनी का व्यवस्थापन अपने हाथ में लेगी। व्यय में होने वाली राशियों का एस्टीमेट कर विकास करेगी और कॉलोनाइजर से विकास में खर्च होने वाली समस्त राशि जुर्माना सहित बसूल करेगी। 

उनका यह भी कहना है कि जब तक अवैध कॉलोनी पर भवन निर्माण प्रारंभ न हो जाए तब तक कार्रवाई करने का कोई अधिकार नहीं होता। रजिस्ट्रार द्वारा अब अवैध कॉलोनाइजेशन का निर्णय किया जा रहा है, जिसे अभिभाषक शर्मा उचित नहीं मानते। उनके अनुसार ऐसा करने का रजिस्ट्रार के पास कोई कानूनी अधिकार नहीं है। डायवर्टेड भूखण्ड की पहचान हेतु उसे न तो कोई मशीन दी गई न कोई स्टॉफ दिया गया न ही कोई नीतियां निधाॢरत की गईं। इन सब के अभाव के कारण रजिस्ट्री में इनकार का अर्थ है कि उसे मनमानी शक्तियों से सुसज्जित कर दिया गया है। श्री शर्मा के अनुसार रजिस्ट्रेशन एक्ट में भी स्पष्ट है कि रजिस्ट्रार भूमिस्वामी के स्वत्व की जांच नहीं करा सकेगा। समव्यवहार धोखे से किया जा रहा हो,लोकनीति के विरूद्ध हो तब भी उस आधार पर रजिस्ट्रार पंजीयन से इनकार नहीं करेगा।

दस्तावेजों के पंजीयन पर रोक मानवीय भी नहीं

अभिभाषक शर्मा का यह भी तर्क है कि दस्तावेजों के पंजीयन पर रोक मानवीय नहीं है। उनके अनुसार कॉलोनाइजर और एक गरीब किसान में फर्क किया जाना चाहिए। उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि यदि एक किसान अपनी आवश्यकता की पूॢत के लिए अपने स्वत्व की कृषिभूमि में से कोई एक छोटा भूखण्ड विक्रय करना चाहता है तो डायवर्सन के अभाव में उसे ऐसा नहीं करने दिया जाएगा। इससे हो सकता है कि उसका परिजन इलाज के अभाव दम तोड़ दे, वह अपनी बेटी का विवाह न कर पाए तथा उसे कर्जे से मुक्ति न मिले या फिर वह अपने बच्चे को पढ़ा न पाए। जब उसकी आवश्यकता की पूर्ति दो-चार भूखण्डों के विक्रय से हो सकती है तो क्यों उसे अपनी संपूर्ण कृषि भूमि के रकवे के डायवर्सन हेतु बाध्य किया जाए।

डायवर्सन पर लगी है अवैधानिक रोक

अभिभाषक पीयूष शर्मा ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखकर यह भी कहा है कि बिना डायवर्सन के प्लॉटों का पंजीयन नहीं हो रहा जबकि यह तथ्य भी सामने आया है कि प्रदेश के अधिकांश कलेक्टरों ने एसडीओ को यह मौखिक रूप से निर्देशित किया है कि कृषिभूमि का उपयोग परिवर्तित न किया जाए अर्थात उसका डायवर्सन न हो। बहुत से जिलों में तो डायवर्सन के आवेदन भी ग्रहण नहीं किए जा रहे।