शिवपुरी में तात्या टोपे ही फांसी के फंदे पर झूले थे: डॉ. बिरही

शिवपुरी। यह कहना गलत है कि 18 अप्रैल 1859 को शिवपुरी में शहीद तात्या टोपे के स्थान पर किसी अन्य को फांसी दी गई थी। तात्या टोपे को फांसी देने  के अनेक प्रमाण मौजूद हैं। उक्त उद्गार प्रसिद्ध साहित्यकार और मुख्य वक्ता डॉ. परशुराम शुक्ल बिरही ने शहीद तात्या टोपे के बलिदान दिवस पर आयोजित समारोह में व्यक्त किए। बलिदान दिवस पर वक्ताओं ने तात्या टोपे की विलक्षण प्रतिभा को रेखांकित किया और कहा कि उन जैसा अनूठा सेनापति सदियों में पैदा होता है।


समारोह में विधायक प्रहलाद भारती, माखनलाल राठौर, जिपं अध्यक्ष जितेन्द्र जैन गोटू, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी प्रेमनारायण नागर, भाजपा प्रवक्ता दिग्विजय सिंह और पत्रकार गोपाल जैन ने भी विचार व्यक्त किए। समारोह में शहीदों और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के वंशजों और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का सम्मान भी किया गया। 

समारोह में डॉ. परशुराम शुक्ल बिरही ने अपने उद्बोधन में कहा कि जिस तरह सुभाषचंद्र बोस के बारे में यह कपोल प्रचार किया जाता रहा है कि वह दुर्घटना में मौत के शिकार नहीं हुए थे उसी तरह से यह झूठा प्रचार है कि शिवपुरी में तात्या टोपे की जगह किसी अन्य को फांसी दी गई थी। उन्होंने कहा कि राजा पाड़ौन के पास जो पत्र हैं वह फांसी के बाद के हैं और उससे कहीं जाहिर नहीं होता कि तात्या टोपे को नहीं, बल्कि किसी और को फांसी दी गई। उन्होंने तात्या टोपे को फांसी देने की इस बात से भी पुष्टि की थी कि कंपनी का शासन समाप्त होने के बाद ब्रिटिश राज स्थापित हुआ था तात्या टोपे का चोगा और उनके सिर के बाल लंदन भेजे गए थे जो आज भी कलकत्ता के म्यूजियम में है तथा बलिदान दिवस पर शिवपुरी में आयोजित प्रदर्शनी में उन्हें यहां भी लाया गया था।डॉ. बिरही ने तात्या टोपे को विश्व इतिहास का अप्रतिम सेनापति बताया और उनकी तुलना हिटलर के सेनापति जनरल रोमेल से की। 

साधनों के अभाव में भी किस कौशल और आत्मविश्वास के साथ युद्ध किया जाता है इसकी मिसाल तात्या टोपे थे। डॉ. बिरही ने आजादी के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का जिक्र करते हुए कहा कि उस समय विद्रोह के दो केन्द्र दिल्ली और कानपुर थे, लेकिन दिल्ली में अंग्रेज फौजों की बहूतायत होने के कारण सफलता नहीं मिल पाई। डॉ. बिरही ने तात्या टोपे के मुरार आगमन का जिक्र भी अपने भाषण में किया और कहा कि उन्होंने अंग्रेजों को दांतो तले उंगुली दबाने पर मजबूर कर दिया था। 

समारोह में विधायक प्रहलाद भारती ने बताया कि शहीद तात्या टोपे छत्रपति शिवाजी की छापामार पद्धति को अपनाते हुए अंग्रेजों से लोहा लेते रहे। उनका आत्मविश्वास विलक्षण था। जिस कारण वह हारकर भी जीतते रहे। विधायक माखनलाल राठौर और जिपं अध्यक्ष जितेन्द्र जैन ने तात्या टोपे के बलिदान का स्मरण करते हुए कहा कि आज के दिन हमें उनसे प्रेरणा ग्रहण कर राष्ट्र के प्रति समर्पण की भावना को अंगीकार करना चाहिए। 

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी प्रेमनारायण नागर ने इस बात पर दुख व्यक्त किया कि आज धन और सत्ता की चकाचौंध में राष्ट्रभक्ति की भावना तिरोहित होती जा रही है। इससे देश की आजादी कभी भी खतरे में पड़ सकती है। कार्यक्रम में कलेक्टर आरके जैन, जेलर बीएस मौर्य सहित अनेकों विशिष्ट नागरिक भी मौजूद थे। कार्यक्रम का संचालन अरूण अपेक्षित ने किया। 

समारोह में शहीद के वंशजों का हुआ सम्मान 

कार्यक्रम में सहित तात्या टोपे के वंशज सुभाष टोपे, नीहू टोपे सहित अन्य शहीदों के वंशजों राजकुमारी कुसुम मेहदेले, जगदीश जोशीला, अबेदउल्ला खां खिलजी, राजबहादुर सिंह, श्री ढि़ल्लन आदि का सम्मान भी हुआ। इसके अलावा स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के वंशजों को भी सम्मान हेतु आमंत्रित किया गया। जिनमें से अधिकांश अनुपस्थित थे। 

जियाजीराव शिंदे ने की थी तात्या की सहायता

मुख्य वक्ता डॉ. बिरही ने अपने संबोधन में कहा कि जब तात्या टोपे मुरार आए थे तब ग्वालियर के तत्कालीन नरेश जियाजीराव शिंदे ने उनकी सहायता की थी और उन्हें आवश्यक सामान मुहैया कराया था। डॉ. बिरही ने कहा कि तात्या टोपे ने मुरार में अंग्रेज पल्टनों को धूल चटाई, लेकिन स्थानीय नागरिकों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया। तात्या ने जियाजीराव शिंदे को पत्र लिखकर कहा कि उन्हें सहायता की आवश्यकता है और उन्होंने ग्वालियर राज्य को अपनी छापामार पद्धति से कोई क्षति नहीं पहुंचाई। इस पर जियाजीराव शिंदे ने उन्हें सहायता दी। जिसे लेकर तात्या टोपे चले गए।