आपसी गुटबाजी में हैं कांग्रेसी, कैसें बनाऐंगें सरकार...!

राजू(ग्वाल)यादव/शिवपुरी-ये क्या शिवपुरी और अशोकनगर में कांग्रेसियों के जो हालात दिख रहे है उससे तो लगता है कांग्रेसी पहले अपनी गुटबाजी से निबट लें तब कहीं जाकर सरकार बनाने की सोंचें। क्योंकि यह लड़ाई निचले स्तर पर ही नहीं बल्कि उच्च स्तर पर भी है जहां प्रदेश के अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया तो कई बार सिंधिया विरोधी ढोल बजा चुके हैं और चीख-चीख कर कहते हैं कि और इसे(ज्योतिरादित्य सिंधिया) को क्या चाहिए, प्रदेश की क्रियान्वयन समिति का पदाधिकारी बना दिया, केन्द्री मंत्री बना दिया अब और क्या चाहिए, जो आए दिन प्रदेश में बिना सूचना के ही जगह-जगह अपने दौरे कर लेेते है और प्रदेशाध्यक्ष को खबर तक नहीं।

यह वे बातें है जो आए दिन कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष कांतिलाल भूरिया अपनी पीड़ा पार्टी के वरिष्ठ नेताओं और कंाग्रेसियों के बीच निकालते है बात यहीं खत्म नहीं होती है बल्कि अब तो शिवपुरी और अशोकनगर में भी सिंधिया गुट के लोग ही आपस में गुटबाजी करने लगे है। हफ्ते भर पहले जहां अशोकनगर में कांग्रेस के वर्तमान और पूर्व जिलाध्यक्ष श्री सिंधिया की पैरवी को लेकर भिड़े बैठे तो वहीं कुछ दिनों पहले शिवपुरी में भी यही हालात देखने को मिले यहां कांग्रेसियों में पूर्व विधायक वीरेन्द्र रघुवंशी और हरिबल्लभ के बीच जो विवाद की स्थिति के साथ बयानबाजी हुई उससे कांग्रेसियों की आपसी फूट और सामने आ गई। ऐसे में सिर पर विधानसभा चुनाव है और कांग्रेसी आपसी गुटबाजी से ही बाहर नहीं आ पा रहे है तो कैंसें सरकार बनाऐंगें...। यह सोचने वाली बात है।

यूं तो देखा जाए तो पूरे प्रदेश में कांगे्रस की गुटबाजी चिंता का विषय है, लेकिन कांग्रेस के लिए सर्वाधिक चिंता का कारण सिंधिया के गढ़ में उनके समर्थकों का सड़कों पर आया संघर्ष है। अशोकनगर में तो खुद सिंधिया के समक्ष पार्टी के जिलाध्यक्ष और पूर्व जिलाध्यक्ष ने एक-दूसरे के खिलाफ आस्तीनें चढ़ा ली थीं और शिवपुरी में भी हालात ज्यादा बेहतर नहीं हैं। शिवपुरी में सिंधिया और दिग्गी समर्थकों के झगड़े से ज्यादा परेशानी सिंधिया समर्थकों के आपसी झगड़े से है। सिंधिया समर्थक एक-दूसरे को नीचा दिखाने में लगे हुए हैं। फिलहाल युद्धविराम की स्थिति अवश्य निर्मित हो गई है। लेकिन कब तलवारें तन जाएं कुछ कहा नहीं जा सकता।

प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी को सत्ता से बाहर करने के लिए कांग्रेस के पास एक मात्र विकल्प बचा है कि वह निर्विवाद छवि के और पूरे प्रदेश में एक समान लोकप्रिय केन्द्रीयमंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करे। लेकिन कांग्रेस की आपसी गुटबाजी के कारण पार्टी आला कमान ऐसा फैसला नहीं कर पा रही है, बल्कि अब तो खुद प्रदेशाध्यक्ष कांतीलाल भूरिया ने सिंधिया के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। सिंधिया की पैरवी करने वालों की दलील है कि उनके नेतृत्व से पार्टी की गुटबाजी को विराम मिलेगा और प्रदेश में कांगे्रस के  पुन: सत्ता में आने का रास्ता साफ होगा। लेकिन सिंधिया विरोधी उनके गढ़ में उनके समर्थकों की बेलगाम हरकतों की शिकायत पार्टी आला कमान के पास पहुंचा रहे हैं।

उनका तर्क है कि सिंधिया के इलाके में पार्टी में गुटबाजी नहीं बल्कि उनके समर्थकों में ही खींचतान है और सिंधिया इसे तक दूर नहीं कर पा रहे हैं। शिवपुरी में पिछले दिनों कई सिंधिया समर्थकों ने दिग्गी खेमे की शरण ली। इनमें पूर्व शहर कांग्रेस अध्यक्ष राकेश गुप्ता, कांग्रेस के पूर्व कार्यवाहक जिलाध्यक्ष लक्ष्मीनारायण धाकड़, युवक कांग्रेस के पूर्व जिलाध्यक्ष विजय शर्मा शामिल हैं। इसके बाद भी सिंधिया समर्थकों का संघर्ष थमने का नाम नहीं ले रहा है। पिछले दिनों पूर्व विधायक वीरेन्द्र रघुवंशी और हरिवल्लभ शुक्ला आमने-सामने आ गए थे।

इस लड़ाई में जिलाध्यक्ष रामसिंह यादव को भी शामिल कर लिया गया था। पोहरी के कांग्रेस नेता पहले से ही हरिवल्लभ के खिलाफ मोर्चा खोले बैठे हैं। पोहरी, कोलारस और करैरा में सिंधिया समर्थकों के बीच खींचतान सारी सीमाएं लांघ चुका है। एक सप्ताह पूर्व सिंधिया के समक्ष अशोकनगर में वहां के जिलाध्यक्ष और पूर्व जिलाध्यक्ष के बीच खुलकर मुंहवाद हुआ। सवाल यह है कि सिंधिया समर्थकों में ऐसा क्यों हो रहा है। स्व. माधवराव सिंधिया के समय भी सिंधिया समर्थकों में गुटबाजी रहती थी, लेकिन अनुशासनहीनता कभी इतना सिर चढ़कर नहीं बोली थी। कभी एक जमाने में सिंधिया समर्थक वफादारी की मिशाल कायम करते नजर आते थे, लेकिन अब ऐसा कहीं से कहीं तक नजर नहीं आ रहा। सिंधिया समर्थकों की हार्दिकता की राजनीति व्यवसायिकता (प्रोफेसनलिज्म) में बदल चुकी है और शायद यही श्री सिंधिया की चिंता का विषय है।