परंपराओं और कुरीतियों को दूर किया वेदों ने : वैदिक विद्वान योगेन्द्र याज्ञिक


शिवपुरी-इस संसार में रहने वाले मनुष्यों ने परंपराओं, कुरीतियों को अपनाकर स्वयं का और परिवार का विनाश किया है लेकिन वेदों को जिसने माना उसका हमेशा जीवन कल्याण हुआ है, आज संसार में मनुष्य केवल दो ही इच्छाऐं मांगता है एक सुख का आना और दूसरा दु:खों का जाना लेकिन सुख आने और दु:ख जाने के लिए वह किस मार्ग पर चल रहा है इसका स्वयं उसे पता नहीं, यहां वेदों ने मनुष्य को सही मार्ग दिखाया है


बताया है कि माता-पिता के सुखों की जो पूर्ति करते है वह स्वयं सुखी हो जाते है और दु:ख इसलिए आते हैं क्योंकि हमने माता-पिता का आदर-मान सम्मान करना कम कर दिया, वेद बताते हैं कि मॉं-बाप की सुख बच्चों में नहीं बल्कि बच्चों के सुख में मॉ-बाप का सुख छुपा होता है और बच्चों के दु:ख से अधिक दु:खी मॉं बाप होते है इसलिए मॉं-बाप का आदर करें, वेद हमें यही सीख देते है। मॉं-बाप के इस आदर सम्मान की यह सीख दे रहे थे होशंगाबाद से पधारे वैदिक विद्वान योगेन्द्र याज्ञिक जो स्थानीय सदर बाजार में शिवपुरी आर्य समाज द्वारा आयोजित वेदकथा में अपने आशीर्वचन दे रहे थे।

इस अवसर पर आर्य समाज के प्रख्यात पं.नरेश दत्त आर्य ने वेदों की वाणी का बखान करते हुए बताया कि आज मनुष्य पाश्चात्य संस्कृति के भंवर में डूबता जा रहा है उसने मॉं-बाप को मम्मी-ममा, पिता को डैडी-डैड की संज्ञा दे दी जबकि वेदों में माता-पिता को सर्वोपरि संस्कारित मान गया है इसलिए अपने बच्चों में संस्कारों के प्रवाह को बढ़ाऐं, आर्य समाज ने वेदों को आगे बढ़ाया है यही कारण है कि हम वेदों के मार्ग पर चलकर स्वयं का ही नहीं बल्कि अन्य लोगों का भी कल्याण कर सकते है।

यहां एक भजन के माध्यम से पं.नरेशदत्ती जी ने बताया कि घर में बहू को जलाया ना होता, अगर लोभ मन में समाया ना होता, इस भजन में बताया कि आज मनुष्य लोभ, मोह,माया में डूबा है आज घर की बहू के रूप में उसे दहेज व पुत्र मोह का लालच है जिसके कारण भ्रूण हत्या को बढ़ावा मिला लेकिन वेद हमें सिखाते है कि हम कर्म से महान बनें, बहू को लक्ष्मीस्वरूपा माना गया है इसलिए उसे अपने संस्कारों से संस्कारित करें। वेदकथ में कहा गया है कि स्वेच्छा मन से किए गए कार्य में सुख व आनन्द आता है लेकिन जबर्दस्ती व थोपा गर्या करने में ना सुख मिलता है और ना आनन्द आता है इसलिए सत्य और असत्य को समझकर अपने कार्यों को करें। वैदिक विद्वान योगेन्द्र याज्ञिक ने कहा कि जीवन में विवाह का मूल्य आज कोई नहीं समझता, शादी करते वक्त अग्नि के फेरे लेने का महत्व कोई नहीं जानता बस कहा जाता है कि यह परंपरा है और इन्हीं परंपरों और कुरीतियों को विरोध किया है वेदों ने क्योंकि यहां ऋषिमुनियों की परंपराओं को भुला दिया है इसलिए जब भी कोई कार्य करें धर्मानुसार सत्य व असत्य को सोच-समझ कर करें, हम परंपराओं के संवहक में बंधे है इसके बंधन से छूटे और वेदों के बताए मार्ग पर चलें।

इस अवसर पर वेदकथा में ईश्वर पूजा का सही महत्व एक नाटक मंचन के माध्यम से आर्य समाज की भावना आयानी-सुरभि द्वारा किया गया जिसमें ईश्वर की आराधना करने व कर्म से फल की प्राप्ति होने का संदेश दिया। इस दौरान एक छोटी सी बालिका आर्या द्वारा भी वैदिक मंत्रोच्चारण का जब उच्चारण किया गया तो पूरा पाण्डाल तालियों की गडग़ड़ाहट से गुंजायमान हो गया। यहां बता दें कि आर्य समाज ने हमेशा वैदिक पंरपराओं के निर्वाह को आगे बढ़ाया है और यही वजह है कि आर्य समाज आने वाले छोटे से छोटे और बड़े-बड़े  आर्य बन्धु वैदिक धर्म को मान रहे है उनके आदर्शों पर चल रहे है। वेदकथा से पूर्व हवन, यज्ञ एवं पूजन किया गया साथ ही भजन उपदेशक के माध्यम से यज्ञ की विधियों को बताया गया।