नपं चुनावों में मिली हार से भाजपा की मुश्किलें बढऩा तय

शिवपुरी-अमूमन देखा गया है कि जब कोई अति आत्मविश्वास में आता है तो उसका परिणाम भी गलत ही होता है यही हाल इन दिनों शिवपुरी ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश में देखने को मिल रहा है। अति उत्साह से लवरेज भाजपा पार्टी के प्रदेश पदाधिकारी और कार्यकर्ता स्वयं अपने उत्साह से यह जाहिर कर रहे है कि नगर पंचायतों के चुनावों में मिल रही हार उनका विधानसभा के चुनाव में कुछ नहीं बिगाड़ेगी

जबकि हकीकत यह है कि यदि इस तरह नगर पंचायतों के चुनावों में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा रहा है तो इसके लिए कहीं ना कहीं पार्टी में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। शिवपुरी में इसकी बानगी उस समय देखने को मिली जब 2009 के उप चुनाव में शिवराज सरकार का पूरा मंत्रीमण्डी शिवपुरी में था उसके बाद भी भाजपा प्रत्याशी गणेश गौतम को विजयी ना बना सके ठीक इसी प्रकार से इन दिनों कांकेर, राधौगढ़ और अब नरवर में नगर पंचायतों में मिली हार के बाद भी भाजपा सबक लेने के मूड में नहीं है। 

फिलवक्त शिवपुरी में पांच विधानसभाओं में गत चुनावों में जीत दर्ज करने वाली भाजपा की मुसीबतें इस बार विधानसभा के चुनावों में बढऩा तय है। क्योंकि यहां आपसी खींचतान और भितरघात का परिणाम इन चुनावों में नजर आया। स्थानीय मतदाताओं प्रत्याशी की छवि को देखकर अपने मत का प्रयोग कर रहे है निश्चित रूप से यदि ऐसा होता है तो आने वाले समय में शिवराज सरकार की पुन: वापसी पर संकट के बादल मंडराना तय है। 


शिवपुरी की यदि बात की जाए तो यहां विधानसभा चुनाव में एक वर्ष से भी कम समय शेष है और शिवपुरी जिले में भारतीय जनता पार्टी इस वक्त अपने सबसे नाजुक दौर से गुजर रही है। नरवर चुनाव ने तो भाजपा की दुर्दशा का पूरा चित्रण कर दिया है। नपं अध्यक्ष पद के चुनाव में भाजपा बसपा से भी पीछे तीसरे स्थान पर रही। भाजपा के लिए यह चिंता की बात है, क्योंकि पिछले विधानसभा चुनाव में जहां भाजपा ने पांच में से चार सीटें जीतीं थीं वहीं आगामी चुनाव में किसी भी सीट पर भाजपा निश्चिंतता की स्थिति में नहीं है। पार्टी की गुटबाजी ने इस जिले में भाजपा को रसातल में पहुंचा दिया है। 

भारतीय जनता पार्टी द्वारा जीतीं गईं सीटों की बात करें तो पिछले चुनाव में जिला मुख्यालय पर भाजपा ने फतेह हासिल की थी। भाजपा प्रत्याशी माखनलाल राठौर ने कांग्रेस प्रत्याशी वीरेन्द्र रघुवंशी को लगभग डेढ़ हजार मतों से पराजित किया था। उस चुनाव में श्री राठौर के प्रचार में यशोधरा राजे और उनके पुत्र अक्षय राजे ने खूब पसीना बहाया था। उसके बाद भी ग्रामीण क्षेत्रों में भाजपा की स्थिति बेहद शर्मनाक रही थी। लेकिन नगरीय सीमा में भाजपा प्रत्याशी की बढ़त लगभग 8-10 हजार मतों की रही थी। इसके बाद हुए नगरपालिका चुनाव में भाजपा प्रत्याशी रिशिका अष्ठाना ने कांग्रेस प्रत्याशी श्रीमती आशा गुप्ता को पराजित कर दिया था, लेकिन उनकी बढ़त विधानसभा चुनाव की तुलना में घट गई थी। 

उसके बाद से शिवपुरी के चंादपाठा से खूब पानी बहा। सीआईडी ने प्रदेश सरकार को जो रिपोर्ट सौंपी है। उसके अनुसार भाजपा के लिए शिवपुरी सीट प्राप्त करना बेहद मुश्किल होगा। एण्टी इनकम्बंसी फेक्टर का खामियाजा भाजपा को भुगतना पड़ेगा। ऐसी स्थिति में भाजपा की चिंता यह है कि अपने पक्ष में वह स्थितियों को कैसे अनुकूल करे। शिवपुरी से किसे चुनाव लड़ाया जाए और किसे प्रचार की कमान सौंपी जाए? पिछले विधानसभा चुनाव में यशोधरा राजे चुनाव नहीं लड़ीं थीं, लेकिन जिले में प्रचार की कमान उनके हाथ में थी। इस बार उनके नेतृत्व चुनाव लड़ा जाएगा यह स्पष्ट नहीं हैं और यदि यशोधरा राजे प्रचार से दूर रहीं तो भाजपा के लिए यह सीट जीतना बेहद-बेहद मुश्किल होगा। 

कोलारस में तो एक तरह से फोटो फिनिस से भाजपा उम्मीदवार देवेन्द्र जैन चुनाव जीते थे। इस बार स्थिति उनके बहुत अनुकूल नहीं है। कांग्रेस के पास कोलारस में एक से एक धांसू उम्मीदवार हैं जबकि  कोलारस में भाजपा को यदि विकल्प ढूंढऩा हैं तो विधायक देवेन्द्र जैन के स्थान पर उनके अनुज का विकल्प ही शेष बचता है। अन्य उम्मीदवारों में शेष बाहरी हैं चाहे वह पोहरी विधायक प्रहलाद भारती हों। भाजपा करैरा और पोहरी में भी संकट में घिरी नजर आ रही है। मण्डी चुनाव में भाजपा ने किसी तरह पोहरी में ईज्जत बचाई और बैराड़ में तो भाजपा के पास अध्यक्ष पद के लिए कोई उम्मीदवार ही नहीं था। 

पोहरी का इतिहास भी भाजपा के खिलाफ जा रहा है। आज तक कोई मौजूदा विधायक पोहरी में दूसरी बार नहीं जीता है। करैरा का आंकलन तो भाजपा ने नरवर के नपं अध्यक्ष पद के चुनाव से लगा लिया होगा। पिछोर का किला तो एक तरह से कांगे्रस के लिए अभेध्य है। भाजपा के लिए यहां पिछले 20 साल से कोई संभावना नहीं हैं और इस बार भी भाजपा को यहां से निराश होना तय है। ऐसी स्थिति में यदि भाजपा ने अपनी रणनीति नहीं बदली और जनता का दिल नहीं जीता तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की जनकल्याणकारी नीतियों के बाद भी भाजपा का खाता खाली रह सकता है।