यशोधरा राजे की हरी झंडी के बाद,क्या हो सकती है रणवीर की पुन: ताजपोशी?

शिवपुरी। भारतीय जनता पार्टी के जिलाध्यक्ष पद पर इस माह तक फैसला होने की उम्मीद है। भाजपा सूत्रों से जो संकेत मिल रहे हैं उससे पता चलता है कि चुनावी वर्ष में एक बार फिर पार्टी रणवीर रावत पर भरोसा करने के लिए तत्पर नजर आ रही है।

अभी तक उनके  खिलाफ खड़े कोलारस विधायक देवेन्द्र जैन के नरवर चुनाव में पराजय के पश्चात हौंसले पस्त हो चुके हैं और वह भी स्वीकार कर रहे हैं कि रणवीर रावत ही जिलाध्यक्ष बनेंगे। श्री रावत की ताजपोशी में सिर्फ यशोधरा राजे का अड़ंगा ही शेष बचा है, लेकिन नरवर चुनाव में यशोधरा राजे के न आने से भाजपा के माहौल में थोड़ी सी कड़वाहट घुली है इसलिए संभव है कि शायद उनसे जिलाध्यक्ष पद के लिए राय मशवरा न लिया जाए या संभव है कि टकराहट की राजनीति से दूर रहकर यशोधरा राजे स्वयं रणवीर रावत के नाम पर कोई आपत्ति न लगाएं। 

भाजपा जिलाध्यक्ष के पद पर रणवीर रावत की ताजपोशी में सबसे पहला अड़ंगा विधायक देवेन्द्र जैन ने लगाया था। यह बात अलग है कि उनका विरोध तब मुखर हुआ जब यशोधरा राजे ने कमान अपने हाथों में संभाली। रणवीर विरोध के नाम पर एक-दूसरे के घुर विरोधी माने जाने वाले देवेन्द्र जैन और यशोधरा कम से कम इस बिंदु पर एक साथ खड़े नजर आये। लेकिन रणवीर का सबसे प्रबल पक्ष यह था कि उस समय के प्रदेशाध्यक्ष प्रभात झा और वर्तमान प्रदेशाध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर उनके पक्ष में थे। रणवीर रावत राजनीति में वैसे भी खुलकर नरेन्द्र सिंह के साथ हैं। 

इस कारण रणवीर के उत्तराधिकारियों के रूप में ओमी गुरू, अशोक खण्डेलवाल, ओमप्रकाश खटीक आदि के नाम चले, लेकिन इन्हें जिलाध्यक्ष बनाने के लिए प्रदेश आला कमान सहमत नहीं हुआ। परिणाम यह हुआ कि शिवपुरी जिले के संगठन के चुनाव निरस्त कर दिए गए और मनोनयन की जिम्मेदारी नवनियुक्त प्रदेशाध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर पर छोड़ी गई। 

इसके बाद नरवर चुनाव में विधायक देवेन्द्र जैन को प्रभारी और पूर्व विधायक ओमप्रकाश खटीक को सहप्रभारी बनाया गया। प्रचार की कमान स्वयं नरेन्द्र सिंह तोमर, नरोत्तम मिश्रा, महेन्द्र हार्डिया, नारायण सिंह कुशवाह आदि ने संभाली और पर्दे के पीछे से कार्यकर्ताओं में ऊर्जा भरने का कार्य प्रदेश संगठन मंत्री अरविंद मेनन, संभागीय संगठनमंत्री प्रदीप जोशी, जिला संगठन मंत्री श्याम महाजन, हुकूमचंद गुप्ता आदि ने संभाली। चुनाव में यशोधरा राजे प्रचार से दूर रहीं। 

नरवर चुनाव के बहाने भाजपा जनता की नब्ज एक बार फिर से टटोलना चाहती थी कि क्या यशोधरा राजे के बिना वह जिले की राजनीति में आगे बढ़ सकती है। इस कारण प्रचार की कमान एक तरह से यशोधरा विरोधियों ने संभाल रखी थी। इस मकसद से भाजपा ने चुनाव जीतने के लिए पूरी ताकत लगाई। सारे आर्थिक संसाधन चुनाव जीतने के लिए झोंक दिए गए। 

चुनाव प्रचार समाप्त होने के बाद भी विधायक देेवेन्द्र जैन, ओमप्रकाश खटीक सहित अनेक बाहरी नेता नरवर में जमे रहे, लेकिन इसके बाद भी भाजपा प्रत्याशी जिनेन्द्र जैन न केवल पराजित हुआ, बल्कि उन्हें पराजित बसपा प्रत्याशी से भी एक हजार वोट कम मिले। इस हार से भाजपा निराश तो अवश्य है, लेकिन सूत्र बताते हैं कि इसकी गाज जिलाध्यक्ष रणवीर रावत के स्थान पर देवेन्द्र जैन पर गिरेगी, क्योंकि उन्होंने ही मुखर रूप से नरवर की कमान संभाल रखी थी और वहीं रणवीर रावत के जिलाध्यक्ष बनाने के विरोधी थे। 

सूत्र यह भी बताते हैं कि यशोधरा राजे ने जिलाध्यक्ष के चुनाव में तब हस्तक्षेप किया था जब देवेन्द्र जैन सहित भाजपा नेताओं ने उनसे कहा था कि रणवीर के पक्ष में कार्यकर्ताओं में आम सहमति नहीं है। रणवीर रावत प्रदेशाध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर के भी चहेते हैं और मण्डी कमेटी के चुनाव में उनकी पत्नी उर्मिला रावत की विजय से उनका कद बढ़ा है। ऐसी स्थिति में श्री रावत के  जिलाध्यक्ष बनने की संभावना जीवित बनी हुई है। 

उनके उत्तराधिकारी के रूप में ओमी गुरू का नाम लिया जा रहा है जिनके नाम पर विधायक देवेन्द्र जैन के साथ जिलाध्यक्ष खैमा भी सहमत नहीं है और दूसरे प्रत्याशी अशोक खण्डेलवाल के आर्थिक पहलू को देखकर उन्हें चुनावी वर्ष में प्रदेशाध्यक्ष तोमर जिलाध्यक्ष बनाए जाने के  पक्ष में नहीं हैं। ऐसी स्थिति में फिलहाल तो रणवीर रावत को जिलाध्यक्ष बनाये जाने के पक्ष में समीकरण बन रहे हैं।