कांग्रेस के गैस काण्ड के बाद कैसे बचाऐंगें श्री सिंधिया अपनी साख

विशेष टिप्पणी/ ललित मुदगल/ शिवपुरी-देश में बड़े-बड़े घोटाले व भ्रष्टाचार हुए लेकिन जनता को इससे कोई सरोकार नहीं हुआ, ये घोटाले व भ्रष्टाचार कुछ दिन आम जनता की नजरों में सुर्खियां बटोरकर फिर अपने काम में लग भी जाते है लेकिन वर्तमान परिवेश की बात करें तो यहां कांग्रेस ही नहीं बल्कि अब तो शिवपुरी-गुना में क्षेत्रीय सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया की साख की बात आ गई है। हम बात कर रहे है कांग्रेस के गैस काण्ड की जहां सब्सिडी की मार झेल रहे गैस उपभोक्ता अब कांग्रेस पार्टी को अलसुबह से ही कोसते नजर आ रहे है।

यहां सिंधिया की साख इसलिए भी दांव पर लगी है क्योंकि क्षेत्र में कांग्रेस का दबदबा परोक्ष या अपरोक्ष रूप से उन्हीं के इशारे पर है परन्तु आगामी समय में विधानसभा चुनाव को लेकर तो स्वयं सिंधिया भी असमंजस में है और इसे लेकर वे खासे चिंतित भी नजर आते है यदि इसी समय कांग्रेस ने अपने इन विधानसभा क्षेत्रों में अपना परचम नहीं फहरा सके तो वह दिन भी दूर नहीं जब सिंधिया की साख को ही ये कांग्रेसी बट्टा लगाने से बाज ना आ जाए। प्रदेश में अच्छा खासे दबदबे का परिणाम है कि आज श्री सिंधिया भारत सरकार में ऊर्जा मंत्री के रूप में प्रदेश का नेतृत्व कर रहे है।
 
जनता की सेवा का मार्ग चुनने के लिए भले ही राजनीति चाहे भाजपा की हो या कांग्रेस की, इसमें सर्वाधिक पैठ जहां भाजपा से प्रदेश में शिवराज रखते है तो वहीं केन्द्र में कांग्रेस पार्टी की ओर से ज्योतिरादित्य सिंधिया भी किसी से कम नहीं। केन्द्र में वाणिज्य एवं उद्योग राज्यमंत्री से प्रमोशन पाकर ऊर्जा मंत्री का पद पाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया इन दिनों अपने ही संगठन को लेकर चिंतित है क्योंकि इस बार साख सीधे सिंधिया से जुड़ी है। गैस सब्सिडी को लेकर सिलेण्डरों की जो मार महिलाऐं व घर के सदस्य झेल रहे है वह रोज सुबह की चाय से लेकर रात के खाने तक कांग्रेस पार्टी को कोसते नजर आते है। 

चूंकि यह चुनावी दौरे का समय शुरू हो रहा तो इसका सर्वाधिक असर भी जनता में देखने को मिलेगा। वैसे तो शुरू से ही सिंधिया का कांग्रेस से नाता रहा है चाहे भले ही कोई कहीं भी चला जाए मगर क्षेत्र व प्रदेश की राजनीति में सिंधिया एक मंजे हुए उभरते नेतृत्व को सदैव सार्थक करते नजर आए और यही सब केन्द्र ने भी माना जिसके परिणाम स्वरूप आज वह ऊर्जा मंत्री का पद लेकर भारत सरकार में बैठे है। चूंकि  केन्द्र सरकार के  बड़े-बड़े घोटाले किए और जनता के सामने भी आए लेकिन देर-सबेर जनता समय के साथ-साथ भूलती भी जाती है अभी-अभी जो गैस काण्ड मामला है जिसमें सीधी मार आम जनता पर पड़ी है यहां अब तो प्रत्यक्ष रूप से जनता जुड़ी और सुबह की चाय बनते ही कांग्रेस को कोसना शुरू। 

इस स्थिति में अब सिंधिया की साख का सवाल बनी अंचल की सभी पांचों विधानसभाओं में कांग्रेस का नेतृत्व लाना बड़ी जिम्मेदारी और कठिन दौर से गुजरना भी नजर आ रहा है। देखा जाए तो वर्तमान चेहरों में से कोई भी शिवपुरी की चारों विधानसभाओं में ऐसा नहीं जो सिंधिया की नजरों में सफल नेतृत्व दिखा सके। यहां शिवराज फैक्टर के चलते कांग्रेस में ऐसा कोई नेता नहीं है जो कांग्रेस को जिता सके। संगठन में गुटबाजी की मार झेल रहे कांग्रेसियों के बीच सामंजस्य बिठाने के लिए बार-बार जिला नेतृत्व(कांग्रेस जिलाध्यक्ष)को बदलना पड़ रहा है। 

यहां के वर्तमान जिलाध्यक्ष तो कठपुतली मात्र है जिन्हें जो नचा दे वह नाचने को तैयार। क्षेत्रीय समस्या से लेकर आम जनता की पीड़ा को आज तक जो नहीं समझ सके कैसे वह जिले का नेतृत्व कर रहे है यह सोचनीय पहलू है। यदि कोई विरोध करना है तो इसके लिए  विरोध नहीं करते बल्कि भोपाल से जो चलता है तो उसे ही वे से यहां चलाते है यदि ऊपर जो होता है तो वहीं नीचे होता है विधानसभा में ऐसा कोई नेता नहीं जो अपने हिसाब से जनता को जोड़ सके।
 
जिला पार्टी संगठन शिवपुरी की कांग्रेंस की राजनीति की बात की जाए तो श्री सिंधिया से शुरू होकर श्री सिंधिया पर ही खत्म हो जाती है। यहां कांग्रेस का जो रोल है वह विपक्ष का है। वर्तमान में जो जिलाध्यक्ष है वह इस भूमिका का निर्वहन करने में सक्षम नजर नहीं आ रहे है। प्रदेश से जो भी जनहित के आन्दोल करने के लिए आते है वहीं आन्दोलन जिला कांग्रेस करती है। 

यहां की कांग्रेस कोई भी अपनी दम पर भाजपा के खिलाफ कोई मुद्दा नहीं ढूंढ सकी है। या यूं कह लें कि यहां की स्थानीय कांग्रेस की राजनीति सिर्फ  सिंधिया के आगे पीछे घूमने की ही है। यहां पर भाजपा के चार विधायक है अभी हाल ही में शिवपुरी विधायक  पुत्र मोह में फंसे थे इस अवसर को भी स्थानीय कांग्रेस भुना नहीं पाई। स्थानीय कांग्रेस केवल सिंधिया जी के स्वागत अभिनंदन और धन्यवाद के पोस्टरों में ही सिमटी हुई है। ऐसी स्थिति में जहां शिवराज का जादू एवं केन्द्र सरकार के गैस सिलेण्डर काण्ड के बाद श्री सिंधिया को इन पांचों विधानसभाओं में जीत दिलाना लोहे के चने चबाने के बराबर जैसा दिख रहा है।
 
विधानसभा शिवपुरी-शिवपुरी अंचल में कांग्रेस नेतृत्व की कमी नजर आती है वैसे यहां से पूर्व विधायक वीरेन्द्र रघुवंशी दो बार विधायक का चुनाव लड़ चुके है जिसमें उन्होंने प्रदेश नेतृत्व को भी मात दी जिसमें शिवराज सिंह चौहान के पूरे मंत्रीमण्डल के शिवपुरी आने के बाद भी वह गणेश गौतम को हराने में कामयाब रहे लेकिन उपचुनाव का कार्यकाल पूरा करने के बाद कांग्रेस ने जब उन्हें पुन: दोहराया तो यहां वे मात खा गए और कांग्रेस वीरेन्द्र सिंह रघुवंशी पराजित हुए। अब पुन: रिपीट की गुंजाईश कम ही नजर आती है लेकिन अन्य कोई चेहरा नजर ना आने से यहां वीरेन्द्र को ही आगे किया जाए तो इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता।
 
विधानसभा पोहरी-जिले की पोहरी विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस नेतृत्व है लेकिन आपसी गुटबाजी के कारण यह कांग्रेसी आपस में ही फूटे हुए है यहां पूर्व विधायक हरिबल्लभ शुक्ला जिन्होंने सिंधिया से मुखर विरोध दर्ज कर अब कांग्रेस में अपनी जड़ें जमाई है तो वह भी इस लालसा में है कि कांगे्रस में आने के बाद टिकिट उन्हे मिल जाए लेकिन वह यहां नेतृत्व ला सके इसकी संभावना भी ना के बराबर ही है साथ ही वरिष्ठ कांग्रेस नेता जगदीश वर्मा, पूर्व मंडी अध्यक्ष एन.पी.शर्मा, महिलाओं में दमखम रखने वाली जनपद अध्यक्ष पोहरी रामकली चौधरी सहित अन्य कुछ छुटभैया नेता भी पीछे नहीं है। यहां तो भरपूर कांग्रेसी है जो आपस में ही विभक्त हैं।
 
विधानसभा कोलारस-देखा जाए तो कोलारस क्षेत्र ही एक ऐसा क्षेत्र है जहां कांग्रेसियों के गढ़ को भेदने में भाजपा को भी काफी मशक्कत करनी पड़ी थी यह इसलिए क्योंकि यहां से पूर्व में जब विधानसभा चुनाव थे तब कांग्रेस जिलाध्यक्ष रामसिंह यादव अपने प्रतिद्वंदी कोलारस विधायक देवेन्द्र से महज कुछ ही मतों के अंतराल से हारे थे यहां पर कांग्रेस नेतृत्व का अच्छा खासा दबदबा होने के बाद भी यहां कांग्रेस आए इसे लेकर भी कई बातें सामने आती है। चूंकि कांग्रेसी बैजनाथ सिंह यादव, रामसिंह यादव, लाल साहब यादव के पुत्रगण के साथ-साथ कुछ ऐेसे कांग्रेसी चेहरे भी है जो सिंधिया से यहां नेतृत्व चाहते है लेकिन वह यहां विजयी हो इसकी संभावना भी नगण्य है।
 
विधानसभा पिछोर-बस एक यही विधानसभा ऐसी है जहां भाजपा को भी पसीना छूट जाता है कि यहां कद्दावर नेता के.पी.सिंह को कैसे भी मात दी जाए लेकिन हर सफल कोशिशें भाजपा की बेकार गई और यहां हैट्रिक मार चुके केपी सिंह पुन: यहां विजयी होंगे इससे इंकार नहीं किया जा सकता। जनता में अपनी छवि को जिस प्रकार से श्री सिंह ने बिठाई है वहां कोई अन्य दल अपनी जगह बनाने में हमेशा नाकाम ही रहा है बस कांग्रेस की सफलता में यदि कोई सहायक है तो सिंह साहब जिनके रूतबे ही नहीं बल्कि एक स्पष्टï छवि यहां की जनता को स्वीकारती है।
 
विधानसभा करैरा-जिले की करैरा विधानसभा एक ऐसी विधानसभा है जहां कांगे्रस का नेतृत्व उभरकर सामने आने में हर बार पीछे रहा है यहां से श्रीमती शकुन्तला खटीक और के.एल.राय अपने-अपने स्तर से टिकिट की बाट जोह रहे है और यही वजह है कि वह बहुत समय पहले से करैरा अंचल के विभिन्न ग्रामों में अपने संपर्कों के माध्यम से अपनी छवि बिठाने के लिए प्रयासरत है। करैरा में देखा जाए तो कांग्रेस और भाजपा के मुकाबले में कांग्रेस को ही आगे माना जा सकता है लेकिन अभी समय भाजपा से भी यहां ओमप्रकाश खटीक अथवा रणवीर रावत के बाद कई ऐेसे नेता मौजूद है जो यहां कांग्रेसियों से अच्छा खासा दबदबा रखते है और इसे क्षेत्रीय जनता सहर्ष स्वीकार भी करेगी इसमें कोई दो राय नहीं।