रक्षाबंधन की तैयारियां जोरों पर

शिवपुरी। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जाता है। इसे आमतौर पर भाई.बहनों का पर्व मानते हैं लेकिनए अलग.अलग स्थानों एवं लोक परम्परा के अनुसार अलग.अलग रूप में रक्षाबंधन का पर्व मानते हैं। वैसे इस पर्व का संबंध रक्षा से है। जो भी आपकी रक्षा करने वाला है उसके प्रति आभार दर्शाने के लिए आप उसे रक्षासूत्र बांध सकते हैं।


भगवान श्रीकृष्ण ने रक्षा सूत्र के विषय में युधिष्ठिर से कहा था कि रक्षाबंधन का त्योहार अपनी सेना के साथ मनाओ इससे पाण्डवों एवं उनकी सेना की रक्षा होगी। श्रीकृष्ण ने यह भी कहा था कि रक्षा सूत्र में अद्भुत शक्ति होती है। रक्षाबंधन से सम्बन्धित इस प्रकार की अनेकों कथाएं हैं। रक्षाबंधन के पर्व की तैयारियंों को लेकर बाजार में भी अच्छी खासी चहल पहल देखने को मिल रही है। शहर के व्यस्तम मार्के  टेकरी में तो महिलाओं व युवतियों की खासी भीड़ नजर आती है।

यूं तो रक्षाबंधन पर्व मनाने के कई तरीके लेकिन मान्यतानुसार बताया गया है कि रक्षा बंधन पर्व मनाने की विधि रक्षा बंधन के दिन सुबह भाई.बहन स्नान करके भगवान की पूजा करते हैं। इसके बाद रोलीए अक्षतए कुंमकुंम एवं दीप जलकर थाल सजाते हैं। इस थाल में रंग.बिरंगी राखियों को रखकर उसकी पूजा करते हैं फिर बहनें भाइयों के माथे पर कुंमकुंमए रोली एवं अक्षत से तिलक करती हैं। इसके बाद भाई की दाईं कलाई पर रेशम की डोरी से बनी राखी बां धती हैं और मिठाई से भाई का मुंह मीठा कराती हैं। राखी बंधवाने के बाद भाई बहन को रक्षा का आशीर्वाद एवं उपहार व धन देता है।

बहनें राखी बांधते समय भाई की लम्बी उम्र एवं सुख तथा उन्नति की कामना करती है। इस दिन बहनों के हाथ से राखी बंधवाने से भूत.प्रेत एवं अन्य बाधाओं से भाई की रक्षा होती है। जिन लोगों की बहनें नहीं हैं वह आज के दिन किसी को मुंहबोली बहन बनाकर राखी बंधवाएं तो शुभ फल मिलता है। इन दिनों चांदी एवं सोनी की राखी का प्रचलन भी काफी बढ़ गया है। चांदी एवं सोना शुद्ध धातु माना जाता है अत: इनकी राखी बांधी जा सकती है लेकिनए इनमें रेशम का धागा लपेट लेना चाहिए। रक्षाबंधन का धार्मिक महत्व रू भाई बहनों के अलावा पुरोहित भी अपने यजमान को राखी बांधते हैं और यजमान अपने पुरोहित को।

इस प्रकार राखी बंधकर दोनों एक दूसरे के कल्याण एवं उन्नति की कामना करते हैं। प्रकृति भी जीवन के रक्षक हैं इसलिए रक्षाबंधन के दिन कई स्थानों पर वृक्षों को भी राखी बांधा जाता है। ईश्वर संसार के रचयिता एवं पालन करने वाले हैं अत: इन्हें रक्षा सूत्र अवश्य बांधना चाहिए। वहीं  राखी भद्रा काल में राखी नहीं बांधना चाहिए। इस समय रक्षाबंधन करने पर दोष लगता है और भाई के लिए मांगी गई दुआएं असर नहीं करती हैं। इसलिए भद्रा काल समाप्त होने के पश्चात ही राखी बांधना शुभ होता है। इन दिनों बाजार में अच्छी खासी चहल-पहल बाजारों में रक्षाबंधन के त्यौहार को लेकर देखी जा रही है।

पौराणिक कथाओं में रक्षाबंधन

रक्षाबंधन की कथा रू रक्षाबंधन कब प्रारम्भ हुआ इसके विषय में कोई निश्चित कथा नहीं है लेकिन जैसा कि भविष्य पुराण में लिखा हैए उसके अनुसार सबसे पहले इन्द्र की पत्नी ने देवराज इन्द्र को देवासुर संग्राम में असुरों पर विजय पाने के लिए मंत्र से सिद्ध करके रक्षा सूत्र बंधा था। इससे सूत्र की शक्ति से देवराज युद्ध में विजयी हुए। शिशुपाल के वध के समय भगवान कृष्ण की उंगली कट गई थी तब द्रौपदी ने अपनी साड़ी का आंचल फाड़कर कृष्ण की उंगली पर बांध दिया। इस दिन सावन पूर्णिमा की तिथि थी। भगवान श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को वचन दिया कि समय आने पर वह आंचल के एक.एक सूत का कर्ज उतारेंगे। द्रौपदी के चिरहरण के समय श्रीकृष्ण ने इसी वचन को निभाया। आधुनिक समय में राजपूत रानी कर्मावती की कहानी काफी प्रचलित है। राजपूत रानी ने अपने राज्य की रक्षा के लिए मुगल शासक हुमायूं को राखी भेजी। हुमायूं ने राजपूत रानी को बहन मानकर राखी की लाज रखी और उनके राज्य को शत्रु से बचाया।