महादेव बनने के लिए चालाकी नहीं, सरलता और भोलापन आवश्यक


शिवपुरी- महाशिवरात्रि पर्व के अवसर पर आयोजित धर्मसभा में प्रसिद्ध जैन साध्वी आदर्श ज्योति ने बताया कि वैदिक परम्परा में 33 करोड़ देवी-देवता हैं, लेकिन महादेव एक हैं और महादेव बनने के लिए चालाकी और कुटिलता नहीं, बल्कि सरलता और भोलापन आवश्यक है। उन्होंने बताया कि महादेव इसलिए महादेव हैं, क्योंकि समुद्र मंथन में उन्होंने अमृत के स्थान पर जहर का न केवल सेवन किया, बल्कि उसे पचाया भी है। इसलिए महाशिवरात्रि पर्व पर भगवान महादेव का संदेश यही है कि हम अपने जीवन में सहिष्णुता को अंगीकार करें और विष पीना सीखें। धर्मसभा में साध्वी आत्म ज्योति ने दौलत और लक्ष्मी के फर्क को रेखांकित करते हुए कहा कि दौलत का अर्जन पाप के जरिए होता है जबकि लक्ष्मी पुण्य प्रताप से कमाई जाती है।

साध्वी आदर्श ज्योति ने बताया कि आध्यात्मिक जगत में होश का अलग अर्थ होता है। होश सिर्फ जीवित रहने और सांस लेने का नाम ही नहीं है, बल्कि होशपूर्ण व्यक्ति उसे कहा जाता है जिसने आत्म अनुभूति को प्राप्त कर लिया है। ऐसा व्यक्ति भले ही संसार में बैठा हो, लेकिन कमल की तरह संसार की विषय वासना उसे दूषित नहीं करती। इसलिए धार्मिक होने के लिए होश साधना अत्यंत आवश्यक है और जिसने अपने जीवन में होश साध लिया उसका पूरा जीवन अलौकिक और आत्मिक आनंद से भर जाता है और वह दूसरों को भी सिर्फ खुशी और सुख बांटता है। 

घर-घर में हो रहे कलह का जिक्र करते हुए साध्वी आदर्श ज्योति ने कहा कि पारिवारिक झगड़ों का मुख्य कारण यह है कि जीवन अभी भी बेहोशी में चल रहा है। इसीलिए जीवन में कुटिलता, राग-द्वेष, जटिलता और चालाकी का समावेश हो जाता है। बेहोश होने के लिए यह अत्यंत आवश्यक तत्व हैं। साध्वी जी ने कहा कि महादेव इसलिए भी महादेव हैं, क्योंकि उन्होंने अपने जीवन में होश को साधा है। इससे जीवन में सरलता और भोलेपन का प्रवेश हुआ है और इसीलिए महादेव को भोलेनाथ भी कहा जाता है। साध्वी जी ने कहा कि महाशिवरात्रि पर्व मनाना हमारे लिए तब ही औचित्यपूर्ण होगा जब हम भगवान शंकर के गुणों को अपने जीवन में समावेश करें और होश साधकर सरलता और भोलेपन को अंगीकार करें। 

इसके पूर्व साध्वी आत्म ज्योति ने अपने प्रवचन में बताया कि संसार में आकर अधिकतर लोग धन प्राप्ति की दौड़ में लग जाते हैं। कुछ लोग पुण्य के संचय को अपने जीवन का मिशन बनाते हैं, लेकिन प्रभु की शरण में जाने वाले को धन के साथ-साथ पुण्य का भी साथ मिलता है और वह सदगति को प्राप्त करने में समर्थ होता है यही तो जीवन का लक्ष्य है।
 
माता-पिता के प्रति श्रद्धा के कारण ही गणेश प्रथम पूज्य हैं 
सास का बहू के साथ, पिता का पुत्र के साथ, भाई का भाई के साथ, जेठानी का देवरानी के साथ मेल नहीं बैठता और इन बेमेल संबंधों को झगड़े का कारण बताया जाता है, लेकिन भगवान शंकर का परिवार तो देखिए उनकी बारात तो देखिए, सारे के सारे बेमेल संबंधों का उनमें समावेश है। बेमेल रिश्ते किस तरह अनुकूल बनते हैं यह भगवान शिव से सीखा जा सकता है। उक्त उद्गार व्यक्त करते हुए साध्वी आदर्श ज्योति जी ने कहा कि महादेव की सवारी बैल जबकि पार्वती की सवारी शेर, भोलेनाथ के गले में सांप और उनके पुत्र कार्तिकेय और गणेश की सवारी क्रमश: मोर और चूहा सब सजातीय दुश्मन, लेकिन महादेव के परिवार में मिलजुलकर रहते हैं। साध्वी जी ने यह भी बताया कि गणेश प्रथम पूज्य इसलिए माने जाते हैं, क्योंकि उनकी अपने माता-पिता के प्रति अद्भुत श्रद्धा थी। प्रथम कौन रहेगा इसके लिए जब देवताओं ने तीन लोकों की परिक्रमा की तो गणेश ही थे जिन्होंने अपने माता-पिता की वंदना और परिक्रमा को तीन लोकों की यात्रा से ऊपर रखकर श्रद्धा अभिव्यक्त की थी।