गीता शिक्षा का अभिन्न अंग ही नहीं ‘‘धर्मशास्त्र बनें’’: स्वामी बज्रानन्द

स्वामी ब्रजानन्द
    प्रत्येक देश का अपना धर्मशास्त्र है, विश्व को सर्वप्रथम धर्म का संदेश देने वाले भारत के पास अपना धर्मशास्त्र नहीं है, राष्ट्रीय गीत, पशु, पक्षी पुष्प, ध्वज तथा सूत्र है लेकिन राष्ट्रीय धर्म शास्त्र नहीं है,     भारत जैसा देश विश्व में कोई नही था, यहॉं की संस्कृति को देव संस्कृति कहकर, विदेशी पर्यटकों एवं इतिहासकारों  ने प्रसंशा की है, इसी देव संस्कृति के कारण भारत कभी विश्व का नेतृत्व करता था, आज दिशाहीन एवं नेतृत्वहीन होकर विकसित राष्ट्रो का अनुशरण करने के लिए तथा मदद  के लिए मजबूर है, कभी विश्व में मुद्रा बराबर थी, आज पचास गुना पीछे है, क्या कारण है? भारत से दो साल बाद चीन आजाद हुआ था, उसे विकास में दो साल पीछे चलना चाहिये।
    भारत से धर्मशास्त्र के लुप्त होने के परिणाम स्वरूप उसे गुलाम होना पड़ा, सत्रहवीं वार मोहम्मद गौरी ने तीन सौ गायों को सेना के आगे खड़ा करके पृथ्वीराज चौहान को बन्दी बनाकर राजधानी में कब्जा कर लिया, यदि भरत में गाय धर्म नहीं होती तो  पृथ्वीराज चौहान बन्दी नहीं बनते उन्होंने सोलह बार मोहम्मद गौरी को हराया था, लेकिन धर्म खड़ा है तो धर्म पर हथियार क्यों चलाये, धर्म के सामने पृथ्वीराज को हथियार डालने पड़े भारत में कई पराजयों में यह धर्म कारण बना। धर्म की रक्षा में महाराणा प्रताप ने घास की रोटिया स्वीकार की लेकिन अपने ही भाई मानसिंह के साथ भोजन करना स्वीकार नहीं किया, संत ज्ञानेश्वर के माता-पिता को धर्म की रक्षा में आत्महत्या करनी पड़ी, भारत में लाखों लोग छूने खाने से धर्म भ्रष्ट हो गये, आज अफतार पार्टी देकर उसमें शामिल होना गर्व की बात है, दॉंतों के डाक्टरों द्वारा एक ही औजार व सबके दॉंतों का इलाज करने से भी धर्म नष्ट नहीं हो रहा है, ब्लड बैंकों में किसी बोतल में नहीं लिखा है, कि यह अमुक वर्ग का खून है, वहॉं से खून लेकर मरीज को देने के बाद खून-खून में मिलने के बाद भी धर्म नष्ट नही हो रहा है, जिन्हें लोग अछूत मानते हैं उनकी गंदगी में बैठी मक्खी श्रेष्ठ लोगों के खाने पीने की चीजों में गिरती ही रहती है, फिर भी धर्म नष्ट नहीं हो रहा है, पहले इसी भारत में छूने खाने में धर्म नष्ट हो जाता था।
    यह भारत का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा किअभी तक भारत को धर्म की वास्तविक परिभाषा नहीं मिली, धर्म वास्तविकता से परिचित होना तथा देश की जनता को परिचित कराना प्रत्येक प्रतिनिध का प्रथम दायित्व है।
    जिस राष्ट्रीय ध्वज को कोई पैर में रख लेता  है कोई उल्टा पकड़ लेता है कोई अमर्यादित ढंग से पेश करता है, तो यह राष्ट्रीय ध्वज का अपमान माना जाता है, इस पर आपत्ति की जाती हैं, लेकिन राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, रक्षामंत्री, गृहमंत्री एवं कानूनमंत्री ने कभी विचार किया कि यदि कोई आतंकवादी सैकड़ों लोगों को मारकर यदि तिरंगा ओढ़कर भागने लगे तो क्या उस पर गोली चलाने का कोई कमाण्डर आदेश देगा जिसे राष्ट्रपति सलाम करता है जिसे पैर के ऊपर रखने पर अपमान समझा जाता है उस पर गोली चलाना क्या उसका अपमान नहीं होगा।
    यदि कोई देश तिरंगे की दीवार बनाकर आगे खड़ा कर दे तो क्या भारत की फौज उस पर गोली चलायेगी, तिरंगे की दीवाल को आगे बढ़ाते हुए वह पूरे भारत में कब्जा कर सकते हैं। मोहम्मद गौरी की तरह। इस देश को धर्म की वास्तविकता से परिचित होना चाहिये। धर्म किसी तत्वदर्शी महापुरूष के क्षेत्र की वस्तु है।
    विश्व में कोई ऐसा राष्ट्र नहीं है, कोई ऐसा संगठन नही है जो दुख एवं समस्या मुक्त हो, कोई ऐसा प्रतिनिधि नहीं है जो दुख, समस्या पतन एवं विनाश चाहता हो, कोई ऐसा प्रतिनिधि नहीं है जिसके पास इन समस्याओं को स्थाई समाधान हो, यदि होता तो प्रत्येक परिवार, संगठन एवं राष्ट्र समस्या मुक्त एवं दुखमुक्त जीवन यापन करते दिखाई देते।
    सम्पूर्ण विश्व को सभी समस्याओं का स्थाई समाधान सर्व प्रथम भारत के ऋषियों ने दिया था आज भी उनके पास सुरक्षित है।
    योगेश्वर श्री कृष्णोक्त गीता ही वह ज्ञान है जिसमें सम्पूर्ण मानव जाति की सम्पूर्ण समस्याओं का स्थाई समाधन है, इस गीता ज्ञान को सृष्टी के आदि में भगवान ने सर्वप्रथम सूर्य के प्रति कहा, सूर्य ने मनु से कहा, जिसे आदम कहते हैं, आदम के बाद समस्त आदमियों  को यह ज्ञान क्रम से प्राप्त होता आया है, योगेश्वर श्रीकृष्ण ने कहा कि अर्जुन यह ज्ञान लुप्त हो गया है वही ज्ञान जो मैने सृष्टी के आरम्भ में सूर्य के प्रति कहा था, अब तुमसे कह रहा हूँ।
    विस्मृत हुए मानव धर्म शास्त्र गीता को पाठ्यक्रम में शामिल करके मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री जी ने कोई गुनाहा तो नहीं  किया है, अपितु समस्त विद्यार्थियों को एक धर्म का बोध प्राप्त हो, संस्कारवान, चरित्रवान एवं ज्ञानवान बनकर भारत के गौरवशाली इतिहास को पुनः वापस ला सकें इसी उद्देश्य से इसका शुभारम्भ हुआ है। क्यों कि भारत में ऐसा कोई विद्यालय नहीं है, जहाँ देश भक्ति का एवं ईमानदारी का संस्कार मिल सके बिना धर्म के, बिना देश भक्ति के तथा बिना ईमानदारी के देश की सीमाएं एवं व्यक्ति कभी सुरक्षित नहीं हो सकता है।
    प्रत्येक माता-पिता अपने बच्चों को सुरक्षित एवं व्यवस्थित देखना चाहते है, लेकिन विरासत में जो छोड़कर विदा होगें क्या उसके सुरक्षित एवं व्यवस्थित जीवन मिल सकेगा।
    जो पिता अपने पैदा किये हुए बच्चों को अपने विश्वास लायक नहीं बना पाया, वयह समाज एवं राष्ट्र का नेतृत्व प्राप्त करने केबाद उसे विश्वास लायक कैसे बना पायेगा। जो पिता अपने परिवार को दुख मुक्त एवं समस्यामुक्त नहीं बना सकता वह राष्ट्र को कैसे बना सकता है। कोई ऐसा पिता है जिसने सारी सम्पत्ति अपने बच्चों के नाम कर दी हो उसे विश्वास ही नहीं है कि मेरी संतान वृद्धावस्था में मुझे सम्मान से समय पर दो रोटी दे सकेगी।
    श्रीमद्भागवद् गीता निस्संदेह ऐसा अर्तक्य धर्मशास्त्र है जिसमें वर्णित साधनक्रम से प्रत्येक मनुष्य एक दूसरे के विश्वास लायक हो जायेगा दिल एवं शरीर से एक दूसरे के करीब आ जायेगा, प्रत्येक व्यक्ति का जीवन सुरक्षित एवं व्यवस्थित हो जायेगा।
    रोम के प्रसिद्ध दार्शनिक एवं वैज्ञानिक गैलिलों ने सन् 1609 में प्रथम दूरबीन बनाकर कहा कि चन्द्रमा धूमता है, उस समय के लोगों ने देवी-देवताओं के अपमानका आरोप लगाकर गैलिलो को फाँसी दे दी, इसके बाद ब्रूनों ने कहा कि चन्द्रमा ही नहीं अपितु पृथ्वी भी घूमती हैं लोगों ने कहा कि यह डबल पागल है, लोगों को गुमराह कर रहा है हमारे धर्म के विरूद्ध कह रहा है, धर्म विरोधी आरोप लगाकर उसे भी फाँसी दे दी इसके बाद जब विश्व के अनेक वैज्ञानिकों ने इस सच को दोहराया, सभी ने गैलिलो एवं ब्रूनों के कथन का सर्मथन किया तब फाँसी देने वालों के वंशज ही कहने लगे यह बात सर्वप्रथम हमारे वैज्ञानिक ने बताई है इसका श्रेय ले किया। गैलिलों एवं ब्रूनों के सम्मान में बड़ी-बड़ी प्रतिमाएँ बना डाली। लेकिन इस सच का समर्थन करने वाले, दोहराने वाले किसी वैज्ञानिक के नाम अलग से कोई सामप्रदाय नहीं बना। लेकिन भारतीय ऋषियों के एक ईश्वर के संदेश को जिसने दोहराया पीछे वालों ने उनके नाम से एक अलग सम्प्रदाय बना लिया यहीं से मनुष्य के दुर्भाग्य का आरम्भ होता है।
    आरम्भ में कभी इस पृथ्वी में एक ही जाति थी, एक ही विचारधारा थी, एक जैसा खान-पान रहन सहन था, एक जैसी वेशभूषा थी, जब से वस्त्र एवं लोहा अविष्कार में आया तब से मनुष्य अलग-अलग पहनावा एवं वेशभूषा अपना लिया जिससे उनके सम्प्रदाय का परिचय मिल सके। वेशभूषा रहन-सहन, खान-पान मनुष्य को मनुष्य से अलग करने में मदद अवश्य करता है, लेकिन कल्याण पाने में सुख शान्ति पाने में एक होने में कदापि मदद नहीं करता है।
    विश्व में कोई भी ऐसा धर्मशास्त्र नहीं है जो श्रीमद्भागवद् गीता के विपरीत कुछ कहता हो, भारतीय ऋषियों ने सर्वप्रथम ईश्वर की जो परिभाषा दी, उससे अलग परिभाषा विश्व के किसी दार्शनिक एवं धर्माधिकारी ने नहीं दी, और न भविष्य में कोई दे सकता है।
    प्रतिशोध एवं परम्पराओं के मार्ग पर चलने-चलाने वाला कभी मानव जाति का हितैषी नहीं हो सकता है, इससे मानव एकता कदापि सम्भव नहीं है तथा विनास भी सुरक्षित नहीं है, मानव एकता की दिशा में कदम उठाते हुए गीता को पाठ्यक्रम में शामिल करते हुए मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने एक अभूतपूर्व निर्णय से भारत के गौरवशाली इतिहास की वापसी की एक हल्की सी आशा की किरण देश प्रेमियों के हृदय में अवश्य जागी है, यह किरण एक वृहत् प्रकाश पंुज में परिवर्तित हो सकती है, यदि देश के सभी प्रतिनिधी अपने दायित्व बोध के प्रति सतर्क होकर  मध्यप्रदेश की भाँति पूरे भारत में गीता को पाठ्यक्रम में शामिल करके शिक्षा में सुधार कर लें जिससे विद्यार्थियों को जो देश के भविष्य है, ईमानदार एवं धार्मिक बनाया जा सके तथा देश की सीमाओं को तथा व्यक्ति के जीवन को सुरक्षित तथा व्यवस्थित किया जा सके। क्योंकि संसार की कोई भी उपलब्धि सुरक्षित एवं व्यवस्थित जीवन नहीं दे सकती, परिणाम की दृष्टी से करोड़ों वर्ष जहाँ मनुष्य खड़ा था वहीं आज खड़ा है, करोड़ों वर्ष पूर्व मनुष्य के पास कोई टिकाऊ वस्तु नहीं थी और न आज ही मनुष्य के पास कोई टिकाऊ वस्तु है, संसार में मनुष्यों के पास आंसुओं के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है जो कुछ उसके पास है उसका नष्ट होना निश्चित है, नष्ट होने पर दुख निश्चित है, संसार में सभी मनुष्यों की उपलब्धि का परिणाम दुख है।
    विश्व के किसी वैज्ञानिक ने ऐसी खोज नहीं की जिससे मानव जाति को समस्याओं को स्थाई समाधान मिल सके, वैज्ञानिकों के अविष्कार का परिणाम विनाश, पतन एवं दुख है। भौतिक क्षेत्र की सर्वोपरि उपलब्धि भी किसी व्यक्ति को दुख, तबाही, विनाश, पतन एवं समस्याओं से नहीं बचा सकती है। गद्दाफी का 474 टन सोना उसे तबाही एवं अपमान से नहीं बचा सका।
    विश्व के सभी धर्मशास्त्र जो गीता के बाद प्रकाश में आये, सभी धर्मशास्त्र गीता की भाँति एक परमात्मा के अतिरिक्त किसी का असतित्व स्वीकार नहीं करते है, विश्व के सभी दार्शनिक एवं धर्मशास्त्र गीता का ही अनुकरण करते हैं, इसलिए इसका कही से भी      विरोध उचित प्रतीत नहीं होता है, इसे पाठ्यक्रम में शामिल करने से मानव एकता के साथ अतीत के गौरवशाली इतिहास मानव एकता के साथ अतीत के गौरवशाली इतिहास की वापसी सम्भव है।
‘‘परिन्दे वेखौफ हो परवाज भरते हैं। कभी उन्हें आपस में टकराते नहीं देखा।।‘‘


स्वामी ब्रजानन्द महाराज
बिनेगा आश्रम, शिवपुरी  ;म.प्र.