शांति को पाने के लिए षडयंत्र, स्वांग व चापलूसी से दूर रहे : मुनिश्री चिन्मय सागर

शिवपुरी. मन की शांति को यदि शांत कर लिया तो यही सबसे बड़ी शांति है लेकिन संसारी प्राणी आज अशांति के कार्यों को करके शांति को पाना चाहता है जो कतई संभव नहीं है। साधक जंगल में साधना करके संसार में सुख शांति के वास के लिए साधना करते है इसलिए ध्यान रखें कभी भी जीवन में शांति प्राप्त करने के लिए किसी भी प्रकार आडम्बर, स्वांग, षडयंत्र व चापलूसी और आलोचना न करें बल्कि इनसे दूर रहे इन सभी से दूर रहकर हम पंच परमेष्ठी भगवान को पाने के लिए शांति को प्राप्त कर सकेंगे।

इस शांति से केवल एक व्यक्ति का नहीं वरन उसके परिवार, समाज, शहर, प्रदेश व देश में भी शांति आएगी। शांति प्राप्त करने का यह मार्ग प्रशस्त कर रहे थे प्रसिद्ध मुनिश्री  चिन्मय सागर जी जंगल वाले बाबा जो मझेरा के जंगल में श्रावक-श्राविकाओं को घर-परिवार, समाज व देश में शांति स्थापित करने के लिए  शांति के मार्गों को अपनाने का आह्वान कर रहे थे। इस अवसर पर दूर-दूर से श्रावक-श्राविकाऐं मुनिश्री के प्रवचनों का श्रवण कर रहे थे।
    मझेरा के जंगल को अपने पावन सानिध्य से कृतार्थ करने वाले प्रसिद्ध मुनिश्री चिन्मय सागर जी संपूर्ण संसार की शांति के लिए प्रथम बार शिवपुरी में चार्तुमास कर रहे है। चार्तुमास में अपने ओजस्वी प्रवचनों से श्रावक-श्राविकाओं को प्रतिदिन जंगल में जीवन जीने की कला पर मुनिश्री अपने प्रवचन देते है। प्रवचनों की श्रृंखला में मुनिश्री चिन्मय सागर जी महाराज जंगल वाले बाबा ने बताया कि आज का संसारी प्राणी संसार की नहीं स्वयं की फिक्र करने में लगा है। लेकिन इस शांति को पाने के लिए व्यक्ति को स्वयं के मन में शांति को लाना होगा उससे स्वयं का और संसार दोनों का कल्याण होगा। 
मुनिश्री ने बताया कि व्यक्ति कर्मनिष्ठ, धर्मनिष्ठ,कर्तव्यनिष्ठ होकर यदि सहजता से साहस से शांति को प्राप्त करेगा तो निश्चित रूप से उसे शांति मिलेगी और वह इन सबसे सर्वश्रेष्ठ होकर इंसान ही नहीं भगवान भी बन सकता है। राग-द्वेष से ऊपर उठकर व्यक्ति को अपने साहस का परिचय देना चाहिए लेकिन आजकल देखा गया है कि कुछ लोग अपने निजी स्वार्थों के लिए विभिन्न प्रकार के स्वांग, षडयंत्र, चापलूसी कर आनन्द लेते है और दूसरों के दु:खों को देकर खुद उत्साहित होते है यह कतई नहीं होना चाहिए क्योंकि हम एक-दूसरे की चापलूसी या स्वांग रचनाओं में लगे रहेंगे तो कभी भी इस संसार के प्राणी शांति को नहीं पा सकेंगे। मुनिश्री ने बताया कि शांति को पाने के लिए सहज बनना होगा और साहस के साथ ऐसी प्रतिकूलताओं में इन चापलूसों और षडयंत्रकारियों को सबका सिखाना ही हमें जीवन जीने की कला सिखाती है। मुनिश्री का कहना था कि चापलूसी करना बारूद से भी ज्यादा खतरनाक है क्योंकि बारूद तो फट जाती है लेकिन यदि चापलूसी की गई तो उससे व्यक्ति मानसिक संताप में घिर जाता है, रोगी हो जाता है बर्बाद हो जाता है और वह कभी शांति को प्राप्त नहीं कर पाता इसलिए यह शांति हमें कभी संसाधनों से प्राप्त नहीं होती इसे पाने के लिए तो मन में शांति लाना होगी और दूसरों की आलोचना करना बंद करें यह शूरता-कायरता की श्रेणी में आता है कायर व्यक्ति ही चापलूसी करता है और आनन्द लेकर भी अव्हेलना आलोचना करना शूरता नहीं कायरता की पहचान है। 
मुनिश्री ने सभी श्रावक-श्राविकाओं से शांति पाने के लिए जिस तरह ओजस्वी प्रवचन दिए उससे वह प्रभावित हुए और संकल्प लिया कि कभी भी किसी की चापलूसी नहीं करेंगे। इस अवसर पर भोपाल, कोटा, गुना, मुरैना, भिण्ड व शिवपुरी अंचल सहित विभिन्न स्थानों से श्रावक-श्राविकाऐं जंगल में मुनिश्री के आशीर्वचनों का धर्मलाभ लेने मझेरा के जंगलों में सपरिवार मौजूद थे।